आशुतोष सिंह
वाराणसी: जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी और बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी। इन दोनों विश्वविद्यालयों की गिनती देश के अग्रणी शिक्षण संस्थाओं में होती है, लेकिन दुर्भाग्य से पिछले पांच सालों से दोनों राजनीति का अखाड़ा बन चुके हैं। वामपंथ और दक्षिणपंथ विचारधारा में उलझे दोनों संस्थानों में पिछले एक पखवाड़े से पढ़ाई पर अराजकता, विरोध और प्रदर्शन का दौर भारी पड़ता नजर आ रहा है। जहां जेएनयू में फीस को लेकर सरकार और छात्रों के बीच जंग जारी है तो बीएचयू में संस्कृत धर्म विज्ञान संकाय में मुस्लिम असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति पर बवाल मचा है। छात्रों का एक संगठन प्रो. फिरोज खान की नियुक्ति के विरोध में धरने पर बैठ गया है।
दरअसल, बवाल सिर्फ फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर ही नहीं है। बीएचयू के साउथ कैम्पस में जब डिप्टी चीफ प्रॉक्टर ने आरएसएस के झंडे को हटाने की ‘हिमाकत’ की तो छात्रों ने न सिर्फ उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया, बल्कि उनके खिलाफ थाने में मुकदमा भी दर्ज कर दिया गया। वीर सावरकर को लेकर भी बीएचयू में छात्रों में दो फाड़ देखा जा रहा है। पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट में जब कुछ वामपंथी विचारधारा के छात्रों ने सावरकर की फोटो पर स्याही फेंकी तो बवाल होना लाजिमी था, और हुआ भी।
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छात्रों के रवैये से दुखी हैं फिरोज
अपने खिलाफ बढ़ते विरोध को देख असिस्टेंट प्रोफेसर फिरोज खान बेहद दुखी हैं। उन्हें इस बात का जरा सा इल्म नहीं था कि उनकी नियुक्ति पर इस कसर विरोध होगा। मूलरूप से राजस्थान के रहने वाले फिरोज ने राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से पढ़ाई की है। फिरोज खान को 14 अगस्त को संस्कृत दिवस की पूर्व संध्या पर जयपुर में आयोजित राज्य स्तरीय समारोह में संस्कृत युवा प्रतिभा सम्मान समारोह में सम्मानित किया गया था। फिरोज के पिता रमजान खान भी संस्कृत के जानकार हैं। फिरोज खान कहते हैं कि बचपन से लेकर पीएचडी तक शिक्षा में उन्हें कभी धार्मिक भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा।
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सभी लोगों ने संस्कृत पढऩे के लिए प्रोत्साहित किया लेकिन बीएचयू में प्रोफेसर बनते ही उन्हें धर्म के आधार पर देखा जाने लगा। उनके मुताबिक सभी धर्म एकता और शांति का संदेश देते हैं। सिर्फ फिरोज ही नहीं बीएचयू के पूर्व छात्र भी धार्मिक आधार पर हो रहे इस भेदभाव से आहत हैं। कला संकाय के पूर्व छात्र रोहित आनंद पाठक कहते हैं कि इस तरह की परंपरा बेहद खतरनाक है। पढ़ाई को धर्म के खांचे में बैठाना कहीं से ठीक नहीं है। शिक्षा विभाग के अमित कुमार के मुताबिक अगर संस्कृत भाषा पढ़ाने के लिए हिन्दू होना जरूरी है, तो फिर इंग्लिश सिर्फ ईसाई ही पढ़ाएं। इसी तरस फारसी क्या सिर्फ एक मुस्लिम ही पढ़ाएगा। ये बिल्कुल गलत है।
आरएसएस की झंडे पर झगड़ा
आम तौर पर शांत रहने वाले बीएचयू के साउथ कैम्पस बरकछा में भी पिछले दिनों एक नए विवाद ने जन्म दिया। मामला जुड़ा था आरएसएस के झंडे को लेकर। कैंपस में वर्षों से लगने वाली आरएसएस की शाखा से जब डिप्टी चीफ प्रॉक्टर किरण दामले ने झंडा हटवाया तो दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े छात्र आग बबूला हो उठे। कैंपस में आंदोलन शुरू हो गया। डिप्टी चीफ प्रॉक्टर का कहना है कि खेल के मैदान में इस तरह की एक्टिविटी पर ही रोक लगाई है।
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जहां तक शाखा की बात है तो उसे कैम्पस में कहीं और लगा सकते हैं। मामले ने तूल पकड़ा तो डिप्टी चीफ प्रॉक्टर के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया। उनके खिलाफ जिन धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ है उसमें पांच साल की सजा तक हो सकती है। फिलहाल बीएचयू प्रशासन यह कह रहा है कि वो अपनी गलती मान कर लिखित माफीनामा देने को भी तैयार हैं। मामला आरएसएस से जुड़ा था लिहाज बीजेपी भी इसमें कूद पड़ी और पार्टी विधायक रत्नाकर मिश्रा कड़ी कार्रवाई की मांग करने लगे।
वीर सावरकर की फोटो पर झगड़ा
बीएचयू में विवाद वीर सावरकर को लेकर भी चल रहा है। पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट में लगी वीर सावरकर की फोटो को कुछ छात्रों ने जमीन पर फेंक दिया और उसपर स्याही लगा दी। थी। आरोप है कि ‘आइसा’ से जुड़े छात्रों ने ये हरकत की थी। सूचना मिलते ही एवीबीपी के छात्र भी सामने आ गए और हंगामा करने लगे। कुछ छात्र डिपार्टमेंट में ही धरने पर बैठ गए।
मौके पर पहुंचे डीन ने सावरकर की फोटो को दीवार पर लगवाया, तब कहीं जाकर मामला शांत हुआ। पांच सालों से बीएचयू में दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े संगठन मजबूत हुए हैं। यही कारण है कि तीन साल पहले पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट के सभी कमरों में महात्मा गांधी, भीमराव अंबेडकर और वीर सावरकर की फोटो लगाई गई थी। बताया जाता है कि ‘आइसा’ से जुड़े कुछ छात्रों ने कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर सावरकर की फोटो उखाड़ फेंकने का एलान किया था। मामले में छात्रों के आक्रोश को देख तीन सदस्यीय टीम का गठन किया गया है जो इस मामले की जांच करेगा।
क्या है छात्रों की आपत्ति और क्या है अधिनियम?
धरने पर बैठे शोध छात्र चक्रपाणि ओझा कहते हैं कि हम किसी मजहब या जाति के खिलाफ नहीं है। हमारे विरोध सिर्फ इस बात को लेकर है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक ऐसी नियुक्ति की है जो विश्वविद्यालय अधिनियम 1915 के खिलाफ है। चक्रपाणि के मुताबिक ये नियुक्ति मालवीय जी के मूल्यों के भी खिलाफ है। धरने पर बैठे एक अन्य छात्र शुभम कहते हैं कि संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में अनार्यों (गैर हिन्दू, सिक्ख, बौद्ध और जैन) की नियुक्ति नहीं हो सकती है। बावजूद इसके साजिश और भ्रष्टाचार करके फिरोज खान की नियुक्ति की गई। छात्रों के मुताबिक बीएचयू के शिलालेख पर भी लिखा है कि संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में गैर हिंदू न तो अध्ययन कर सकता है और न ही अध्यापन, तो एक मुस्लिम की नियुक्ति क्यों की गई? आंदोलन के 12 वें दिन छात्रों के एक गुट ने कुलपति राकेश भटनागर की गाड़ी को निशाना बनाया। छात्रों ने वीसी की गाड़ी पर पानी की खाली बोतलें और कुछ अन्य सामान फेंका। इस घटना को विश्वविद्यालय प्रशासन ने गंभीरता से लिया है।
पीआरओ राजेश सिंह के मुताबिक आरोपियों को चिन्हित करके कार्रवाई की जाएगी। इस बीच छात्रों के आंदोलन को अब हिंदूवादी संगठनों ने भी समर्थन देना शुरू कर दिया है। विश्व हिन्दू परिषद ने मुस्लिम प्रोफेसर की नियुक्ति को तथ्यात्मक रूप से गलत माना है। विहिप के मुताबिक शिक्षक की नियुक्ति सामान्य अध्ययन में नहीं, बल्कि संस्कृत संकाय में हुई है। इसमें जिन धर्मों का जन्म भारत में हुआ है, उसकी शिक्षा दी जाती है। भारत के धर्म के दर्शन, परंपराओं और पूजा पद्धति को पढ़ाया जाता है। ऐसे में विश्वविद्यालय प्रशासन को नियुक्ति के फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।
मुस्लिम प्रोफेसर की नियुक्ति पर हंगामा
नवंबर का पहला हफ्ता बीतते-बीतते ये खबर आई कि बीएचयू के संस्कृत धर्म विज्ञान संकाय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाले फिरोज खान की नियुक्ति हुई है। ये खबर कैम्पस में जंगल के आग की तरह फैली। हालांकि उस वक्त अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के चलते छात्र सयंमित दिखे, लेकिन इसके बाद मामला गर्मा गया। छात्रों ने आंदोलन तेज कर दिया और वीसी आवास के बाहर धरने पर बैठ गए। छात्रों की मांग थी कि फिरोज खान की नियुक्ति गलत है और उसे रद्द किया जाए। लेकिन बीएचयू प्रशासन ने पत्र जारी करते हुए साफ कर दिया कि फिरोज खान की नियुक्ति यूजीसी की गाइड लाइन के तहत हुई है। विश्वविद्यालय धर्म, संप्रदाय और लिंग के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं करता। विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रों से आंदोलन खत्म करने की अपील की लेकिन बात नहीं बनी। छात्रों ने आंदोलन और तेज कर दिया और धरना स्थल पर अखंड सुंदर कांड का पाठ शुरू कर दिया। छात्रों का कहना था कि जब तक फिरोज खान की नियुक्ति रद्द नहीं होती आंदोलन जारी रहेगा।
सिलेबस में रामायण और महाभारत हटाने पर बवाल
विवादों की आग हिस्ट्री डिपार्टमेंट में भी पहुंच गई है। यहां पर इतिहास के नए पाठ्यक्रम से वैदिक काल , रामायण और महाभारत को हटा दिया गया है। इसके बदले ब्रिटिश काल से जुड़े विषय को शामिल किया गया है। नए पाठ्यक्रम से छात्र नाराज हैं। छात्रों का आरोप है कि वामपंथी विचारधारा से जुड़े प्रोफेसरों ने जानबूझकर ऐसा किया है। छात्रों को संस्कृति और सभ्यता से दूर करने की साजिश की जा रही है।