राजधानी में हर आदमी इनसिक्योर, मर्डर-रेप और लूट पर नहीं पुलिस का जोर

Update: 2016-03-05 17:06 GMT

'डिलिवरी मैन से दिनदहाड़े बंधक बनाकर लूट'- (आशियाना थाना क्षेत्र की घटना)

आशियाना में पैदल जा रही बुजुर्ग महिला से बाइक सवार युवकों ने पर्स लूटा- (आशियाना थाना क्षेत्र की घटना)

'अपार्टमेंट मालिक के ऑफिस पर बदमाशों ने की फायरिंग'- (गुडंबा थाना क्षेत्र की घटना)

'मिठाई चौराहे पर कार में बैठे शख्स ने मामूली कहा-सुनी में मारी गोली, पुलिस नदारद'- (गोमतीनगर थाना क्षेत्र की घटना)

'इंदिरानगर में लुटेरे बेलगाम, डी-ब्लॉक में सुबह 8:30 बजे घर में घुस के मचाई लूट'- (गाजीपुर थाना क्षेत्र की घटना)

'भाग रहे बंदी को प्रभारी ने दबोचा'- (जिला एवं सत्र न्यायालय की घटना)

ऊपर लिखे शब्द किसी शायर की नज्म नहीं बल्कि अखबारों और न्यूज चैनलों पर पिछले 2-3 दिनों में आ चुकी लखनऊ की वो खबरें हैं, जिन्हें देख-सुन कर आम आदमी अपनी सुरक्षा को लेकर संशय में रहता है। ये खबरें बयां करती हैं कि किस तरह राजधानी में जुर्म बढ़ते जा रहे हैं। साथ ही उन्हें अंजाम देने वाले मुजरिमों की हिम्मत की भी दाद देनी होगी। इन सबको रोकने में पुलिस पूरी तरह नाकाम साबित हो रही है।

आखिरी खबर से, अगर, शुरुआत की जाए तो भाग रहे मुजरिम को जिस कांस्टेबल ने दौड़ कर पकड़ा उसे एसएसपी राजेश कुमार पांडेय ने 2500 हज़ार रुपए का ईनाम दिया है। अच्छी बात है। ईनाम मिलना भी चाहिए। लेकिन आशियाना, गुडंबा, गोमतीनगर, इंदिरानगर थाना क्षेत्र में दिनदहाड़े हुई वारदातों का क्या? इन थानों की पुलिस क्या कर रही थी? या सिर्फ कांस्टेबल को ईनाम देकर पुलिस अपनी ड्यूटी पूरी समझ रही है?

हो सकता है कि पुलिस के कांस्टेबल पूरी मुस्तैदी से अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हों। लेकिन अफसोस, तब होता है जब राजधानी पुलिस के आला अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों में लापरवाही बरतने लगते हैं। ये खबरें तो बानगी भर हैं। ये वो जुर्म हैं जो रात के काले अंधेरे में नहीं बल्कि दिन के उजाले में अंजाम दिए गए हैं।

जिस आशियाना थाना क्षेत्र में एक दिन पहले डिलीवरी मैन को लूटा गया, 24 घंटे भी नहीं गुजरे कि वहीं एक और बुजर्ग महिला का पर्स लूट लिया जाता है। पुलिस कुछ नहीं करती। गुडंबा थाना क्षेत्र में 25 लोग एक ऑफिस में फायरिंग कर दहशत फैलाते हैं। पुलिस की मुस्तैदी का नतीजा-सिफर।

गोमतीनगर थाना क्षेत्र में दोपहर एक बजे मामूली सी बात पर बाइक सवारों ने एक शख्स को गोली मार दी। सिर्फ यही घटना काफी है साबित करने के लिए कि अपराधी किस कदर बेखौफ हो चुके हैं। बड़ी बात तो ये है कि अब हर शख्स कलम की जगह असलहे पर ज्यादा यकीन करने लगा है। इंसान के जेहन में ज्ञान का उजाला तो न के बराबर है लेकिन हाथों में जब बंदूक हो तो खुद को खुदा से कम नहीं समझता।

जुर्म की कुछ ऐसी दास्तानें भी हैं जिन्हें भरे चौराहों पर अंजाम दिया गया तो कहीं घर में घुस कर लूट की गई और मुजरिम पुलिस की फाइलों में कैद होकर रह गए हैं। इंदिरानगर के डी-ब्लॉक जैसे पॉश इलाके में शुकवार की रात 8:30 बजे लूट की घटना एक ताजा उदहारण है। हालांकि, एफआईआर लिखकर पुलिस विक्टिम्स पर एक 'एहसान' जरूर कर देती है। फिर चाहे गोमतीनगर के मिठाई चौराहे पर हुआ गोलीकांड ही क्यों न हो, वो भी दिनदहाड़े। एफआईआर लिखी और काम खत्‍म।

वहीं, सूत्रों की मानें तो राजधानी के थानों और सर्किल में तैनात ज़्यादातर एसओ और सीओ सीधे सत्ताधारी दल से जुड़े हैं। कुछ की पहुंच तो सीधे सीएम से है। इसलिए ज्यादातर मामलों में आला अधिकारियों का दबाव इन पर नहीं है।

इस बारे में एसएसपी राजेश कुमार पांडेय का कहना है कि ज्यादातर आपराधिक मामलों में पुलिस ने आरोपियों को जेल भेजा है। बाकी मामलों की जांच चल रही है। डीजीपी ने भी पुलिस को फील्ड में रहकर जनता के बीच काम करने का निर्देश दिया है।

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