UP Politics: मायावती के ऐलान से सबसे बड़े सूबे में बिगड़ा विपक्ष का खेल, भाजपा के खिलाफ साझा उम्मीदवार उतारने की रणनीति फेल

UP Politics: मायावती के इस ऐलान के बाद देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में विपक्षी एकजुटता की कोशिशों को पलीता लग गया है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update: 2024-01-16 05:33 GMT

Mayawati  (photo: Newstrack.com )

UP Politics: बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती की ओर से अकेले चुनाव लड़ने के ऐलान का बड़ा सियासी असर पड़ना तय माना जा रहा है। मायावती ने पूरी तरह साफ कर दिया है कि अगले लोकसभा चुनाव के दौरान बसपा अपने दम पर चुनाव लड़ेगी और किसी के साथ कोई भी गठबंधन नहीं करेगी।। मायावती के इस ऐलान के बाद देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में विपक्षी एकजुटता की कोशिशों को पलीता लग गया है।

दरअसल विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया ने 2024 की सियासी जंग के दौरान विभिन्न राज्यों में भाजपा के खिलाफ साझा उम्मीदवार उतारने की रणनीति तैयार की है। इस रणनीति को अमली जामा पहनाने के लिए विभिन्न राज्यों में सीट शेयरिंग को लेकर चर्चा भी शुरू हो चुकी है। ऐसे में मायावती का ऐलान विपक्षी एकजुटता की कोशिशों को बड़ा झटका पहुंचाने वाला है। मायावती के ऐलान के बाद 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में भाजपा विरोधी मतों का बंटवारा तय हो गया है।

सीट शेयरिंग पर चर्चा में जुटा है विपक्ष

इंडिया गठबंधन में शामिल विभिन्न दलों के बीच इन दिनों राजधानी दिल्ली में सीट शेयरिंग के मुद्दे पर जोर-शोर से चर्चाएं चल रही हैं। कांग्रेस की अगुवाई में विभिन्न राज्यों के क्षेत्रीय दलों के साथ चर्चा की जा रही है। हालांकि यह भी सच्चाई है कि पश्चिम बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र, गोवा और बिहार जैसे राज्यों में सीट बंटवारे को लेकर पेंच फंसा हुआ है।

हालांकि कांग्रेस और विपक्ष के नेताओं का कहना है कि बातचीत के जरिए सीट बंटवारे की उलझी गुत्थी को सुलझाने की कोशिश की जा रही है। वैसे विपक्षी गठबंधन के लिए राहत पहुंचाने वाली बात यह है कि कई राज्यों में सीट बंटवारे को लेकर सहमति बनती दिख रही है।

राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक जैसे राज्यों में कांग्रेस ड्राइविंग सीट पर बैठी हुई है और ऐसे में इन राज्यों में कोई दिक्कत नहीं आने वाली है।

कांग्रेस कर रही थी बसपा की वकालत

कांग्रेस की ओर से उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी को विपक्षी गठबंधन में शामिल करने की कोशिश की जा रही थी। कांग्रेस नेता लगातार इस बाबत बयान भी दे रहे थे। कांग्रेस के उत्तर प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय ने भी हाल में कहा था कि बसपा के शामिल होने से उत्तर प्रदेश में विपक्षी गठबंधन को मजबूती मिलेगी और भाजपा के खिलाफ साझा उम्मीदवार उतारने का विपक्ष को बड़ा फायदा मिलेगा। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय भी बसपा को साथ लेने की वकालत कर रहे थे मगर अब मायावती ने अपना रुख पूरी तरह साफ कर दिया है।

हालांकि इस मामले में यह भी सच्चाई है कि समाजवादी पार्टी बसपा को विपक्षी गठबंधन में शामिल करने को तैयार नहीं थी क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद दोनों दलों का गठबंधन टूट गया था। इसके बाद से ही दोनों दल एक-दूसरे पर हमला करते रहे हैं। सपा-बसपा के इस बैर ने उत्तर प्रदेश में विपक्ष की सियासी बिसात बिगाड़ दी है।

मायावती के पास मजबूत वोट बैंक

मायावती की ओर से उठाए गए इस कदम का बड़ा असर पड़ना तय माना जा रहा है। उत्तर प्रदेश में करीब 20 फ़ीसदी दलित वोट हैं। हालांकि भाजपा इस वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब हो चुकी है मगर फिर भी अभी दलित वोट बैंक का बड़ा हिस्सा मायावती से जुड़ा हुआ है। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को प्रदेश की एक भी सीट पर कामयाबी नहीं मिली थी मगर पार्टी को 19.77 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे।

2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने सपा के साथ गठबंधन किया था। 2019 में बसपा ने 19.43 फ़ीसदी मतों के साथ 10 सीटों पर जीत हासिल की थी। ऐसे में बसपा के अलग होकर चुनाव लड़ने से भाजपा विरोधी मतों का बंटवारा होगा जिससे भाजपा को बड़ा सियासी लाभ मिलने की संभावना जताई जा रही है।

अब मुस्लिम मतों का बंटवारा तय

इसके साथ ही मायावती के फैसले से मुस्लिम मतों के बंटवारे का भी बड़ा खतरा पैदा हो गया है। उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी एकमुश्त मुस्लिम वोट पाने में कामयाब हुई थी मगर अब 2024 के लोकसभा चुनाव में वैसी स्थिति नहीं दिखने वाली है। बसपा मुखिया मायावती की भी मुस्लिम मतों पर अच्छी पकड़ मानी जाती रही है। मुस्लिम बहुल सीटों पर बसपा पहले भी मुस्लिम प्रत्याशी उतारती रही है। इस बार भी मायावती की ओर से यही रणनीति अपनाए जाने की संभावना है। इस कारण एकमुश्त मुस्लिम वोट पाने के सपा के अरमानों पर पानी फिर सकता है।

मुस्लिम मतों के इस बंटवारे का भी भाजपा को बड़ा सियासी लाभ मिल सकता है। सोमवार को अपने जन्मदिन पर आयोजित प्रेस कांफ्रेंस के दौरान मायावती ने समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव पर तीखा हमला बोला था। ऐसे में साफ है कि चुनाव प्रचार के दौरान भी वे सपा पर तीखे हमले जारी रखेंगी। सियासी जानकारों का मानना है कि विपक्ष की इस आपसी लड़ाई का फायदा उठाने में भाजपा कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेगी।

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