उपचुनाव नतीजों से लगी सपा के मुख्य विपक्षी दल होने की मुहर

उपचुनाव के नतीजे जहां समाजवादी पार्टी के लिए उत्साहवर्धक रहे तो वही बसपा के लिए काफी निराशाजनक। इतना ही नहीं उपचुनाव में सभी 11 सीटों में अधिकतर पर भाजपा का मुख्य मुकाबला सपा से ही हुआ।

Update:2019-10-24 20:20 IST

मनीष श्रीवास्तव

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की 11 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव की नतीजे आने के साथ ही समाजवादी पार्टी ने साबित कर दिया है कि उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत के साथ काबिज भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला केवल

वही ही कर सकती है। उपचुनाव के नतीजे जहां समाजवादी पार्टी के लिए उत्साहवर्धक रहे तो वही बसपा के लिए काफी निराशाजनक। इतना ही नहीं उपचुनाव में सभी 11 सीटों में अधिकतर पर भाजपा का मुख्य मुकाबला सपा से ही हुआ।

सपा उलटफेर करने में सक्षम

विधानसभा उपचुनाव में सपा ने भाजपा और बसपा दोनों ही पार्टियों से एक-एक सीट छीन कर यह साबित कर दिया कि लोकसभा चुनाव में भले ही वह पांच सीटों पर सिमट गयी हो लेकिन विधानसभा चुनाव के लिहाज से उसकी सियासी हैसियत अभी भी कायम है और वह उलटफेर करने में सक्षम है। उपचुनाव में दमदार प्रदर्शन के साथ वापसी कर सपा ने यूपी के मुस्लिम वोट बैक अपनी दावेदारी को और मजबूत कर दिया है। सपा ने मुस्लिम वोट बैंक को बता दिया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में उसे किस पार्टी का परचम थामना है।

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लोकसभा चुनाव में बसपा को सपा के दम पर मिली 10 सीटें

प्रदेश में पहली बार उपचुनाव में उतरी बहुजन समाज पार्टी को भी नतीजों से साफ संदेश मिल गया है कि लोकसभा चुनाव में उसे मिली 10 सीटे केवल सपा के साथ गठबंधन किए जाने के कारण ही मिली है। इस उपचुनाव में बसपा सुप्रीमों मायावती ने दलित-मुस्लिम गठजोड़ का नया प्रयोग किया था जो कि पूरी तरह से असफल साबित हुआ।

बसपा सुप्रीमों की रणनीति थी कि दलित वोट तो उनके साथ लामबंद है, उसमे अगर मुस्लिम वोट का साथ भी मिल जाए तो आगामी विधानसभा चुनाव के लिए पूरे प्रदेश में मुस्लिम वोटों पर बसपा की दावेदारी मजबूत हो जायेगी। यही कारण था कि बसपा ने प्रत्याशी चयन में भी ऐसे प्रत्याशी उतारे जो सपा प्रत्याशी के वोट बैंक में भी सेंध लगा सकें। इतना ही नहीें बसपा इस पूरे उपचुनाव में केवल जलालपुर और इगलास विधानसभा क्षेत्र में ही मुख्य मुकाबले में रही। वह भी तब जबकि इगलास में सपा का प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं था और जलालपुर में बसपा के बडे़ नेता लालजी वर्मा की पुत्री छाया वर्मा चुनाव मैदान में थी।

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दरअसल, यह उपचुनाव जहां एक ओर विधानसभा में सीटों की संख्या बढ़ाने या घटाने के लिए था तो वहीं परदे के पीछे लोकसभा चुनाव में हुए सपा-बसपा गठबंधन टूटने के बाद प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल की छवि बनाने का भी था। बसपा सुप्रीमों मायावती द्वारा पहली बार उपचुनाव में अपने प्रत्याशी उतारने के पीछे उनकी मंशा सपा को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने की थी।

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