Ayodhya Ram Mandir: 2024 में राम ही राम...

Ayodhya Ram Mandir: भगवन राम के प्रति हम सबकी यह सच्ची पूजा होगी। हमें, हमारे समाज, हमारे देश को इसी भावना की बेहद सख्त जरूरत है।

Written By :  Yogesh Mishra
Update: 2023-12-25 15:39 GMT

Ayodhya Ram Mandir 

Ayodhya Ram Mandir: ‘सिय राम मय सब जग जानी।’ इन दिनों जग के जिस भी कोने में हिंदू रह रहे हैं, वहाँ इसका अहसास किया जा सकता है। चहुँओर सब राम मय है। हर तरफ़ राम राम है। वर्ष 2023 की अंतिम बेला है। 2024 के स्वागत की तैयारी है। ये सब है भगवान् श्री राम के साथ। भगवान श्री राम वैसे तो हमेशा कण कण में, जन जन में रहे हैं। अनंत काल तक रहेंगे। लेकिन 2024 सिर्फ और सिर्फ श्री राम के नाम है। यह साल बहुत ख़ास होने वाला है।

नए साल की शुरुआत में ही 22 जनवरी को अयोध्या में श्री राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह है। तैयारी पूरी है। अभी से जगह जगह राम यात्राएं शुरू हो गईं हैं। माहौल राममय बन चुका है। सिर्फ हमारे आपके शहर, गली, मोहल्ले में नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर भी। यूट्यूब पर नज़र दौड़ाइये, राम के गुणगान में भजन, गीत छाए हुए हैं। एक गायक हैं हंसराज रघुवंशी जिनका राम को समर्पित गीत मात्र 8 दिन में 62 लाख लोगों ने देखा सुना है। ऐसे ही गायक अर्जुन कहार का गीत महीने भर में 58 लाख बार देखा गया है। संजय म्यूजिक का जय श्री राम महीने भर में डेढ़ करोड़ बार देखा गया। स्वाति मिश्र का राम आएंगे महीने भर में साढ़े तीन करोड़ बार देखा गया।

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राम पर रील्स और शार्ट विडियो की भी धूम है। यूपी सरकार तो बाकायदा सोशल मीडिया इन्फ़्लुएन्सर्स से राममय कंटेंट बनवा रही है। ये चंद मिसालें है। जो बता रही हैं कि कण कण में राम हैं। जन जन में राम को पहुँचाने का काम तुलसी दास की राम चरित मानस ने किया।

मानस में राम शब्द 1443 बार और सीता शब्द 147 बार आता है। जानकी शब्द 69 बार आया है।बैदेही शब्द 51 बार आया है । श्लोकों की संख्या 27, चौपाई की संख्या 4608 है। दोहों की संख्या 1074, सोरठों की संख्या 207 तथा श्लोकों की संख्या 86 है। 'रम्' धातु में 'घञ्' प्रत्यय के योग से 'राम' शब्द निष्पन्न होता है।’रम्' धातु का अर्थ रमण (निवास, विहार) करने से सम्बद्ध है। वे प्राणीमात्र के हृदय में 'रमण' (निवास) करते हैं, इसलिए 'राम' हैं तथा भक्तजन उनमें 'रमण' करते (ध्याननिष्ठ होते) हैं, इसलिए भी वे 'राम' हैं - "रमते कणे कणे इति रामः"। ‘ विष्णु सहस्रनाम’पर लिखित अपने भाष्य में आद्य शंकराचार्य ने पद्म पुराण का उदाहरण देते हुए कहा है कि नित्यानन्दस्वरूप भगवान् में योगिजन रमण करते हैं, इसलिए वे 'राम' हैं।पहले रामायण 6 कांडों की होती थी। उसमें उत्तरकांड नहीं होता था।


फिर बौद्धकाल में उसमें राम और सीता के बारे में सच-झूठ लिखकर उत्तरकांड जोड़ दिया गया। उस काल से ही इस कांड पर विद्वानों ने घोर विरोध जताया था। विपिन किशोर सिन्हा ने एक छोटी शोध पुस्तिका लिखी है जिसका नाम है- 'राम ने सीता-परित्याग कभी किया ही नहीं।' यह किताब संस्कृति शोध एवं प्रकाशन वाराणसी ने प्रकाशित की है। इस किताब में वे सारे तथ्‍य मौजूद हैं, जो यह बताते हैं कि राम ने कभी सीता का परित्याग नहीं किया। रामकथा पर सबसे प्रामाणिक शोध करने वाले फादर कामिल बुल्के का स्पष्ट मत है कि 'वाल्मीकि रामायण का 'उत्तरकांड' मूल रामायण के बहुत बाद की पूर्णत: प्रक्षिप्त रचना है।'

( रामकथा उत्पत्ति विकास- हिन्दी परिषद, हिन्दी विभाग प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रथम संस्करण 1950)

ऋग्वेद में केवल दो स्थलों पर ही 'राम' शब्द का प्रयोग हुआ है।(10-3-3 तथा 10-93-94)। उनमें से भी एक जगह काले रंग (रात के अंधकार) के अर्थ में तथा शेष एक जगह ही व्यक्ति के अर्थ में प्रयोग हुआ है। लेकिन वहां भी उनके अवतारी पुरुष या दशरथ के पुत्र होने का कोई संकेत नहीं है। ऋग्वेद में एक स्थल पर 'इक्ष्वाकुः' (10-60-4) का तथा एक स्थल पर ‘ दशरथ' (1-126-4 ) शब्द का भी प्रयोग हुआ है। परन्तु उनके राम से सम्बद्ध होने का कोई संकेत नहीं मिल पाता है।


ब्राह्मण साहित्य में 'राम' शब्द का प्रयोग ऐतेरेय में दो स्थलों पर 7-5-1(=7-27)

तथा 7-5-8 (=7-34) हुआ है। परन्तु वहाँ उन्हें 'रामो मार्गवेयः' कहा गया है, जिसका अर्थ आचार्य सायण के अनुसार 'मृगवु' नामक स्त्री का पुत्र है। एक स्थल पर 'राम' शब्द का प्रयोग हुआ है (4-6-1-7-)। यहां 'राम' यज्ञ के आचार्य के रूप में है तथा उन्हें राम औपतपस्विनि कहा गया है।तात्पर्य यह कि प्रचलित राम का अवतारी रूप बाल्मीकीय रामायण एवं पुराणों की ही देन है।

स्वामी करपात्री ने रामायण मीमांसा में विश्व की समस्त रामायण का लेखा हैं , दक्षिण के क्रांतिकारी पेरियार रामास्वामी व ललई सिंह यादव की रामायण भी मान्यताप्राप्त है। विश्व के कई देशों में भी श्रीराम आदर्श के रूप में पूजे जाते हैं जैसे नेपाल , थाइलैंड, इंडोनेशिया आदि । संसद में एक जून 1996 का एक भाषण का ज़िक्र ज़रूरी हो जाता है, वाजपेयी ने बाली द्वीप का एक क़िस्सा सुनाया।


वाजपेयी ने कहा कि इंडोनेशिया के बाली द्वीप में एक महीने रामायण की लीला होती है। मैं उस समारोह में जा चुका हूं। उस समय उस देश के विदेश मंत्री मेरे पास बैठे थे। मैंने पूछा कि ये क्या हो रहा है? तो उन्होंने कहा कि ये आपको पता होना चाहिए। मैंने कहा मुझे तो पता है लेकिन मैं ये जानना चाहता हूं। तो उन्होंने बताया कि ये रामायण है। ये राम हैं और ये लक्ष्मण हैं। ये सीता हैं। फिर वाजपेयी ने पूछा कि इससे आपका क्या संबंध है? आप तो मुसलमान हैं, तो वो कहने लगे हमारा संबंध बहुत पुराना है, हमारा तबका संबंध है, जब हम मुसलमान नहीं हुए थे। इंडोनेशिया में बहुत से लोगों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया । लेकिन श्रीराम को विस्मृत नहीं किया। भुलाया नहीं। रही बात थाइलैंड की को यहाँ की राजधानी अयोध्या कही जाती है। थाईलैंड के राजा को आज भी राम कहा जाता है।

इन सब के साथ राम मय होने,रामोत्सव की बहुत बड़ी बड़ी वजहें भी हैं। सदियों के संघर्ष और कम से कम सत्तर साल की क़ानूनी लड़ाइयों के बाद अयोध्या में श्री राम जन्मस्थान को उसका अधिकार मिला है, हिन्दुओं के अथक परिश्रम और धैर्य का सिला अब सामने आया है, भगवन श्री राम का मंदिर साकार हो गया है। यह कोई छोटी या मामूली बात नहीं है, यह जन-जन से जुड़ी संवेदना और विजय की बात है।

रामकाज करिबे को आतुर।


हनुमान चालीसा की यह चौपाई अयोध्या में चहुंओर दिख रही है। हर तरफ़ लोग तन,मन,धन से अयोध्या को सजाने व मंदिर को दिव्य तथा भव्य बनाने में जुटे दिख रहे हैं।क्योंकि यह राम काज है। करोड़ों हिंदुओं की अर्पित आस्था,सभी पवित्र नदियों का जल व हजारों कलशों की मिट्टी, सात हज़ार मजदूर से अनगिनत महाजन तक, मठों के संत से मंदिरों के महंत तक, लोक से तंत्र तक, सब राम काज में लीन हैं। कर्नाटक के गणेश भट्ट, राजस्थान के सत्यनारायण पांडेय व अरुण योगीराज बाल सुलभ कोमलता वाली मूर्तियों के निर्माण में यह जान कर भी राम मय हैं कि जो सबसे आकर्षक होगी, केवल उसी का चयन होगा। आईआईटी दिल्ली के निदेशक प्रो वीएस राजू, आईआईटी सूरत व गुवाहाटी के निदेशकों के साथ सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की के विशेषज्ञों समेत एलएंडटी और टाटा कंसल्टिंग के इंजीनियर, सीबीआरआई हैदराबाद व आईआईटी मुंबई की टीम व इसरो राम के मस्तक पर सूर्य की पहली किरण से तिलक कराने में जुटी दिख रही है। इन सब लोगों के लगन, परिश्रम, कर्म का धर्म अयोध्या को उस वैभव की ओर ले जा रही है जो राम लला के विराजमान से परम वैभव को प्राप्त होगा। त्रेता कलयुग पर गर्व करेगा। कलयुग त्रेता सा गर्वान्वित होगा। क्योंकि कलयुग को त्रेता का वैभव मिल रहा है।राम को जन्म स्थान पर विराजने का सुयोग । मैथलीशरण गुप्त की लाइनें- देख लो साकेत नगरी है, यही..। साकार हो रहा है।

यही आकर्षण है कि पूरे देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से रामभक्त अयोध्या पहुँचने और राम लला के दर्शन के लिए आतुर हैं। कितनी ही स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रहीं हैं, श्रद्धालुओं के ठहराने के लिए कितने ही इंतजाम किये जा रहे हैं। अयोध्या का हवाई अड्डा तैयार है। चंद बरस पहले किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि 2024 में ऐसा कुछ होगा। लेकिन अब सब कुछ सामने है। यह श्री राम का वर्ष है।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अयोध्या की यात्रा करने का रिकॉर्ड बनाने वाले हैं। 1992 से 2024 तक पांच यात्रायें, ऐसा किसी भी राष्ट्रीय नेता ने नहीं किया है।


यही नहीं, मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने राम लला के दर्शन किये। सनातन भारत में ऐसा पहले हुआ ही नहीं था, जानकर हैरानी जरूर होती है।

राम मंदिर की खुशियाँ सिर्फ अयोध्या और भारत में ही नहीं, सात समंदर पार अमेरिका में भी मनाई जायेंगी। अमेरिका भर के मंदिर एक सप्ताह भर चलने वाले उत्सव की तैयारी कर रहे हैं। दर्जनों मंदिरों ने 15 जनवरी के कार्यक्रम के लिए पहले ही नामांकन करा लिया है, जिसमें पूरे उत्तरी अमेरिका में पुजारियों द्वारा श्री राम नाम संकीर्तन का जाप किया जाएगा।


21 जनवरी को, मंदिरों ने आसपास को रोशन करने, उद्घाटन का सीधा प्रसारण करने, शंख बजाने और प्रसाद वितरित करने की योजना बनाई है। अमेरिका ही नहीं, दुनिया में जहाँ जहाँ हिदू हैं, उन सभी जगहों पर उत्सव मनेगा।


भारत भर में 2024 के पहले दिन से घर-घर अक्षत बांटा जाएगा। यह कार्यक्रम 15 जनवरी तक पूरे देश में चलेगा। 22 जनवरी को राम मंदिर के उद्घाटन के अवसर पर लोगों को अपने स्थानीय मंदिरों में सभा आयोजित करने के लिए एक प्रतीकात्मक निमंत्रण दिया जाएगा।

तैयारी पूरी है। राम मंदिर समारोह सिर्फ एक दिन का नहीं होने वाला, यह महीनों तक चलेगा। तारतम्य टूटने वाला नहीं। 22 जनवरी तो एक तारिख है, उसी दिन से लाखों श्रद्धालुओं का सिलसिला शुरू हो जाएगा तो बढ़ता ही जाना है।


लेकिन एक सवाल भी है। क्या सिर्फ मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति के दर्शन करना ही पर्याप्त है? राम सिर्फ इतने तक ही सीमित हैं? कतई नहीं। मंदिर में सिर्फ दर्शन कर लेना ही काफी नहीं होगा, श्री राम के आदर्शों, उनके कार्यों, उनके आचरण को भी अपने में उतरना होगा। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आचरण और आदर्शों का लेश मात्र भी हम अपने जीवन में उतार लें तो काफी होगा। अयोध्या और राम मंदिर के दर्शन के साथ यह भावना सर्वोपरि होनी चाहिए। अगर इसे चूक गए तो बहुत कुछ गँवा देंगे, यह अवश्य जान लीजिये। यह उन अयोध्यावासियों को भी समझना होगा जो श्रद्धालुओं के आगमन को लेकर उत्सुक और उत्साहित हैं । क्योंकि यह एक बहुत बड़ा व्यवसाय भी बनने वाला है। धार्मिक टूरिज्म यानी विशाल बिजनेस अवसर।


लाभ कमाने की उम्मीद लगाये लोग भी अगर मर्यादाओं का पालन और सेवा भाव को रंच मात्र भी अपने में उतार लें तो कितना ही अच्छा होगा। भगवन राम के प्रति हम सबकी यह सच्ची पूजा होगी। हमें, हमारे समाज, हमारे देश को इसी भावना की बेहद सख्त जरूरत है।

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उम्मीद है हम सभी इसे अपने भीतर समाहित करेंगे और श्री राम उत्सव को हमेशा बनाये रखेंगे।क्योंकि भारत में किसी व्यक्ति को नमस्कार करने के लिए राम राम, जय सियाराम जैसे शब्दों को प्रयोग में लिया जाता है। ये भारतीय संस्कृति , मर्यादा, चेतना व आस्था के आधार हैं।

( लेखक पत्रकार हैं ।)

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