Sonbhadra: सोनभद्र में मिले सदियों पूर्व 'प्रलय के प्रमाण', जीवन की शुरुआत से भी पहले की मिली चट्टानें

सोनभद्र में अध्ययन के दौरान ऐसी चट्टान मिलने का दावा किया गया है, जो 1800 मिलियन वर्ष से भी पुराना है। दुनिया के अजूबे सलखन स्थित फासिल्स भी महज 60 करोड़ वर्ष पुराने हैं।

Update:2022-10-18 20:13 IST

सोनभद्र में मिला फासिल्स

Sonbhadra News : धार्मिक ग्रंथों और टीवी के रूपहले पर्दे पर प्रलय और नई सृष्टि की रचना की कहानियां तो हर किसी ने पढ़ी, सुनी और देखी होंगी। लेकिन, सोनभद्र के भूगर्भीय संरचना के अध्ययन के लिए इन दिनों तीन देशों की 60 सदस्यीय टीम पहुंची है। इनके अध्ययन और पड़ताल में जो चीजें सामने आई हैं, उससे यह तथ्य छनकर सामने आया है कि सोनभद्र की धरती में सदियों पूर्व एक बार नहीं बल्कि, चार बार हुए प्रलय (धरती के उलट-पलट की स्थिति) के प्रमाण छिपे हैं।

अध्ययन के दौरान एक ऐसी चट्टान मिलने का दावा किया गया है, जो 1800 मिलियन वर्ष से भी पुराना है। हैरत में डालने वाली बात यह है कि दुनिया के अजूबे का दर्जा रखने वाले सलखन स्थित फासिल्स महज 600 मिलियन वर्ष यानी 60 करोड़ वर्ष पुराने हैं। उनका संबंध जीवन यानी सृष्टि की शुरुआत से जुड़ा माना जाता है। ऐसे में 1800 मिलियन (180 करोड़) वर्ष पूर्व की मिली चट्टान की शक्ल में जहां एक नया अजूबा सामने आया है। वहीं इसके साथ ही, धरती के एक बार नहीं बल्कि तीन से चार बार उलट-पुलट होने के दावे किए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि अगर इसको लेकर विस्तृत शोध किया गया तो प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में उल्लखित जीवन की समाप्ति और नए जीवन की शुरुआत से जुड़े कई रहस्यों पर से भी पर्दा उठ सकता है।


वैज्ञानिकों की नजर में ऐसे सामने आया सदियों पुराना राज

बीएचयू वाराणसी के प्रो. वैभव श्रीवास्तव (BHU Varanasi Prof. Vaibhav Srivastava) की अगुवाई और कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रो. ध्रुव उपाध्याय (Pro. Dhruv Upadhyay), दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. अनुपम चट्टोपाध्याय (DU Pro. Anupam Chattopadhyay), अमेरिका स्थित फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के प्रो. नेपच्यून, जीएसआई कानपुर के भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षक अभिनव राय, बांग्लादेश स्थित ढाका विश्वविद्यालय के प्रो. मोहम्मद शरीफ, केरल विश्वविद्यालय के प्रो. प्रतीश, प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय के प्रो. शांतनु विश्वास की मौजूदगी में अध्ययन कार्य चला। 60 सदस्यीय टीम ने सोनभद्र में फासिल्स के स्थिति का अध्ययन करने के बाद दुद्धी तहसील क्षेत्र में खासकर म्योरपुर ब्लाक क्षेत्र की पहाड़ियों और नदी-नाले से जु़ड़ी चट्टानों का अध्ययन किया। इनमें मुर्धवा नाला, जमतिहवा नाला तथा इससे जुड़ी पहाड़ियों के अध्ययन के दौरान जो चीजें सामने आई उसने सौ-हजार वर्ष पूर्व नहीं बल्कि 1800 मिलियऩ यानी 180 करोड़ वर्ष पूर्व की चट्टानें यहां मौजूद होने का राज सामने लाकर रख दिया।

...तो चार बार पलटी थी धरती 

वैज्ञानिकों द्वारा 16 से 18 अक्टूबर तक किए गए भूगर्भीय अध्ययन, उसके जरिए सामने आए निष्कर्षों और टीम के लोगों से मिली जानकारी पर ध्यान दें तो सलखन का फासिल्स पृथ्वी पर उत्पन्न प्रथम जीवों में एक है। अमेरिका से भी प्राचीन और बड़ी संख्या में बताए जाने वाले इस जीवाश्म की उत्पत्ति 600 मिलियन वर्ष वर्ष़ पूर्व हुई थी लेकिन सोनभद्र के मुर्धवा और जमतिहवा नाले में दिखने वाले स्लेटी पत्थर की उम्र इससे तीन गुना अधिक प्राचीन और 1800 मिलियन वर्ष से भी पूर्व की आंकी गई है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह स्लेटी पत्थर पृथ्वी के इतिहास में एक-दो बार नहीं बल्कि चार बार धरती के उलट-पलट (विरूपण) की घटनाओं को संरक्षित किए हुए हैं। वैज्ञानिकों के दावे पर यकीं करें तो पूरी दुनिया में अब तक इतना पुराना और मुर्धवा-जमतिहवा जैसे पत्थर, अभी तक देखने को नहीं मिले हैं।

डीएफओ ने दिया धरोहरों को संरक्षित करने का भरोसा

सोनभद्र में भूगर्भीय अध्ययन करने वाली टीम से डीएफओ रेणुकूट मनमोहन मिश्रा, रनटोला प्रधान, दिनेश यादव, पर्यावरण कार्यकर्ता जगतनारायण विश्वकर्मा आदि ने मुलाकात की और धरती के चार बार उलट-पुलट होने का राज संजोए पत्थरों-धरोहरों को संरक्षित रखने के हर संभव प्रयास का भरोसा दिया। newstrack.com को फोन पर डीएफओ मिश्र ने बताया कि वैज्ञानिकों की टीम ने जिस पुरातात्विक धरोहर की खोज की है, उसके संरक्षण और सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा। उसकी घेराबंदी के साथ ही, जगह-जगह सचेतक बोर्ड लगाए जाएंगे।  


सोनभद्र में मिले धर्मग्रंथों में मिलते-जुलते प्रमाण

वैज्ञानिकों के किए दावों के बाद, धार्मिक ग्रंथों में किए गए ज़िक्र की भी परतें एक बार फिर से खुलने लगी हैं। हिंदू धर्मग्रंथों में इस बात का स्पष्ट जिक्र मिलता है कि धरती पर सबसे पहले जल प्रलय हुई थी और भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर पृथ्वी को बचाया था। इसके बाद नए सिरे से सृष्टि की रचना की गई। वहीं वैज्ञानिकों का जो दावा है, उसके मुताबिक सदियों पूर्व सोनभद्र समुद्र का हिस्सा था। धरती के उलट-पुलट होने के क्रम में यहां नई भौगोलिक संरचनाओं का विकास होता चला गया। बतातें चलें कि, धर्मग्रंथों में प्रत्येक कल्प के अंत में एक प्रलय जिसमें (जीवन पूरी तरह समाप्त हो जाता है) की बात उल्लिखित है। बता दें कि एक कल्प को 432 (चार अरब बत्तीस करोड़) मानव वर्ष के बराबर माना जाता है।

प्रत्येक चार युग के बाद होता है प्रलय : पं. रामेश्वर

पं. रामेश्वर देव पांडेय बताते हैं कि हमारे शास्त्रों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि प्रत्येक सृष्टिकाल में चार युग, सतयुग, तेत्रायुग, द्वापरयुग और कलयुग होते हैं। सबसे आखिरी युग कलियुग का है। कलयुग के आखिरी में प्रलय यानी जीवन पूरी तरह समाप्त हो जाता है और एक फिर से नए युग और नए सृष्टि की रचना शुरू हो जाती है। धार्मिक कार्यक्रम, पूजन आदि में लिए जाने वाले संकल्प में भी इस बात का स्पष्ट जिक्र है। अब वैज्ञानिकों द्वारा की गई खोज भी शास्त्रों में किए जा रहे दावों को प्रमाणित करने लगी है

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