UP Politics : वरूण करेंगे घर वापसी
Lucknow : वरुण गांधी किसानों के मुद्दे से लेकर लखीमपुर हिंसा तक पर कार्रवाई की मांग करके अपनी ही सरकार पर सवालिया निशाना खड़े किए हैं।
Lucknow : भारतीय जनता पार्टी दवारा आज जारी राष्ट्रीय कार्यकारिणी से भले ही वरूण गांधी व उनकी माँ मेनका गांधी को बाहर कर पहले से पेशबंदी करने की बात पर पीठ थपथपाई जा रही हो, पर हक़ीक़त यह है कि मेनका व वरूण का मन भाजपा की सियासत से भर गया है। इसके लक्षण तो पिछले लोकसभा चुनाव से ही दिखने लगे थे।
वरूण व मेनका को लेकर जो क़यास लगाये जा रहे हैं, वे अनायास नहीं है। पिछले कुछ दिनों के वरूण गांधी के ट्वीट पर गौर करेंगे तो आपको लगेगा कि वरुण गांधी अपनी ही पार्टी और नेताओं पर सवाल उठाकर विपक्ष को जहां हमले का मौका दे रहे हैं, वहीं उनके इस बर्ताव से आलाकमान नाराज भी बताया जा रहा है।
पुलिसिया व सरकारी दावों की कलई खोलता
वरुण गांधी किसानों के मुद्दे से लेकर लखीमपुर हिंसा तक पर कार्रवाई की मांग करके अपनी ही सरकार पर सवालिया निशाना खड़े किए हैं। वरुण गांधी ने जहां आंदोलन कर रहे किसानों का समर्थन किया । वहीं गन्ने का मूल्य बढ़ाने के लिए सीएम योगी को पत्र लिखकर इसे सोशल मीडिया पर अपलोड किया।
इसके साथ ही अभी 3 अक्टूबर को लखीमपुर हिंसा को लेकर उन्होंने दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है। वरूण गांधी ने गोरखपुर में मारे गये मनीष की हत्या का एक वीडियो बीते गुरू को सुबह 8.55 पर शेयर किया । जो पुलिसिया व सरकारी दावों की कलई खोलता है। उनके ट्विट व बयान इस ओर इशारा करते हैँ कि वह पार्टी लाइन से हटकर कार्य कर रहे हैं।
सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसे क्या हालात बन रहे हैं, जो मेनका गांधी और वरुण गांधी के लिए बीजेपी में टिक पाना मुश्किल सा लग रहा है। दरअसल, आज गुरुवार को बीजेपी की करीब एक साल बाद नई कार्यकारिणी घोषित की गई है।
जिसमें पीलीभीत से सांसद वरुण गांधी और उनकी मां सुल्तानपुर से सांसद मेनका गांधी को जगह नहीं दी गई है। जबकि लंबे समय से मेनका गांधी इसकी सदस्य रही हैं। लेकिन इस बार दोनों में से किसी को जगह नहीं मिलना, इस ओर इशारा कर रहा है कि बीजेपी में उनके लिए सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
इसकी शुरुआत तक़रीबन आठ साल पहले तब हुई जब 2013 में वरुण गांधी भाजपा के पश्चिम बंगाल के प्रभारी थे। उस समय कोलकाता के परेड ग्राउंड में नरेंद्र मोदी की रैली का पूरा प्रबंध वरुण गांधी ने ही किया । लेकिन वरुण ने अगले दिन मीडिया से कहा कि रैली विफल रही।
बस यहीं से भाजपा और वरुण गांधी के रिश्तों में कड़वाहट की शुरुआत हुई। इसी साल सुल्तानपुर लोकसभा सीट के चुनाव में प्रत्याशी होने के बाद भी स्थानीय भाजपा नेताओं को वरूण ने कोई भाव नहीं दिया। चुनाव प्रचार के दौरान कई बार पार्टी कार्यकर्ताओं को मोदी मोदी के नारे लगाने से रोका।
इसके बाद जब अमित शाह पार्टी के अध्यक्ष बने, तो उन्हें पार्टी के महासचिव पद से वरूण को हटा दिया। इसके बाद भी उनका बडबोलापन रूका नही। कानपुर में एक कार्यक्रम में उन्होंने कह दिया कि दूसरों दलों की तुलना में भाजपा में युवाओं को आने का मौका कम मिलता है।
यही नहीं, एक बार उन्होंने रोहिग्या मुसलामानों की भी तरफदारी कर दी। एक समाचार पत्र मे अपने आर्टिकल में उन्होंने लिख दिया कि आतिथ्य सत्कार और शरण देने की अपनी परंपरा का पालन करते हुए हमें शरण देना निश्चित रूप से जारी रखना चाहिए।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री रहीं मेनका गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार अपनी कैबिनेट में शामिल नहीं किया है। कैबिनेट विस्तार में भी उन्हें जगह नहीं मिली।मेनका गांधी का कद बीजेपी में बड़ा रहा है, वह अटल जी की सरकार में भी मंत्री थीं।
मेनका गाँधी
गांधी परिवार की विद्रोही के रूप में मानी जाने वाली मेनका गांधी विपरीत परिस्थितियों में पॉलिटिक्स में आईं थीं। हालाँकि मेनका अपने पति संजय गांधी के साथ राजनीतिक यात्राओं में रहती थीं और 1977 के चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी के प्रचार में मेनका ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन एक्टिव राजनीति में वह संजय की मौत के बाद आईं।
1982 में अपने पति संजय गांधी की मृत्यु के बाद मेनका, गांधी परिवार के साथ सारे संबंध तोड़ कर प्रधानमंत्री हाउस से बाहर निकल गईं थीं। जब संजय गांधी की एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हुई, तब मेनका सिर्फ तेईस साल की थीं। उसका बेटा वरुण सिर्फ 100 दिन का था।
मेनका 1989 में जनता दल में शामिल हो गईं। जनता पार्टी के महासचिव के रूप में 131,224 मतों के अंतर से पीलीभीत से संसद में अपनी जीत का सफल अभियान चलाया।
मेनका ने पीलीभीत में अपनी पहली जीत के बाद छह लोकसभा चुनावों में सफलतापूर्वक चुनाव लड़ा। उन्होंने 1998 और 1999 में एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।2004 में उन्होंने अपने बेटे के साथ भाजपा में पारी शुरू की। पीलीभीत सीट बेटे वरूण के लिए ख़ाली कर दी। इस सीट पर अभी इन्हीं का क़ब्ज़ा कहाँ जा सकता है।
मेनका गांधी ने 1984 के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश से अमेठी निर्वाचन क्षेत्र से राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा और 3,14,878 मतों के अंतर से हार गईं।
राजनीतिक सफ़र
गांधी परिवार से अलग होने के बाद मेनका ने अपनी खुद की एक राजनीतिक पार्टी संजय विचार मंच के नाम से शुरू की। इस पार्टी का मुख्य फोकस युवाओं के रोजगार और सशक्तिकरण पर था। इस पार्टी ने आंध्रप्रदेश में चुनाव लड़ा था और चार सीटों पर जीत भी हासिल की।
जनता दल
1988 में संजय विचार मंच का जनता दल के साथ गठबंधन हो गया। मेनका गांधी को महासचिव नियुक्त किया गया। पार्टी ने सन 1989 में अपना पहला चुनाव जीता। तब मेनका को पर्यावरण मंत्री के रूप में नियुक्ति मिली, और वे 1989 से 1991 तक इस पद पर रहीं।
अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने पशु कल्याण के लिए एक अलग विभाग बनाया। उसके द्वारा न केवल पशु कल्याण के क्षेत्र में बल्कि देश के ऐतिहासिक स्मारकों की सुरक्षा के लिए भी कई कानून बनाये गये थे।
निर्दलीय नेता
1996 में मेनका ने एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पीलीभीत से सफलतापूर्वक चुनाव लड़ा। मेनका ने सन 1998 में भी चुनाव में जीत हासिल की। 1999 में मेनका ने भारतीय जनता पार्टी का समर्थन किया, हालाँकि वे उस समय इसमें शामिल नहीं हुईं।
लेकिन उस दौरान मेनका को सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। इस दौरान मेनका ने ओएएसआईएस (ओल्ड ऐज सोशल एंड इनकम सिक्यूरिटी) प्रोजेक्ट में कई सुधार करने शुरू किये। इसके परिणामस्वरुप नया पेंशन सिस्टम (एनपीएस) आया जिसे 2004 में लागू किया गया।
भारतीय जनता पार्टी
2004 में मेनका गांधी पूरी तरह से भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं। उन्होंने पीलीभीत से फिर से आम चुनाव लड़ा और जीत अपने नाम की। 2009 तक वह पीलीभीत रहीं। इसके बाद मेनका ने आंवला से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मेनका ने फिर से पीलीभीत से ही चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
राजनीतिक पद
1988 - जनता दल की महासचिव।
दिसंबर 1989 से जून 1991 : पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री।
अक्टूबर 1999 से सितम्बर 2001 : सामाजिक न्याय एवं शक्तिकरण मंत्री।
सितम्बर 2001 से नवम्बर 2001 : संस्कृति राज्य मंत्री।
जनवरी 1990 से अप्रैल 1990 : कार्यक्रम क्रियान्वयन एवं सांख्यिकी राज्य मंत्री।
नवम्बर 2001 से जून 2002 : कार्यक्रम क्रियान्वयन एवं सांख्यिकी राज्य मंत्री।
मई 2014 से मई 2019 : महिला एवं बल कल्याण मंत्री।
वरुण गांधी
लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स और यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से पढ़े वरुण गाँधी 19 वर्ष की आयु में पहली बार अपनी मां मेनका गाँधी के संसदीय क्षेत्र पीलीभीत में चुनाव के दौरान दिखे थे। वह लगातार मां मेनका के साथ चुनावी सभा व प्रचार में भाग लेते रहे।
2004 के चुनाव में वरुण को भाजपा द्वारा एक मुख्य प्रचारक के तौर पर उतारा गया था। लेकिन उन्होंने अपने परिवार के चचेरे भाई-बहन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी तथा चाची सोनिया गांधी के खिलाफ कुछ कहने से इनकार कर दिया। वरुण गांधी की छवि बहुत पहले से एक फायर ब्रांड हिंदूवादी नेता की रही है।
वरुण गांधी ने 2009 में पीलीभीत की चुनावी रैलियों में कुछ भड़काऊ बातें कहीं थीं जिसके लिए उनको जेल भी जाना पड़ा था। हाल के दिनों में वरुण ने किसान आन्दोलन और पीलीभीत काण्ड पर कुछ ऐसे ट्वीट किये हैं जो पार्टी लाइन के खिलाफ जाते हैं।
- वरुण ने अपनी मां मेनका गाँधी के साथ 2004 में भाजपा की सदस्यता प्राप्त की। नवंबर 2004 में उन्हें भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में शामिल किया गया।
- मेनका गांधी ने 2009 के चुनाव में पीलीभीत सीट वरुण के लिए छोड़ दी, जबकि वे खुद आंवला से खड़ी हुईं। वरुण गांधी इस चुनाव में जीत गए।
- मार्च 2013 में राजनाथ सिंह ने वरुण गांधी को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया। वे पार्टी के सबसे कम उम्र के महासचिव बने।
- 2014 में वरुण गांधी ने सुल्तानपुर सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।
- 2019 में वरुण गांधी फिर पीलीभीत से सांसद चुने गए। यहां से दूसरी बार जीतकर लोकसभा पहुंचे।
लेकिन आज जब वरूण के विद्रोही तेवर साफ दिख रहे हैं। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाली भाजपा कई दशकों से कांग्रेस का विरोध करती आ रही मेनका को कोई जगह नहीं देती है। तब सवाल उठना लाज़िमी हो जाता है कि मेनका व वरूण का नया मुक़ाम क्या होगा?
राजनीतिक विश्लेषक क्या कहते हैं
मेनका गांधी और वरुण गांधी को लेकर राजनीतिक विश्लेषक अतुल मुखर्जी कहते हैं कि यहां सह और मात का खेल चल रहा है, इसमें वेट कर रहे हैं कि कौन पहले अपनी तरफ से टाटा बाय-बाय बोलेंगे या पार्टी बोलेगी।
पार्टी को जिस तरीके से करीब दो ढाई या उससे पहले से हैंडल किया जा रहा है, जब शत्रुघ्न सिन्हा, यशवंत सिन्हा जैसे नेता पार्टी लाइन से इतर जाके क्रिटिसाइज कर रहे थे। लेकिन पार्टी ने उनको बाहर का रास्ता नहीं दिखाया। वही सेम चीज यहां भी हो रही है। प्रासंगिकता खत्म है।
इनको आगे भी टिकट नहीं मिलने वाला है। एक बार सुल्तानपुर एक बार पीलीभीत से सांसद हो लिए हैं। अपना रास्ता तलाश रहे हैं। ये जिस परिवार से आते हैं वहां बहुत ज्यादा विकल्प नहीं हैं। नेशनल लेबल पर राजनीति करने के आलवा इनके पास स्टेट लेवल पर राजनीति कराना संभव नहीं है।
अपनी कोई इनकी पॉलिटिकल पूजी नहीं है कि वह खुद निर्दलीय लड़ जाएं। जैसे कि इनके ग्रैंडफादर नेहरु जी से इतर जाके चुनाव लड़े और अपने बूते पर सीट निकाले थे। ऐसी कोई पूंजी इनके पास नहीं है।
अतुल मुखर्जी कहते हैं वरुण गांधी नई पीढ़ी में राहुल और प्रियंका के साथ जा सकते हैं। लेकिन अभी जब तक पूरी तरह से कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के हाथों में है, तब तक यह मुश्किल हैं। मुखर्जी ने कहा जब तक सोनिया गांधी पूरी तरह से पावर में रहेंगी मुझे नहीं लगता मेनका का लड़का कांग्रेस में सम्मान जनक स्थिति में जा पाएगा।
हां सोनिया के बाद राहुल-प्रियंका के साथ वह कजन का रोल निभाते हुए बिल्कुल जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की सत्ता राहुल के पास पूरी तरह से चली गई है, ऐसा पार्टी के आचरण से लग रहा है। लेकिन ऑफिशियल तौर पर अभी सब कुछ सोनिया गांधी ही हैं। तो जब तक वह रहेंगी उनका कांग्रेस में जाना मुश्किल है, आगे ये जरुर हो सकता है। उन
बीजेपी का क्या है कहना
मेनका और वरुण गांधी को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल नहीं किये जाने और वरुण गांधी के ट्वीट वाले बयानों पर बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता हीरो वाजेपेयी का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी में परिवर्तन लगातार होते रहते है। इस बार कुछ नए लोगों को जगह दी गई है। यह परिवार की पार्टी नहीं है , जहां एक ही व्यक्ति या परिवार का आदमी हमेशा पद पर बैठा रहेगा।
बहुत बार मेनका और वरुण को जगह मिली है, यहां कोई सेट पैटर्न नहीं है कि सिर्फ उन्हीं लोगों को जगह मिलेगी। बहुत से सांसद और विधायक हैं, जिन्हें जगह नहीं मिली है। विनट कटियार को भी शामिल नहीं किया गया है। पार्टी जिसको समझती है उसे इसमें शामिल करती है।
वहीं वरुण गांधी पर हीरो वाजपेई ने कहा कि वह पार्टी के खिलाफ कुछ भी नहीं बोलते हैं। हां, उनके ट्वीट और पत्र सार्वजनिक करना कहीं ना कहीं पार्टी लाइन के खिलाफ हो सकता है, अगर वह मर्यादा, सीमा का उल्लंघन करेंगे तो हमारे यहां केंद्र में सांसदों के लिए एक अनुशासन समिति है वह इस पर निर्णय करेगी।