Ayodhya News: श्री रामलला को समर्पित श्रीराम कथा का दूसरा दिन, अतुल कृष्ण भारद्वाज ने कहा- 'कलियुग में केवल राम नाम एवं सत्संग ही मोक्षाधार है'
Ayodhya News: कथाकार अतुल कृष्ण भारद्वाज महाराज स्वर्ग एवं नरक की सुंदर व्याख्या करते हुए कहते हैं कि "मुनष्य जब अपनी अज्ञानतावश भौतिक सुख के लिए दुराचार, पापाचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाता है।;
श्रीराम कथा का दूसरा दिन, अतुल कृष्ण भारद्वाज ने कहा- 'कलियुग में केवल राम नाम एवं सत्संग ही मोक्षाधार है' (Photo- Social Media)
Ayodhya News: अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि जन्मभूमि परिसर स्थित अगंद टीला पर श्री रामलला को समर्पित श्रीराम कथा के दूसरे दिन वृंदावन वासी कथाकार अतुल कृष्ण भारद्वाज महाराज स्वर्ग एवं नरक की सुंदर व्याख्या करते हुए कहते हैं कि "मुनष्य जब अपनी अज्ञानतावश भौतिक सुख के लिए दुराचार, पापाचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाता है, तो उसे नरकीय जीवन यापन करना पड़ता है, वह परमात्मा तक नहीं पहुँच पाता है एवं बार-बार जीवन भरण लीला में भटकता रहता है।
पूज्य व्यास जी बताते हैं कि इस कलियुग में श्रीमद् भागवत् एवं श्रीरामवरित मानस रूपी गगा ही, प्राणी को इस भवसागर से पार कराकर आत्मा का परमात्मा से मिलन करा सकती है यानि स्वर्ग की प्राप्ति संभव है। इस कलियुग में केवल राम नाम एवं सत्संग ही मोक्षाधार है।
"गृहस्थ जीवन कैसे होना चाहिए" "पति पत्नी के मध्य सम्बंध कैसे होने चाहिए यह सब नगवान शिव से सीखने को मिलता है। "कौन सी बात पत्नी को बताना चाहिये, कौन सी बात नहीं बताना चाहिये" - यह भी भगवान शिव बताते हैं।
आगे व्यास जी ने कहा कि पिता के घर, मित्र के घर, स्वामी के घर व गुरु के घर बिना बुलाये जाना चाहिये, परन्तु जब कोई समारोह हो तो विना बुलाये नहीं जाना चाहिये, ऐसी स्थिति में अपमानित होने के अलावा कुछ भी नहीं मिलता। पत्नी यदि किसी विषय पर हठ करें तो उसे कैसे समझाना चाहिये यह भगवान शिव से सीखना चाहिये। यदि पत्नी न माने तो भगवान भरोसे छोड़ देना चाहिये गृहस्थ जीवन में तनाव खडा करने से कुछ लाम नहीं होना है। समस्या का समाधान खोजना चाहिये। आज परिवार में माता-पिता, पति-पत्ती पुत्र -पुत्री "भाई बहन ही बातें नहीं मानते तो समाज का भरोसा कैसे किया जाए। समस्या चाहे कितनी बड़ी ही क्यों ना हो, मन और बुद्धि को शांत रखते हुये उस पर विचार करने से उसका निरमूलन हो जाता है।
पूज्य व्यास जी ने कहा कि मनुष्य आज औसत 70 वर्ष की आयु में जी रहा है। यदि इससे अधिक आयु है तो समझिये बोनस प्राप्त है। मनुष्य के जीवन में चार पडाव आते हैं उसका पूर्ण सदुपयोग करना चाहिये । अतिंम समय में जो सन्यास आश्रम की बात पुराणों में कहीं गयी है, उसका भी उसे पालन करना चाहिये लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वह घर-परिवार को छोडकर चला जाए. बल्कि घर को ही बैकुण्ठ बनायें। हनुमान जी की तरह भगवान के नाम का सुमिरन और कीर्तन व्करते रहें उन्होंने कहा कि शरीर का सम्बंध स्थाई नहीं होता। स्थाई सम्बंध तो आत्मा का परमात्मा से होता है, इसलिये मनुष्य को अपनी सोच का दायरा बढाना चाहिये, उसे संकुचित नहीं करना चाहिये । मनुष्य को "सियाराम में सब जग जानी" के सिद्धांत पर जीना चाहिये। सभी में परमात्मा का दर्शन करना चाहिये।
उन्होंने कहा मनुष्य को पद से नही मन से बड़ा होना चाहिए। मठ मंदिर गंगा स्नान और मेला सिनेमा हाल में जाति नही दिखती है,सभी समन्वय से मिलेंगे बस राजनीति में ही जाति पंथ संप्रदाय दिखता है। जो समाज राष्ट्र को क्षति पहुंचा रहा है।
भगवान ने सभी को एक साथ समन्वय से देखा और अपनाया फिर हम कौन होते है विभाजन करने वाले। आज की कथा में तीर्थ क्षेत्र महासचिव चंपतराय, बनवारी लाल महेश्वरी, भीष्मदत्त शर्मा, महावीर प्रसाद जैन,रचना शर्मा, प्रेमप्रकाश तिवारी,महेश मिश्र,गुलशन महाराज, पवन तिवारी, घनश्याम जायसवाल,रजनीश शर्मा,विनोद मिश्र, आदि भक्त उपस्थित रहे।
अयोध्याविश्व हिंदू परिषद द्वारा आज गोलाघाट स्थित जानकी जीवन मंदिर में अर्चक पुरोहित प्रशिक्षण वर्ग प्रारंभ
इस दौरान हनुमत निवास मंदिर के महंत प्रसिद्ध मानस व्याख्याकार मिथलेशनंदनी शरण महाराज, श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चम्पतराय,विहिप महामंत्रीबजरंग लाल बांगड़ा,संयुक्त महामंत्री कोटेश्वर राव,प्रभारी अरूण नेटकर,रघुनाथ दास शास्त्री प्रो लक्ष्मीकांत सिंह डा. विक्रमा पांडेय ,शिव प्रसाद शुक्ल ,धीरेश्वर वर्मा, संगठन मंत्रीअभिषेक प्रधानाचार्य अवनी पांडेय,शरद शर्मा, उमाशंकर मिश्र आदि उपस्थित रहे।संचालन- राजकुमार सिंह ने किया।
उपस्थित प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुये मिथलेशनंदनी शरण महाराज ने कहा 'देवालयों में बैठे भगवान भी बैकुण्ठ जैसे विराजमान हैं वह जिस प्रकार अपने बैकुण्ठ में विराजमान होकर समाज का कल्याण करते हैं। उसी प्रकार वह देवालयों/ मंदिरों में साक्षात विराजमान हैं,वह मूर्ति नही हैं यह बात अर्चक के मष्तिष्क में बैठनी चाहिए।
अर्चक की तप से ही ईश्वर का अवतरण मनुष्य में होता है। अर्चक को तेज सहने के लिये जागना पड़ता,अर्चना की निरंतरता,दृढ़ता बनाये रखना आवश्यक है। अनवरत प्रवाह देवालयों में बनी रहे इसके लिये अर्चकों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। यह प्रशिक्षण वर्ग अपने लक्ष्य की सिद्धि को अवश्य प्राप्त करेगा।