प्राचीन परंपराओं पर लगा ग्रहण, पढ़ें ये पूरी कहानी
कोरोना वायरस ने हजारों सैकड़ों वर्षों पुरानी धार्मिक परंपराओं पर ग्रहण लगा दिया है। ऐसी कई धार्मिक परंपराएं हैं जो इस वैश्विक महामारी की वजह से टूट गईं। चाहे चार धाम यात्रा हो या देश के कई बड़े धार्मिक स्थानों की यात्रा, सब पर कोरोना की काली छाया का प्रभाव देखने को मिल रहा है।
सुशील कुमार
मेरठ: कोरोना वायरस ने हजारों सैकड़ों वर्षों पुरानी धार्मिक परंपराओं पर ग्रहण लगा दिया है। ऐसी कई धार्मिक परंपराएं हैं जो इस वैश्विक महामारी की वजह से टूट गईं। चाहे चार धाम यात्रा हो या देश के कई बड़े धार्मिक स्थानों की यात्रा, सब पर कोरोना की काली छाया का प्रभाव देखने को मिल रहा है।
मेरठ समेत वेस्ट यूपी की बात करें तो कोरोना वायरस के कारण सैकड़ों वर्षों की ऐसी धार्मिक परंपराएं एक के बाद एक लगातार टूट रही हैं जैसा किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। प्राचीन परंपरा टूटने की शुरुआत उत्तर भारत के ऐतिहासिक नौचंदी मेले से हुई। नगर के पूर्वी छोर पर चंडी मंदिर और बाले मियां की मजार पर सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक के रूप में हर साल होली के बाद एक रविवार छोड़कर लगने वाले इस मेले का उद्घाटन 22 मार्च को होना था लेकिन कोरोना वायरस के कारण मेला शुरू नहीं हो सका। आजादी की मूरत बनी नौचंदी ने शहर के कई उतार चढ़ाव देखे लेकिन मेले की रौनक कभी कम न हुई। चाहे शासन मुगलों का रहा हो या अंग्रेजी हुकूमत या फिर स्वतंत्रता संग्राम या सांप्रदायिक दंगे आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि शहर में नौचंदी के मेले का आयोजन न हुआ हो। ८० वर्षीय शमसुद्दीन बताते हैं कि आज तक उन्होंने कभी अपने पुरखों से भी नहीं सुना कि मेला नहीं लगा है। अलबत्ता,पहली बार १९८७ में हुए दंगों के कारण मेले को बीच में ही समाप्त करना पड़ा था।
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गगोल तीर्थ
कोरोना संक्रमण के चलते ऐतिहासिक गगोल तीर्थ की १५० साल पुरानी परंपरा टूट गई। १८५० के बाद पहली बार यहां गंगा दशहरा मेला नहीं लग सका। गगोल तीर्थ के महंत शिवदासजी महाराज कहते हैं कि हर साल गंगा दशहरा के अवसर पर यहां मेला लगता है जिसमें हजारों लोग भाग लेते हैं परंतु कोरोना के कारण इस साल केवल यज्ञ का आयोजन हुआ। गगोल तीर्थ के ऐतिहासिक महत्व के बारे में शिवदासजी महाराज बताते हैं कि गगोल तीर्थ पर महर्षि विश्वामित्र ने १०८ यज्ञ किए थे। यहां राक्षसी खेड़ा होने के कारण सुरक्षा के लिए भगवान राम व लक्ष्मण को अयोध्या से बुलाया था। यहीं पर मिथिला नरेश ने महर्षि विश्वामित्र के पास सीता स्वंयवर का न्योता भेजा था। यहां स्थित ऐतिहासिक सरोवर में ज्येष्ठ गंगा दशहरा मनाने की परंपरा है।
गंगा स्नान मेला
कोरोना के ही कारण पहली बार ब्रजघाट पर देश का सबसे पहला बड़ा गंगा स्नान मेला हैं लग सका। माना जाता है कि गंगा जिस दिन स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुईं वह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि थी तभी से इस तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। गंगा घाटों पर हर साल श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता दिखता था लेकिन पहली बार इस साल गंगा घाट सूने पड़े रहे।
ईद की नमाज
कोरोना के कारण इतिहास में इस साल पहली बार ईद की नमाज घरों में पढ़ी गई। सहारनपुर जनपद के बेहट में 500 साल में पहली बार ईद की नमाज ईदगाह में अदा नहीं की गई। मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अपने घरों के अंदर ही ईद की नमाज अदा की और इंसानियत की सलामती एवं वैश्विक महामारी के खात्मे के लिए अल्लाह से दुआ की। बेहट ईदगाह की इंतजामिया कमेटी के जनरल सेक्रेटरी मोहम्मद अहमद काजमी एडवोकेट ने बताया कि बेहट कस्बे का इतिहास करीब 500 साल पुराना है और पहली बार ऐसा हुआ है कि बेहट कस्बे की ईदगाह में ईद की नमाज नहीं हुई और ईदगाह में सन्नाटा पसरा रहा। अब बकरीद की नमाज और कुर्बानी को लेकर भी संशय है। कोरोना वायरस के संक्रमण के असर के कारण ही सऊदी अरब सरकार ने हज यात्रा स्थगित करने का फैसला किया है। गौरतलब है कि फ्लू जैसी महामारी के दौरान भी हज को नहीं रोका गया था जबकि उस वक्त इस बीमारी से दुनियाभर में लाखों लोगों की मौत हुई थी।
काँवड़ यात्रा
हर साल सावन में शुरू होने वाली पवित्र कांवड़ यात्रा कोरोना संकट के चलते स्थगित हो गई है। देश के अलग अलग हिस्से से आने वाले लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में भाग लेते थे। सैकड़ों वर्षों की परंपरा में यह पहली बार हो रहा है जब कांवड़ यात्रा को स्थगित कर दिया गया हो। कांवड़ यात्रा 5 जुलाई से 17 जुलाई के बीच तक प्रस्तावित थी। हर साल श्रावण मास में होने वाली कांवड़ यात्रा में मेरठ से हरिद्वार तक मेला सा लगता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलावा दिल्ली, पंजाब, राजस्थान और हरियाणा के शिवभक्त उत्तराखंड के गोमुख और हरिद्वार से पवित्र गंगाजल लाते हैं और अपने संबंधित देवालय में शिवरात्रि पर जल चढ़ाते हैं। इन दिनों शहर के प्रमुख बाजारों में छोटे रिटेलर से बड़े व्यापारियों की दुकानें केसरिया रंग से सज जाती हैं। सावन के हर सोमवार को भी स्थानीय देवालयों में विशेष रूप से जल चढ़ाया जाता है।
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व्यापारी निराश
हर साल 15 से 20 दिनों की इस धार्मिक यात्रा में महानगर के बाजारों को करीब 500 करोड़ रुपए की संजीवनी मिलती है। छोटे-बड़े हर वर्ग के व्यापारी को काम मिलता है। लेकिन कांवड़ यात्रा न होने के फैसले से व्यापारियों में मायूसी छा गई है। हैंडलूम वस्त्र व्यापार संघ के प्रधान राजीव बंसल कहते हैं कि कांवड़ यात्रा के दौरान एक रेहड़ी वाले से लेकर बड़े कारोबारियों को संजीवनी मिलती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलावा हरिद्वार, रुड़की और दिल्ली के व्यापारियों को अच्छी सेल हो जाती थी। प्रतिबंध से मेरठ के बाजार को ही 500 करोड़ का घाटा तय है।
सावन में मंदिर बंद
श्रावण मास पर इस बार कोरोना वायरस के चलते मेरठ शहर के प्रमुख मंदिरों को खोलने की अनुमति नहीं दी गई है। ऐसे में श्रद्धालुओं ने घर में रहकर ही भगवान शिव भोले की आराधना की। श्रद्धालुओं को एतिहासिक औघड़नाथ मंदिर के बाहर से ही भगवान शिव की पूजा-अर्चना करनी पड़ी। बता दें कि औघड़नाथ मंदिर मेरठ शहर के लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। यहां स्वयंभू शिवलिंग है। यहां राधा-कृष्ण और मां शेरावाली का मंदिर है।
शिव मंदिर के पीछे शहीद स्मारक है जिस पर शहीदों के नाम लिखे हैं। 1857 की क्रांति की शुरुआत यहीं से हुई थी। यहां श्रावण के दौरान लाखों श्रद्धालु जलाभिषेक करते हैं। लेकिन इस बार कोरोना वायरस की वजह से मंदिर को बंद रखा गया है। इस बार एतिहासिक औघड़नाथ मंदिर पर न तो शिव भक्तों की लंबी कतार दिखी और न ही बम-बम बोले की गूंज सुनाई दी। शिव भक्तों ने घर में रहकर ही भगवान शिव भोले से कोरोना के सर्वनाश के लिए प्रार्थना की।