सुशील कुमार
मेरठ: गंगनहर को स्थानीय लोग अब मौत की नहर कहने लगे हैं। लोगों का कहना गलत भी नहीं है। दरअसल, मेरठ परिक्षेत्र में यानी मुजफ्फरनगर सीमा से गाजियाबाद सीमा के बीच 42 किलोमीटर लंबी इस नहर (चौधरी चरण सिंह कांवड़ मार्ग) में डूबने से अब तक 24 लोगों की मौत हो चुकी है। पिछले पांच साल में करीब दो सौ लोगो की मौत नहर में डूब जाने के कारण हो चुकी है।
देहरादून-हरिद्वार आने-जाने वाले यात्रियों के लिए कांवड़ पटरी मार्ग सबसे पसंदीदा बन गया है। बड़ी संख्या में वाहन दिन-रात इससे गुजरते हैं। जो सही सलामत पहुंच जाते हैं यह उनका सौभाग्य और उनका अपने वाहन की गति पर नियंत्रण का नतीजा कहा जा सकता है। पर जो थोड़ा भी नियंत्रण खोते हैं, उनके लिए यह मार्ग जानलेवा साबित हो सकता है। गाजियाबाद व दिल्ली की ओर से आने-जाने वाले लोग इसी मार्ग को अपनाते हैं इसलिए इस पर दबाव काफी अधिक बढ़ गया है। ट्रक व कैंटर जैसे बड़े व भारी वाहन भी यहां से खूब निकलते हैं जबकि कहने को इनका इस सड़क पर प्रवेश ही प्रतिबंधित है। कुछ स्थानों पर हाईगेज के लोहे के पिलर खड़े हैं। वर्षों पहले ये बड़े वाहनों को रोकने के लिए लगाए गए थे, पर अब इन्हें मुक्त कर दिया गया है। मुरादनगर गंगनहर पुलिस चौकी से पूठ गांव के पुल तक कई जगह क्रैश बैरियर लगे हैं पर उसके बाद क्रैश बैरियर सिर्फ पुलों के आसपास ही दिखाई देते हैं। जटपुरा, बहादुरपुर, मढिय़ाई व अहमदाबाद एक्सटेंशन आदि गांवों के पास जगह-जगह दूर-दूर तक सुरक्षा दीवार यानी डौले टूटे हुए हैं। जहां दीवार टूटी है वहां कुछ स्थानों पर या तो रेत से भरे कट्टे रख दिए गए हैं या फिर लकड़ी की कामचलाऊ रेलिंग लगा दी गई है। जहां पटरी है तो उसकी ऊंचाई इतनी कम हो गई है कि कार जंप करे उसे आसानी से पार कर सकती है। यानी नहर की ओर गिरने से बचाने का कोई खास इंतजाम नहीं है। वैसे तो जो डौले बने हैं वह भी मजबूत नहीं हैं। पर मानसिक रूप से सुरक्षा करने वाला यह साधारण डौला भी दुरुस्त नहीं किया जा सका है।
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एक तरफ नहर और उसकी झाडिय़ां और दूसरी तरफ जंगल-खेत, इनसे कब कोई जानवर छलांग लगा दे यह भी नहीं पता। शाम या रात में इस मार्ग पर अंधेरा रहता है क्योंकि रोशनी की कोई व्यवस्था नहीं है। नहर पटरी की सड़क पीडब्ल्यूडी ने बनाई है। डौला से लेकर नहर का पूरा हिस्सा सिंचाई विभाग-गंग नहर का है। सड़क व डौले की मरम्मत व सड़क सुरक्षा के अन्य इंतजाम की जिम्मेदारी सिंचाई विभाग-गंगनहर की है। दोनों को दुरुस्त रखने का काम प्रशासन का है लेकिन किसी को कोई परवाह नहीं है। इस सड़क पर गति सीमा 50 किमी प्रति घंटा है, पर वाहन चालक अच्छी सड़क समझकर फर्राटा भरते हैं। 100 के आसपास स्पीड की वजह से भी वाहन चालक नियंत्रण नहीं रख पाते। स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार गंगनहर पटरी मार्ग पर पल भर में तेज रफ्तार वाहन नहर में समा जाते हैं। कई कई दिन तक वाहन नहीं मिलते। जिले में न तो गोताखोरों की टीम है और बचाव के कोई पुख्ता इंतजाम। एनडीआरएफ की टीम को भी गाजियाबाद से बुलाया जाता है। मेरठ की सीमा में जानी, रोहटा, सरूरपुर, सरधना थाना क्षेत्र में पिछले साल में 60 लोगों की जान यह नहर ले चुकी है। इस साल भी दो दर्जन से अधिक लोगों की जान जा चुकी है।
भाकियू नेता कालू सिंह कहते हैं कि गंगनहर पटरी पर हादसे रोकने के लिए पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों के बड़े-बड़े दावे हवाई साबित हो रहे हैं। जब भी गंग नहर पर कोई हादसा होता है,सरकारी विभाग हमेशा की तरह एक-दूसरे की जिम्मेदारी बताकर पल्ला झाडऩे लगते हैं। इस मार्ग पर सुरक्षा की फिक्र किसी को नहीं है। वाहन कब दुर्घटनाग्रस्त हो जाए। कार उछलकर कब नहर में समा जाए, कोई नहीं जानता। सुरक्षा दीवार सिर्फ कहने भर के लिए है।
नहर किनारे स्थित दबथुवा गांव के ब्रह्मसिंह कहते हैं कि अधिकांश स्थानों पर गंग नहर वाली साइड में पटरी की रेलिंग टूटी हुई है। कई जगह दूर दूर तक रेलिंग भी नहीं है। गंगनहर की गहराई काफी अधिक है और पानी का बहाव भी तेज रहता है। ऐसे में किसी हादसे में बच पाना बहुत मुश्किल है।
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हैरत की बात यह है कि तमाम हादसों के बावजूद जिम्मेदार अफसरों में कोई हलचल नहीं दिख रही है। हालत यह है कि एमडीए, पीडब्ल्यूडी और सिंचाई विभाग अभी तक सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं करा सका है। यही हाल पुलिस और प्रशासन का है। हादसा होने के बाद सभी विभाग नहर की पटरी पर सुरक्षा की योजना बनाते हैं, लेकिन कुछ दिन बाद सब कुछ पहले जैसा ही चलने लगता है।
नहर पटरी पर रोड बनाने और उसके रखरखाव की जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी की है। इसको कांवड़ मार्ग के नाम से जाना जाता है। जानी नहर पुल से मुजफ्फरनगर सीमा तक 26 किमी कांवड़ मार्ग पूरी तरह असुरक्षित है। कांवड़ पटरी मार्ग के 26 किमी हिस्से को पीडब्ल्यूडी निर्माण विभाग देखता है, जबकि 16 किमी की जिम्मेदारी प्रांतीय खंड के पास है। प्रांतीय खंड ने दो माह पहले जानी नहर से मुरादनगर तक 16 किमी में कांवड़ मार्ग पर नहर के किनारे लोहे के क्रास बैरियर लगवा दिए जबकि निर्माण खंड ने क्रास बैरियर लगाने का कार्य सिंचाई विभाग के पाले में डाल दिया है। बीते साल सभी विभागों की हुई बैठक में निर्णय लिया गया था कि कांवड़ मार्ग पर जगह जगह हाइट गेज लगाए जाएं ताकि भारी वाहनों को रोका जा सके। लेकिन ये काम अभी तक नहीं हो सका है।
बोले जिम्मेदार
'हमने जानी नहर पुल से मुरादनगर तक कांवड़ मार्ग पर 40 लाख रुपये खर्च करके क्रास बैरियर लगवा दिए हैं। इससे हादसों में कमी आई है। हाइट गेज भी बनवाकर रखे हैं। अगर पुलिस सहयोग करे तो उनको भी लगवा दें।'
- प्रताप सिंह, प्रांतीय खंड पीडब्ल्यूडी के अधिशासी अभियंता
'नहर सुरक्षा की समस्त जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी और सिंचाई विभाग की है। हमसे जो भी सहयोग मांगा जाता है हम देते हैं।'
- नतिन तिवारी, एसएसपी मेरठ
'सुरक्षा दीवार यानी डौला सिर्फ मनोवैज्ञानिक रूप से ही कार्य करता है। यदि वाहन चालक अपनी गति पर नियंत्रण नहीं रखेंगे तो दीवार से टकराएंगे। क्रैश बैरियर भी वाहन को रोक नहीं सकते, इन्हें भी तोड़ते हुए वाहन निकल जाते हैं। फिर भी जहां पर डौले टूटे हैं उसकी मरम्मत के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। कुछ जगह क्रैश बैरियर लगाया है। कंक्रीट का डौला बनाने में बहुत अधिक लागत आती है।,
- विनोद मिश्रा, सिंचाई विभाग-गंगनहर डिवीजन के अधीक्षण अभियंता
'सड़क के चौड़ीकरण से वाहनों का आवागमन अधिक हुआ है। ईंटों का डौला जगह-जगह टूट गया है। सड़क के बनने से उसकी ऊंचाई भी कम हो गई है। इसके लिए जल्द ही मुख्यमंत्री से मिलकर के गंगनहर की पटरी के किनारे एक मीटर ऊंचाई में पक्की आरसीसी के डौले बनवाने का प्रस्ताव रखेंगे।'
- जितेंद्र सिंह, भाजपा के स्थानीय विधायक