Ayodhya News: संशोधन विधेयक के विरोध में अयोध्या अधिवक्ता संघ ने लंबी लड़ाई का किया एलान

Ayodhya News: अयोध्या अधिवक्ता संघ फैजाबाद ने अयोध्या में अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2025 के खिलाफ लंबी लड़ाई का ऐलान किया है। जब तक संशोधन विधेयक वापस नहीं हो जाता, अयोध्या अधिवक्ता संघ के अधिवक्ता चुप नहीं बैठेंगे और अंतिम सांस तक जनहित की लड़ाई लड़ेंगे।;

Report :  NathBux Singh
Update:2025-02-21 21:45 IST

Ayodhya News: अयोध्या अधिवक्ता संघ फैजाबाद अयोध्या में अधिवक्ता संशोधन विधायक 2025 के विरोध में लंबी लड़ाई का ऐलान कर दिया है। जब तक संशोधन विधेयक वापस नहीं होगा तब तक अयोध्या अधिवक्ता संघ के अधिवक्ता चुप नहीं बैठेंगे और आखरी दम तक लड़ेंगे जनहित की लड़ाई। अयोध्या धाम के अधिवक्ताओं ने बैठक करके इसका जबरदस्त विरोध किया है और पूरे अ कचहरी परिसर में अधिवक्ताओं ने जबरदस्त मार्च निकाला संघ अध्यक्ष सूर्य नारायण सिंह ने बताया कि इसका वापसी तक विरोध किया जाएगा और आगामी 25 फरवरी से विरोध का स्वरूप बदलेगा और अधिवक्ता अपनी सम्मान की लड़ाई के लिए सड़क पर भी उतरेगा इस विरोध में पूर्व अध्यक्ष पंडित कालका प्रसाद मिश्रा एल्डर कमेटी के उच्च न्यायालय द्वारा नामित अध्यक्ष पंडित जेपी त्रिपाठी सहित हजारों की संख्या में अधिवक्ता मौजूद रहे।

देशभर के अधिवक्ताओं ने वर्षों से एक मजबूत अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम* की माँग की थी। लगातार बढ़ते हमले, पुलिसिया दमन, प्रशासनिक ज्यादतियाँ, और वकीलों पर झूठे मुकदमों की बाढ़ ने इस माँग को और ज़रूरी बना दिया था। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में अधिवक्ताओं पर हमले और धमकी देने के मामले 200% बढ़े हैं।अधिवक्ता संगठनों ने अनगिनत प्रदर्शन किए, हड़तालें कीं और सरकार से सुरक्षा सुनिश्चित करने की माँग की। पर जब सरकार ने विधेयक लाया, तो अधिवक्ताओं को संरक्षण नहीं, बल्कि दमन का हथियार थमा दिया गया। इसे कहते हैं  'माँगी थी छाँव, दे दिया रेगिस्तान!' अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2025’  संरक्षण या उन्मूलन?इस विधेयक में कई ऐसे प्रावधान जोड़े गए हैं, जो अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता को खत्म करने के लिए पर्याप्त हैं: सरकार के खिलाफ पैरवी करना ‘विशेष निगरानी’ के दायरे में आएगा

धारा 7(A): यदि कोई अधिवक्ता सरकार, सरकारी एजेंसी या किसी प्रशासनिक अधिकारी के खिलाफ बार-बार मुकदमे दायर करता है, तो उसकी गतिविधियों की ‘विशेष जाँच’ होगी।  मानवाधिकार मामलों, जनहित याचिकाओं, या पत्रकारों-कार्यकर्ताओं के लिए केस लड़ने वाले वकीलों को सरकार की एजेंसियों के निशाने पर लिया जाएगा। पुलिस या प्रशासनिक अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई मुश्किल होगी।

धारा 12(B): यदि किसी अधिवक्ता पर पुलिस द्वारा हमला किया जाता है, तो पहले अधिवक्ता को साबित करना होगा कि हमला ‘पूर्व नियोजित’ था, अन्यथा पुलिस अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी।

असर: पुलिस या प्रशासनिक अधिकारियों को वकीलों के खिलाफ हिंसा करने की खुली छूट मिलेगी।

अधिवक्ता संघों के आंदोलनों पर पाबंदीधारा 15(C): किसी भी वकील संगठन द्वारा सरकार के खिलाफ हड़ताल या प्रदर्शन करने को ‘न्यायिक व्यवस्था को बाधित करने वाला कार्य’ माना जाएगा और इसमें भाग लेने वालों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी।

असर: अधिवक्ताओं को अपनी आवाज उठाने का भी हक नहीं रहेगा।

बार काउंसिल की स्वायत्तता समाप्तधारा 20(E): बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के नियमों को सरकार अपनी मर्जी से संशोधित कर सकेगी और किसी भी अधिवक्ता का लाइसेंस रद्द करने का अधिकार रखेगी।

असर: सरकार अपने विरोधी वकीलों को सीधे पेशे से निकाल सकेगी।

कठोर दंड प्रावधानधारा 25(A): यदि कोई वकील अदालत में ‘अशोभनीय भाषा’ का प्रयोग करता है या न्यायाधीश के सामने ‘अनुचित तर्क’ रखता है, तो उसे छह महीने तक के निलंबन का सामना करना पड़ सकता है।

असर: वकीलों को अपने मुवक्किल के पक्ष में प्रभावी तर्क रखने में डर लगेगा, जिससे न्याय प्रक्रिया कमजोर होगी।सरकार का कहना है कि यह विधेयक वकीलों की जिम्मेदारियों को परिभाषित करने और न्यायिक प्रक्रियाओं को व्यवस्थित करने के लिए लाया गया है, पर असलियत यह है कि यह अधिनियम अधिवक्ताओं को सरकार के खिलाफ पैरवी करने से रोकने की साजिश है।

सरकार पहले ही पत्रकारों और एक्टिविस्टों को चुप करा चुकी है, अब बारी वकीलों की है। पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने पत्रकारों की स्वतंत्रता पर हमला किया, प्रेस पर पाबंदियाँ लगाईं, असहमति जताने वाले बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाला। अब सरकार की निगाह अधिवक्ताओं पर है, क्योंकि वकील लोकतंत्र की अंतिम दीवार होते हैं, जो सत्ता के दुरुपयोग को अदालतों में चुनौती देते हैं।

इतिहास गवाह है कि जब-जब अन्याय बढ़ा है, अधिवक्ता उसके खिलाफ खड़े हुए हैं। महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह के दौरान किसानों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी।बाबासाहेब अंबेडकर ने अस्पृश्यता के खिलाफ कानूनी अधिकार दिलाए- केशवानंद भारती केस (1973) में अधिवक्ताओं ने सरकार को संविधान में मनमाने बदलाव करने से रोका।अगर यह विधेयक कानून बनता है, तो यह लोकतंत्र और न्यायिक स्वतंत्रता की कब्र खोदने वाला सिद्ध होगा।

जब सरकार के खिलाफ वकील मुकदमा नहीं लड़ सकेंगे, तो जनता की आवाज कौन बनेगा?जब बार काउंसिल को सरकार नियंत्रित करेगी, तो वकीलों की स्वतंत्रता कैसे बचेगी।जब सरकार के खिलाफ दलील रखना अपराध बन जाएगा, तो फिर लोकतंत्र की क्या बची रह जाएगी?सरकार ने अधिवक्ताओं को संरक्षण देने के नाम पर उनकी स्वतंत्रता पर हमला किया है। यह विधेयक सिर्फ वकीलों का नहीं, बल्कि आम नागरिकों का भी गला घोंटने की तैयारी है। अगर वकील बंधे हुए होंगे, तो आम आदमी की आवाज अदालत में कौन उठाएगा? अगर अदालतें भी सरकारी फरमानों की मोहर लगवाने का केंद्र बन जाएंगी, तो फिर न्याय कहाँ बचेगा? लोकतंत्र की अंतिम पहरेदारी अधिवक्ताओं के हाथों में है। यह समय है कि वे अपनी आवाज बुलंद करें, वरना बहुत देर हो जाएगी।

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