बीमारियों से बचाते हैं इस दरगाह के चीनी की गोले, कहलाते हैं बरसोले

Update:2016-06-09 14:26 IST

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बहराइच: हिन्दुस्तान से लेकर विश्व भर में सुगर के रोगियों की संख्या बढ़ने के कारण अब लोग चीनी व चीनी से बने उत्पादों का सेवन बहुत संभल-संभल कर करते हैं। लेकिन आज हम आपको शुद्व चीनी से बने एक ऐसे मिष्ठान के बारे में बताएंगे, जो अनेकों रोगो में लाभ पहुंचाता है। मान्यता है कि ये मिष्ठान गर्मी के दिनों में तो रामबाण की तरह काम करता है। बहराइच जनपद में इस मिष्ठान को बरसोले के नाम से जाना जाता है।

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शुद्व चीनी को पकाने के बाद इसको इतना फेंटा जाता है कि इसमें औषधि गुण उत्पन्न हो जाते है। वैसे तो इसको बनाने वाले कारीगरों का मानना है कि सैयद सालार मशूद गाजी की दरगाह परिक्षेत्र के पूरे संगमपरासी इलाके में जो पानी उपलब्ध है। उसी पानी में ऐसे औषधि गुण है। जिसके कारण चीनी दवा बन जाती है। आपको बता दें कि चीनी में पहले पानी मिलाया जाता है, फिर उसको आग पर काफी देर तक पकाया जाता है। जब वो गाढ़ी हो जाती है तो उसको काफी फेंटा जाता है। फेंटने के बाद इसके छोटे बड़े गोले बना लिए जाते हैं और इन गोलों को बरसोले का नाम दिया जाता है।

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बरसोले के बारे में कहा जाता है कि अगर बरसोले से भरा पूरा बोरा रखा हुआ है और उसमें 100 ग्राम पानी डाल दिया जाए तो पूरा बोरा बह जाएगा। मान्यता है कि गर्मी के दिनों में बरसोले का एक टुकड़ा खाकर पानी पीने के बाद घर से निकले तो गर्मी में बहने वाली लू नहीं लगती। बरसोला खाने के बाद एसिडिटी परेशान नहीं करती।

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बरसोले के इतिहास के बारे में सही सही तो किसी को कुछ नहीं पता है लेकिन लंबे समय से बरसोले का काम करने वाले ने बताया कि जब से दरगाह में लोगो की भीड़ बढ़ना शुरू हुई और मेले की परम्परा आगे बढ़ी। तब से ये तबरूक (प्रसाद) के रूप में बरसोले का प्रयोग होता चला आ रहा है। उन्होंने कहा कि यूं तो बरसोला बहुत से जनपदों में बनाया और बेंचा जाता है। लेकिन संगमपरासी इलाके के पानी में ऐसे तत्व पाए जाते हैं। जो चीनी के अवगुणों को दूर कर इसके अंदर औषधीय गुण उत्पन्न कर देते हैं।

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सैयद सालार मशूद गाजीरह की दरगाह पर जेठ माह की पहली तारीख से मेला लगना शुरू होता है। जो पूरे एक महीने चलता है। इस दौरान यहां देश के कोने कोने से लाखों जायरीन दर्शन के लिए आते हैं। जो आते हैं उसमें से अधिकतर लोग बहराइच के बरसोले को ले जाते हैं। अपनी ऐतिहासिक, पुरातात्विक, धार्मिक पहचान के कारण जिस प्रकार सैयद साहब की दरगाह विश्व में अनूंठी पहचान रखती है। उसी प्रकार यहां का बरसोला भी अन्य जगहों के बरसोले से भिन्न होनें के साथ साथ अपने औषधीय गुण होने के कारण अपनी एक पहचान रखता है।

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