जब बाड़ ही खेत की फसल खाने लगे

Update:2018-07-06 13:18 IST

तेज प्रताप सिंह

गोंडा: कहा जाता है कि जब बाड़ ही खेत की फसल खाने लगे तो खेती भगवान भरोसे हो जाती है। यह कहावत यहां के बैंकों पर चरितार्थ हो रही है। बैंक के कर्मचारी अनेक मामलों में बैंकों की साख पर बट्टा लगा रहे हैं। लोग अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा बैकों में इसलिए जमा करते हैं ताकि उनका धन सुरक्षित रहे और समय पर उनके काम आए, लेकिन यहां तो कई मामलों में इसका उल्टा हो रहा है। दो प्रबंधकों ने डेढ़ करोड़ का गबन कर बैंक को चूना लगाया है। कई बार बैंक के अफसरों और कर्मचारियों की भूमिका पर भी सवाल उठे। कई मामलों में उनके खिलाफ प्राथमिकी तक दर्ज हुई है।

केन्द्र और प्रदेश सरकार द्वारा संचालित तकरीबन सभी योजनाओं का क्रियान्वयन बैंकों के माध्यम से ही हो रहा है, लेकिन बैंक कर्मियों के कारनामों से योजनाओं को पलीता लग रहा है। यही नहीं बैंक अफसरों ने तो डेढ़ करोड़ सीधे अपने रिश्तेदारों व चहेतों के खातों में ट्रांसफर कर हड़प लिया जबकि इनकी लापरवाही से डेढ़ हजार किसान कर्ज माफी के लाभ से वंचित हो गए। अधिकारी और कर्मचारी बैंकों की साख को किस कदर पलीता लगाने में जुटे हैं, इसकी अपना भारत ने पड़ताल की तो अनेक चौंकाने वाले मामले सामने आए।

इलाहाबाद बैंक के प्रबंधक ने उड़ाए 48 लाख

जिले के अग्रणी बैंक इलाहाबाद बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय में तैनात सट्टेबाजी के शौकीन प्रबंधक कपिल छत्रपाल ने बड़े ही शातिराना अंदाज में कई खातों से 48 लाख रुपये उड़ा लिये। हर खाते से बड़ी धनराशि को ही ट्रांसफर किया गया। अपनी आईडी और पासवर्ड से मनमाफिक खातों में पैसा भेज दिया। खाताधारकों की शिकायत पर शुरू हुई पड़ताल में इस खेल का खुलासा हुआ।

प्राथमिक जांच में परसपुर की इलाहाबाद बैंक की शाखा के खाताधारक रामकिशोर के 5 लाख, सीताराम के 4 लाख, शिवकन्या देवी के 4 लाख 12 हजार, राजदुलारी के 5 लाख 45 हजार, बाबादीन के 5 लाख 65 हजार, सुशीला देवी के 6 लाख 10 हजार, शम सुलनिशा के 3 लाख 56 हजार व ओमप्रकाश के 8 लाख 35 हजार रुपये निकल गये। फिलहाल आरोपी प्रबंधक सलाखों के पीछे है। बैंक के एजीएम एएस हीरा कहते हैं कि जिले की अन्य शाखाओं में भी पड़ताल कराई जा रही है।

परिजनों समेत मृतक प्रबंधक पर 90 लाख गबन का मुकदमा

इससे पहले गबन और धोखाधड़ी का एक मामला सामने आया जिसमें मृत्यु के 3 माह बाद बैंक मैनेजर पर धोखाधड़ी और गबन का मुकदमा दर्ज हुआ। इसमें उसकी पत्नी, पुत्री और पुत्र भी आरोपी हैं। जिले की कोतवाली देहात क्षेत्र अंतर्गत सर्व यूपी ग्रामीण बैंक जोधपुर शाखा में रावेन्द्र प्रकाश पुत्र स्व.ठाकुर प्रसाद श्रीवास्तव निवासी उपरहितन पुरवा जानकी नगर गोंडा की तैनाती 9 जून 2017 को बैंक मैनेजर के रूप में हुई थी। उन्होंने 30 जनवरी 2018 तक बैंक में अपनी सेवाएं दीं। आरोप है कि रावेन्द्र प्रकाश ने शाखा चंदवतपुर में सेवाकाल के दौरान धोखाधड़ी करते हुए 90 लाख 43 हजार रुपए का गबन कर लिया था। वर्तमान प्रबंधक के अनुरोध पर एसपी के हस्तक्षेप के बाद कोतवाली देहात में मृतक बैंक मैनेजर राजेंद्र प्रकाश, पत्नी रेखा श्रीवास्तव, बेटी कुमारी सुप्रिया श्रीवास्तव व बेटा शिवा श्रीवास्तव के खिलाफ गबन और धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज किया गया है।

मिलीभगत से ग्राहकों को लाखों का चूना

हाइडिल कालोनी निवासी रहे बिजली विभाग के जेई दिनेश प्रताप सिंह व उनकी पत्नी मंजू सिंह का संयुक्त खाता 202817573 इलाहाबाद बैंक की बस स्टेशन शाखा में है। उनकी चेकबुक 02 मई 2016 को कहीं गुम हो गई। डाक द्वारा इसकी सूचना देकर मंजू ने चेक संख्या 017321 से 17340 के भुगतान रोक लगाने की मांग की। आरोप है कि बैक कर्मियों ने उक्त चेकों से आहरण पर रोक नहीं लगायी। मंजू के अनुसार 21 जून 2016 तक उनके खाते में 12 लाख 87 हजार 880 रुपए था। जब उन्होंंने 08 अगस्त को खाते से पैसा निकालना चाहा तब पता चला कि खाते से 26 जुलाई को 10 लाख निकाला जा चुका है। मामले में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सुधीर कुमार सिंह के आदेश पर मुख्य आरोपी कौशल कुमार मिश्रा पुत्र हरि शरण निवासी ग्राम बिन्दौरा थाना मसौली जिला बाराबंकी, ऐक्सिस बैंक बाराबंकी के शाखा प्रबंधक व सेल्स आफिसर धर्मेन्द्र कुमार, गोंडा के शाखा प्रबंधक एवं इलाहाबाद बैंक बस स्टेशन शाखा के प्रबंधक आलोक शुक्ला व अन्य संबंधित कर्मचारियों के खिलाफ गबन व कूटरचित अभिलेखों के आधार पर जालसाजी का मुकदमा पंजीकृत हुआ।

सिविल लाइंस निवासी अनिल प्रताप सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही हादसा 12 साल पहले हुआ था, जब उनके भारतीय स्टेट बैंक की मुख्य शाखा में चल रहे खाता संख्या 01190035080 से 27 मई 2006 व 29 मई 2006 को 50-50 हजार रुपए तथा बाद में चेक से जालसाजों ने दो लाख 53 हजार निकाल लिये। इस मामले में जिला उपभोक्ता संरक्षण फोरम ने 16 जुलाई 2011 को आदेश पारित किया कि बैंक परिवादी का तीन लाख 58 हजार पांच प्रतिात ब्याज के साथ वापस करे। वर्षों बीत जाने के बावजूद अनिल को बैंक से धनराशि नहीं मिल सकी है। मनकापुर के गांधी नगर के व्यवसायी कृष्ण कुमार के बचत खाते से एटीएम के जरिये एक लाख चालीस हजार रुपए निकल गए।

खाते से निकल गए 390554 रुपए

बीते दिसम्बर माह में सर्वयूपी ग्रामीण बैंक के खाताधारक तीन किसानों के खाते से जालसाज ने 390554 रुपये निकाल लिए। थाना इटियाथोक क्षेत्र के ग्राम बस्ती के रहने वाले राज नारायण ने बताया कि उनके सर्व यूपी ग्रामीण बैंक की शाखा इटियाथोक में केसीसी खाते से 20 नवंबर 2017 से 30 नवंबर 2017 के बीच 240354 रुपये निकल गए। उनका एटीएम भी उनके पास सुरक्षित है। रुपए निकालने के बाद जब स्लिप निकली तो उन्हें पता चला कि उनके खाते से 240354 रुपये पहले ही निकाले जा चुके हैं। रामयज्ञ के मुताबिक 10 नवंबर से 14 नवंबर के बीच उनके केसीसी खाते से 01 लाख 20 हजार 200 रुपए निकल गए। फिलहाल पुलिस मामले की जांच कर रही है।

मृतक के खाते से निकल गए 32 हजार

नवाबगंज क्षेत्र के विश्नोहरपुर गांव के रहने वाले दीनानाथ सिंह के पिता की मृत्यु 13 अक्तूबर 2010 को हो गई थी। पिता के खाते में गन्ना मूल्य भुगतान के बारह हजार रुपए जमा थे। उन्हें वृद्घावस्था पेंशन भी मिलती थी। उनकी मृत्यु के बाद उनके खाते पर ध्यान नहीं दिया गया। मार्च 2016 तक खाते में कुल रकम 32 हजार हो गई थी। जनवरी 2018 में दीनानाथ ने खाते का ब्योरा मांगा तो पता चला कि 21 मार्च 2016 को पिता के खाते से 32 हजार रुपए निकल गए। दीनानाथ का आरोप है कि जिस बैंक कर्मी ने विड्राल पास किया उसी की मिलीभगत से खाते से रुपये निकाले गए हैं।

1582 किसान ऋण मोचन योजना से बाहर

स्थानीय सर्व यूपी ग्रामीण बैंक में किसान क्रेडिट कार्ड का लाभ ले रहे सभी 1582 किसानों पर उस समय तुषारापात हुआ जब उन्हें यह पता लगा कि उनके खाते आटोमेटिक सिस्टम जनरेटड एंट्री की वजह से प्रदेश सरकार की ऋण मोचन योजना से अपात्र मान लिए गए। बैंक के प्रबंधक अभय सिंह ने बताया कि सिस्टम जनरेटड एंट्री की वजह से सभी किसानों के खाते में 31 दिसंबर को ही ऋण की इंट्री डिपाजिट होकर डेबिट दिखा दी गई है जिसकी वजह से एनआईसी इन किसानों को ऋण मोचन योजना के तहत पात्र नहीं मानता है।

नियमानुसार 31 मार्च 2016 के बाद जिन किसानों ने ऋण लिया है या खातों का नियमित संचालन हो रहा हो उन्हें इस योजना का कोई लाभ नहीं मिलेगा। मुकुंदपुर के किसान राजेश कुमार सिंह ने जब बैंक आकर अपने केसीसी खाते की पासबुक प्रिंट कराई तो वह यह देखकर हैरान रह गए कि उनकी पासबुक में दो लाख 52 हजार रुपए की ऋण धनराशि 31 दिसंबर को जमा दिखाई गई व 31 दिसंबर को ही पूरी धनराशि की निकासी भी दर्ज है। मैनेजर ने इसे साफ्टवेयर अपडेशन की भूल बताया। किसानों में इस प्रकरण की चर्चा होने लगी और सभी किसान जब अपना खाता देखने पहुंचे तो उन्हें पता लगा कि सभी के खातों में इसी तरह का विवरण दर्ज है। इस समस्या के समाधान के लिए डीएम ने जिला स्तरीय कमेटी गठित की है।

उत्पीडऩ की बात गलत:प्रबंधक

बैंक कर्मियों के मनमाने रवैये और उत्पीडऩ की बात को सिरे से नकारते हुए अग्रणी जिला बैंक प्रबंधक डीसी बेहरा कहते हैं कि सामाजिक सरोकारों के प्रति बैंकों की जिम्मेदारी बढ़ी है। योजनाओं के संचालन में बैंकों की भूमिका अहम है। तमाम अच्छाइयों के बीच अपवादस्वरूप कुछ लोग यदि गलत कर रहे हैं और किसी मामले में उनकी शिकायत मिलती है तो जांच कराकर उन्हें दंडित किया जाता है।

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