मायावती ने कहा- केंद्रीय बजट लच्छेदार बातों वाला छलावा, सिर्फ हवा-हवाई बयानबाजी

बसपा सुप्रीमों मायावती ने केंद्रीय बजट को लच्छेदार बातों वाला छलावा करारते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी को अपनी जुमलेबाजी बन्द करनी चाहिए। अच्छे दिन कहां है, यह तथ्यों और तर्कों के आधार पर बताना चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो देश की सवा सौ करोड़ जनता से सीना तानकर किए गए चुनावी वादे के लिए देश से माफी माँगनी चाहिए। अब तक सिर्फ हवा-हवाई बयानबाजी की गई है। वर्तमान में युवाओं को पकौड़ा बेचकर रोजगार सृजित करने के सुझाव की जरूरत नहीं है। सरकार की नीतियों की वजह से अमीर और गरीब के बीच खाई बढती जा रही है।

Update: 2018-02-01 10:24 GMT

लखनऊ: बसपा सुप्रीमों मायावती ने केंद्रीय बजट को लच्छेदार बातों वाला छलावा करारते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी को अपनी जुमलेबाजी बन्द करनी चाहिए। अच्छे दिन कहां है, यह तथ्यों और तर्कों के आधार पर बताना चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो देश की सवा सौ करोड़ जनता से सीना तानकर किए गए चुनावी वादे के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए। अब तक सिर्फ हवा-हवाई बयानबाजी की गई है। वर्तमान में युवाओं को पकौड़ा बेचकर रोजगार सृजित करने के सुझाव की जरूरत नहीं है। सरकार की नीतियों की वजह से अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ती जा रही है।

अब तक सिर्फ हवा-हवाई बयानबाजी

केंद्रीय बजट पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मायावती ने गुरुवार (1 जनवरी) को जारी एक बयान में कहा कि केवल लच्छेदार बातों से ग़रीबों और मेहनतकश जनता का पेट नहीं भरने वाला है, बल्कि सरकार ने अब तक जो भी दावे और वायदे किए हैं। उनकी वास्तविकताओं का लेखा-जोखा भी जनता की संतुष्टि के लिये जरूर बताना चाहिए, जो अब तक नहीं किया गया है। सिर्फ हवा-हवाई बयानबाजी ही की गयी है।

‘पकोड़ा बेचकर’ रोज़गार अर्जित करने के सरकारी सुझाव की जरूरत नहीं

वास्तविक भारत के हितों की रक्षा करने वाला बजट नहीं है। वर्तमान में युवाओं को बेहतर रोजगार के अवसर मुहैया कराने की ज़रूरत है, ना कि ‘पकोड़ा बेचकर’ रोज़गार अर्जित करने के सरकारी सुझाव की। करोड़ों शिक्षित बेरोज़गार मजबूरी में पहले से ही पकोड़ा और चाय बेचने वाला काम कर रहे हैं, जो उनकी कौशलता के हिसाब से न्यायोचित नहीं है। यह सरकार की विफलता का जीता-जागता प्रमाण है।

अमीरों और गरीबों के बीच खाई बढ़ रही खाई

वास्तव में मोदी सरकार की अब तक जो प्राथमिकतायें रहीं हैं देश के करोड़ों ग़रीबों, मजदूरों, किसानों के हितों को साधने वाली नहीं रही हैं। विकास के सरकारी दावों को थोड़ा भी लाभ इन वर्गों के लोगों को नहीं मिल पाया है। इस वजह से अमीरों और ग़रीबों के बीच खाई बढ़ती जा रही है। इससे समाज उद्ववेलित व तनाव में है। यह सरकार की पूरी प्राथमिकताओं व दावों की पोल भी खोलता है।

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