Ayodhya: राष्ट्रीय सीनियर तीरंदाजी प्रतियोगिता में जरवा जनजातीय के धनुर्धर भी, 15 साल पहले आए हैं आधुनिक सभ्यता के संपर्क में
National Senior Archery Competition: अंडमान निकोबार की आधुनिक सभ्यता से अछूती जरवा जनजाति के दो धनुर्धर बुलबा और डेच भी राष्ट्रीय सीनियर तीरंदाजी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए यहां पहुंचे हैं। यह जनजाति 15 साल पहले ही आधुनिक सभ्यता के संपर्क में आई है।
Ayodhya News: राजकीय इंटर कॉलेज मैदान पर चल रही राष्ट्रीय सीनियर तीरंदाजी प्रतियोगिता (National Senior Archery Competition) में यहां आए खिलाड़ियों में राम मंदिर देखने की ललक रही। खिलाड़ियों की अभिलाषा को ध्यान रखते हुए आयोजक उत्तर प्रदेश तीरंदाजी संघ ने दर्शन करने वालों के लिए आवागमन की सुविधा उपलब्ध कराई। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास ने उनके लिए दर्शन और प्रसाद की व्यवस्था की।
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास की ओर से न्यास महासचिव चंपतराय ने न सिर्फ खिलाड़ियों के लिए दर्शन की व्यवस्था कराई, बल्कि 1200 खिलाड़ियों, कोच और पदाधिकारियों को स्मृति के लिए राम मंदिर का मॉडल, प्रसाद और रामनामी भी उपलब्ध कराई। न्यास महासचिव माननीय चंपत राय की ओर प्रदान किए गए प्रसाद का वितरण प्रदेश तीरंदाजी संघ के महासचिव अजय गुप्ता ने प्रतियोगिता स्थल पर किया।
तीरंदाजी पर केंद्रीय खेल मंत्रालय की निगाहें टिकीं
राष्ट्रीय सीनियर तीरंदाजी प्रतियोगिता में खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर खेल मंत्रालय की भी निगाहें हैं। खिलाड़ियों की प्रतिभा को परखने और उनमें संभावना को तलाशने और तरासने के लिए खेल मंत्रालय के अधिकारी भी खेल मैदान पर बिना किसी की जानकारी के मुकाबलों को देखते रहे। अधिकारियों में प्रमुख हाई परफोर्मेंस मैनेजर श्री ब्रजेश और डायरेक्टर श्री संजीव सहित उनके सहयोगी यहां मौजूद रहे।
तीरंदाजी का भारतीय खेलों में पौराणिक महत्व
उत्तर प्रदेश तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री के सलाहकार अवनीश कुमार अवस्थी और महासचिव अजय गुप्ता बताते हैं कि, 'तीरंदाजी भारतीय खेलों में जहां पौराणिक महत्व रखता है। वहीं, विश्व तीरंदाजी में तीसरे नंबर पर भी है। इस खेल से सर्वाधिक अंतरराष्ट्रीय पदक अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में आ रहे हैं। इसलिए इसे प्रोत्साहित करने का पूरा प्रयास केंद्र सरकार कर रही है और स्वयं माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी खेलों की प्रगति पर विशेष ध्यान रख रहे हैं। उत्तर प्रदेश से ही तीरंदाजी को विशेष बल मिला है। प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी खेलों पर विशेष जोर दिया है और सरकारी नौकरी में क्लास टू अधिकारी की श्रेणी की नौकरी देने का वैधानिक रास्ता साफ किया है। इतनी बड़ी राष्ट्रीय प्रतियोगिता भी उत्तर प्रदेश में खेलों के प्रोत्साहन का ही परिणाम है।
जरवा जनजातीय के धनुर्धर भी पहुंचे
अंडमान निकोबार की आधुनिक सभ्यता से अछूती जरवा जनजाति के दो धनुर्धर बुलबा और डेच भी राष्ट्रीय सीनियर तीरंदाजी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए यहां पहुंचे हैं। उनके साथ वेंकेटेश राव कोच भी हैं। दोनों धनुर्धर बताते हैं कि परंपरागत धनुष और आधुनिक धनुष दोनों में जमीन आसमान का अंतर है।हम बहुत ताकत लगाकर और अनुमान से ही तीर चलाते रहे हैं। हम लोग तो भागते हुए लक्ष्य भेदने का ही अभ्यास रखते हैं। जबकि आधुनिक धनुष लक्ष्य को देखने और कम प्रयास से भेदने की सुविधा होती है। आधुनिक धनुष के साथ तालमेल बैठाने में समय लगेगा। बताते चलें यह जनजाति 15 साल पहले ही आधुनिक सभ्यता के संपर्क में आई है। तीरंदाजी इनकी परंपरा है। इनके बुजुर्ग अब भी पेड़ों पर रहते हैं और वस्त्र नहीं धारण करते।