हाईकोर्ट बेंच वेस्ट यूपी में स्थापित करने के सवाल पर रविशंकर प्रसाद का जवाब
नई दिल्ली। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट की खंडपीठ स्थापित किये जाने के सवाल पर कहा है कि नई खंडपीठ बनाने के लिए कुछ औपचारिकताएं राज्य सरकार और हाई कोर्ट की मुख्य पीठ से पूरी करनी जरूरी होती हैं, वह अभी तक प्राप्त नहीं हुई हैं। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि वे इस क्षेत्र की भावनाओं और विषय को समझते हैं।
नई दिल्ली। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट की खंडपीठ स्थापित किये जाने के सवाल पर कहा है कि नई खंडपीठ बनाने के लिए कुछ औपचारिकताएं राज्य सरकार और हाई कोर्ट की मुख्य पीठ से पूरी करनी जरूरी होती हैं, वह अभी तक प्राप्त नहीं हुई हैं। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि वे इस क्षेत्र की भावनाओं और विषय को समझते हैं।
मेरठ से लोकसभा सदस्य राजेंद्र अग्रवाल ने बुधवार को प्रश्नकाल के दौरान पश्चिमी उप्र में हाई कोर्ट बेंच स्थापना की मांग को उठाया था। इसके बाद उनके और रविशंकर प्रसाद के बीच सवाल-जवाब का सिलसिला करीब चार मिनट तक चलता रहा।
प्रिंसीपल पीठ के अधिवक्ता बाधक
सांसद राजेंद्र अग्रवाल मंत्री के लिखित जवाब से संतुष्ट नहीं हुए उन्होंने दोहराया कि बेंच की खातिर हाई कोर्ट की संस्तुति में वहां के वकील बाधक हैं। वे नहीं चाहते हैं कि कहीं और खंडपीठ बने, जिसकी वजह से दबाव में संस्तुति नहीं हो पायी है।
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श्री अग्रवाल ने कहा कि आज बात गरीब वादियों के हितों की रक्षा की है। क्या, उनके हितों की रक्षा करना केंद्र सरकार का काम नहीं। उन्हें सस्ता, सुलभ और समय पर न्याय मिले, इसकी व्यवस्था करना हमारा लक्ष्य नहीं। उन्होंने जोड़ा कि उप्र की जो आबादी है उसके अनुसार यहां कम से कम तीन और खंडपीठ की आवश्यकता है।
1955 से उठ रहा है मुद्दा
इस संबंध में गठित किये गए जसवंत सिंह आयोग ने भी ऐसी ही अनुशंसा की थी। पश्चिमी उप्र में हाईकोर्ट की पीठ का मामला सबसे पहले 1955 में उठा था उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री संपूर्णानंद थे।
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सांसद की बात से कानून मंत्री भी सहमत थे उन्होंने कहा कि यह बात सही है कि उप्र में एक और महाराष्ट्र में चार बेंच है। लेकिन हमारे हाथ नियमों से बंधे हैं हमें उन्हें मानना पड़ेगा। सांसद की बात सही है लेकिन औपचारिकताएं तो पूरी करनी ही होंगी।
राज्य सरकार की भूमिका
खंडपीठ के लिए आवश्यक ढांचागत व्यवस्था राज्य सरकार को करनी होती है। इसमें भवन, जजों के बंगले आदि शामिल हैं। इसीलिए राज्य सरकार का कमिटमेंट चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का भी आदेश है कि नई खंडपीठ के गठन में हाई कोर्ट की अनुशंसा ली जानी जरूरी है।
इस पर राजेंद्र अग्रवाल ने फिर यह मुद्दा उठाया कि क्या हाई कोर्ट से संस्तुति न आने की स्थिति में संसद कोई निर्णय नहीं ले सकती है। उनका कहना था कि न्याय व्यवस्था की समीक्षा कर रास्ता ढूंढा जा सकता है। इस पर मंत्री ने भी नियमों के तहत विचार करने का भरोसा दिलाया।