Durga Puja 2022: दुर्गा पूजा का भोग होता है बहुत खास

Durga Puja 2022: दुर्गा पूजा पर भोग बहुत साधारण होता है - खिचड़ी, लबरा या चोड़चड़ी और चटनी। यही है दुर्गा पूजा का क्लासिक भोग। खिचड़ी के साथ चोड़चड़ी का गज़ब का कॉम्बिनेशन होता है।

Written By :  Neel Mani Lal
Update: 2022-10-02 13:31 GMT

Durga Puja 2022। (Social Media)

Durga Puja: दुर्गा पूजा पंडालों में जो भोग चढ़ाया और श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है उसका स्वाद ही एकदम अनोखा और अद्भुत होता है। भोग ग्रहण करने वाले बस मन में यही सोचते हैं कि रोजमर्रा के खाने का स्वाद ऐसा क्यों नहीं होता?"

दुर्गा पूजा पर भोग (Durga Puja Bhog) बहुत साधारण होता है - खिचड़ी, लबरा या चोड़चड़ी और चटनी। यही है दुर्गा पूजा का क्लासिक भोग। खिचड़ी के साथ चोड़चड़ी का गज़ब का कॉम्बिनेशन होता है। चोड़चड़ी यानी बैगन, कद्दू और साग के डंठल की सादी सब्जी जिसे घी या तेल में लाल मिर्च के साथ तड़का लगाया जाता है। मसाले के नाम पर इसमें सिर्फ नमक, चीनी, हल्दी, लाल मिर्च और जीरा पाउडर होता है।

खिचड़ी-चोड़चड़ी-चटनी सबसे अच्छा भोजन है: पोषण विशेषज्ञ

पोषण विशेषग्यों का कहना है कि खिचड़ी-चोड़चड़ी-चटनी सबसे अच्छा भोजन है। यह प्लांट प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फाइबर से भरपूर होता है। दुर्गा पूजा भोग की सबसे बड़ी बात यही है कि यह स्वस्थ और स्वादिष्ट होता है। परंपरागत रूप से इसे मिट्टी के चूल्हे के ऊपर मिट्टी के बर्तनों में बनाया जाता था।

दुर्गा पूजा भोग का मूल 15 वीं शताब्दी से जुड़ा

दुर्गा पूजा भोग का मूल 15 वीं शताब्दी के वैष्णव संत श्री चैतन्य महाप्रभु से जुड़ा हुआ बताया जाता है। कहा जाता है कि बंगाल के अकाल के दौरान हावड़ा के समृद्ध भट्टाचार्य परिवार ने लोगों को अपनी दुर्गा पूजा के हिस्से के रूप में भोग बांटना शुरू किया, जिसमें केले के तने और चौलाई के साग का मिश्रण होता था। तभी से बड़े जमींदारों द्वारा भोग वितरण को सामुदायिक सेवा के रूप में देखा जाने लगा।

जब ईस्ट इंडिया कंपनी आई तो बाबुओं, व्यापारियों और जमींदारों ने दावतों और सांस्कृतिक उत्सवों के बहाने अंग्रेजों को खुश करने के लिए भरपूर प्रयास किये। उसी दौरान सामुदायिक पूजा की शुरुआत हुई जिसका स्वरूप हम आज जानते हैं। जब सामुदायिक पूजा आयोजन होने लगे तो व्यंजन भी अधिक जटिल और भव्य होने लगे। दुर्गा पूजा के नौवें और दसवें दिन पुलाव, पकौड़े, मिठाई और यहां तक ​​कि मछली और मटन करी भी बनने लगे। हालांकि, पूजा के किसी भी व्यंजन में, यहां तक ​​कि मछली या मटन करी में भी लहसुन और प्याज का उपयोग सख्त वर्जित है।

70 के दशक के बाद दुर्गा पूजा का विस्तार

70 के दशक के बाद, दुर्गा पूजा का विस्तार सामुदायिक पार्कों और क्लबों में फैल गया। व्यावसायीकरण के साथ चॉप, कटलेट, चाउमीन और मुगलई रोल पंडालों में आ गए। विशेष रूप से फूड स्टॉल में तरह तरह के व्यंजन छा गए। आज, दुर्गा पूजा अपने कई खाद्य स्टालों के बिना अकल्पनीय है। इतना कि इसने एक नई स्टाल संस्कृति को जन्म दिया है, जो केवल भोजन तक ही सीमित नहीं है।

जहां तक मूल भोग की बात है तो कम से कम लखनऊ के पूजा पंडालों में खिचड़ी - चोड़चड़ी का भोग सब जगह मिल जाएगा। बंगाली क्लब, रामकृष्ण मठ, एसबीआई कालोनी अलीगंज, मित्र मंडल अलीगंज, सहारा एस्टेट आदि तमाम जगहों पर अद्भुत खिचड़ी भोग का स्वाद मिलता है। खिचड़ी - चोड़चड़ी के साथ खीर, पापड़, बैगन भाजा, मीठी चटनी भी परोसा जाता है। दुर्गा पूजा के इस भोग का लोग सालभर इंतज़ार करते हैं। यही वजह है कि भोग ग्रहण करने के लिए लंबी लंबी लाइनें लगती हैं।

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