मल्हनी उप चुनाव: प्रचार का शोर थमा, योगी और अखिलेश की प्रतिष्ठा दांव पर

भाजपा की बात करें तो चुनाव की घोषणा के एक दिन पहले से चुनाव प्रचार बन्द होने के एक दिन पहले तक सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ मल्हनी की जनता से तीन बार रूबरू हुए दो बार तो मल्हनी में आये और एक बार वर्चुअल मिटिंग करके जनता से रूबरू हुए थे इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री मल्हनी विधानसभा सीट को लेकर कितने गम्भीर है।

Update:2020-11-01 17:00 IST
मल्हनी उप चुनाव: प्रचार का शोर थमा, योगी और अखिलेश की प्रतिष्ठा दांव पर (Photo by social media)

जौनपुर: मल्हनी विधानसभा के उप चुनाव के लिये प्रचार आज बन्द हो गया 03 नवम्बर को मतदान होगा। सपा और भाजपा के प्रचारकों की मल्हनी में उपस्थिति यह संकेत करती है कि इस सीट को लेकर सपा के अखिलेश यादव एवं प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। हलांकि वर्ष 2012 में मल्हनी विधानसभा का गठन हुआ था तभी से इस सीट पर सपा का कब्जा रहा है। सपा अपनी सीट बचाते हुए सपा जनों में जोश का संचार करना चाहती है तो भाजपा सत्ता की हनक पर इस सीट को उप चुनाव में छीनना चाहती है। मतदाता किसके साथ जायेगा और किसकी प्रतिष्ठा बचायेगा यह तो गणना के बाद साफ हो सकेगा।

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मुख्यमंत्री मल्हनी विधानसभा सीट को लेकर कितने गम्भीर है

भाजपा की बात करें तो चुनाव की घोषणा के एक दिन पहले से चुनाव प्रचार बन्द होने के एक दिन पहले तक सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ मल्हनी की जनता से तीन बार रूबरू हुए दो बार तो मल्हनी में आये और एक बार वर्चुअल मिटिंग करके जनता से रूबरू हुए थे इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री मल्हनी विधानसभा सीट को लेकर कितने गम्भीर है।

भाजपा के पक्ष में वोट मांगने आये थे

इसके अलावां भाजपा के दोनों उप मुख्यमंत्री एवं केशव प्रसाद मौर्य, एवं डा दिनेश शर्मा सहित प्रदेश अध्यक्ष स्वतन्त्र देव सिंह, कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, फिल्म स्टार सांसद रवि किशन के अलावां सभी गठबंधन के नेता यहाँ भाजपा के पक्ष में वोट मांगने आये थे।

इतना ही नहीं तीन मंत्री उपेन्द्र तिवारी, अनिल राजभर, गिरीश चन्द यादव अनवरत मल्हनी विधानसभा क्षेत्र में रह रहे थे। साथ ही पूरी भाजपा लगा दी गयी थी। इतना सबकुछ के बाद भाजपा के चुनाव प्रचार का असर मतदाताओं पर होता नजर नहीं आया। भाजपा का आंकलन चौथे नम्बर पर जनता आंकती रही है यूं तो परिणाम आने के बाद ही स्थित साफ़ हो सकती है।

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इस विधानसभा में सपा के मूल मतदाता यादव समाज की संख्या सबसे अधिक है

सपा की बात करे तो पहले यह बतादे कि मल्हनी जब से बनी है तब से ही इस सीट पर सपा का कब्जा रहा है इसका कारण यह है कि इस विधानसभा में सपा के मूल मतदाता यादव समाज की संख्या सबसे अधिक है। भाजपा द्वारा लाख प्रयास एवं मंत्री आदि लगाने के बाद आज भी यहां पर सपा को नम्बर वन कहा जा रहा है।

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव सशरीर मल्हनी भले ही नहीं आये लेकिन इस उप चुनाव की कमान सपा की ओर से स्वयं सम्भले हुए हैं। प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल, सहित पूर्व मंत्री शैलेन्द्र यादव ललई, एम एल सी लीलावती कुशवाहा, तथा प्रभारी के रूप में एम एल सी राम बृक्ष यादव सहित पूर्व विधायक गुलाब चन्द सरोज,जिलाध्यक्ष लाल बहादुर यादव, के अलावां पूर्वांचल के जिलों में सपा के सभी नेताओं को प्रचार अभियान में लगाया गया था।

सपा ने अपनी इस सीट को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दिया

सपा प्रचारकों की संख्या इतनी थी प्रत्येक गाँव में सपा जन पूरे दिन जनता से संवाद करते नजर आये। सपा ने अपनी इस सीट को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दिया था और सफलता के आसार भी नजर आ रहें है। क्योंकि इस दल को जनता के बीच सरकार के नाराजगी का पूरा लाभ मिलने की प्रबल संभावना है।

इसके अलावां बसपा की बात करे तो इस पार्टी ने ब्राह्मण कार्ड खेला लेकिन इसका पूरा लाभ बसपा की झोली में जाता नजर नहीं आ रहा है। हलांकि ब्राह्मण समाज को पटाने के लिये बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चन्द मिश्रा एवं मुनकाद अली जन सभा करने मल्हनी आये थे। परन्तु कोई असर इनके समाज पर नहीं पड़ सका है। फिर भी बसपा अपने मूल मतदाताओं के साथ लड़ाई में दिखाई दे रही है।

इस चुनाव में अपना सब कुछ दांव पर लगायें हुए हैं

इन सबके अलावां निर्दल प्रत्याशी धनन्जय सिंह भी इस चुनाव में अपना सब कुछ दांव पर लगायें हुए हैं। इनके बिषय में बता दे कि मल्हनी जब रारी विधानसभा थी तो सन् 2002 में निर्दल प्रत्याशी के रूप में प्राण रक्षा की सहानुभूति पर चुनाव जीते थे फिर 2007 में भी बसपा से विधायक हुए 2009 में अपने पिता को बसपा से विधायक बनवा दिया। लेकिन जब 2012में मल्हनी विधानसभा बनी तब से ये लड़ते तो हर बार रहे लेकिन दूसरे स्थान पर ही रहे।

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बसपा से निकले जाने के बाद ये लगातार प्रयास रत रहे

सबसे मजेदार बात यह है कि बसपा से निकले जाने के बाद ये लगातार प्रयास रत रहे कि कोई राजनैतिक दल इन्हें अपने सिम्बल से चुनाव लड़ाये लेकिन असफल रहे। उप चुनाव में भी हाथ पांव काफी मारे लेकिन निर्दल ही लड़ना पड़ा है। अपने खुद के कार्यकर्ताओं की बदौलत टक्कर तो दे रहे हैं लेकिन नम्बर दो से आगे जाना कठिन नजर आ रहा है। हां इतना जरूर है कि जितना मजबूती से चुनाव लड़ रहे हैं उतना भाजपा को के ताबूत में किल ठोकने का काम कर रहे हैं।

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इस तरह इस उप चुनाव में भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ एवं सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ निर्दल प्रत्याशी धनन्जय सिंह की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। यहां एक बात और है कि यदि निष्पक्ष रूप से चुनाव में मतदान सम्पन्न हुआ और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग नहीं हुआ तो यह सीट सपा से छीनना कठिन ही नहीं नामुमकिन भी हो सकता है।

कपिल देव मौर्य, जौनपुर

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