नवाब ने शुरू की थी होली बरात,मुस्लिम भी करते हैं इत्र और फूल की बारिश

Update:2016-03-22 18:42 IST

लखनऊ: पूरा देश होली के रंग में रंगता जा रहा है, तरह तरह के आयोजन की तैयारियां जोरों पर हैं। लेकिन राजधानी के चौक में जो होली मनाई जाती है वह कई मायनों में बेहद खास है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस होली बरात की परंपरा की शुरूआत एक मुस्लिम राजा ने शुरु की थी। यह अवध की गंगा जमुनी तहजीब का प्रतीक हैं तो वहीँ सैकड़ों साल से चली आ रही इस परंपरा को आज चलाने के लिए कोई आयोजन समिति नहीं हैं। लोग आते हैं और कारवां बनता जाता हैं।

नवाब ने शुरू करवाया था होली मेला

पुराने लखनऊ के चौक का अपना अलग इतिहास रहा है। यहां की ठंडाई, चिकन और रेवडी दूर-दराज तक मशहूर है। लेकिन यहां होली के दिन लगने वाले ऐतिहासिक होली मेले में गंगा-जमुनी तहजीब आज भी नजर आती है। स्थानीय निवासी ओम प्रकाश दीक्षित कहते हैं कि वक्त बदला माहौल बदला, लेकिन नहीं बदली तो नवाब गाजीउद्दीन हैदर द्वारा शुरू की गई होली मेले की परंपरा। पुराने लखनऊ के रहने वाले अरविन्द पाण्डेय कहते हैं कि यह मेला ढेर सारी ऐतिहासिक यादें समेटे हुए है। इस मेले को शुरू करने का उद्देश्य सभी धर्मों के लोगों में भाईचारा बढ़ाना था।

चौक के कोनेश्वर मंदिर से लगने वाले इस विशाल ऐतिहासिक मेले की खास बात यह है कि इसकी कोई आयोजन समिति नहीं है। लोग आते रहे और मेला लगता गया। वह बताते हैं कि इस मेले में शुरू से ही होली मिलन का दौर चलता रहा है। यही नहीं, मेले में घूमने आने वालों को गुलाल और इत्र छिड़क कर होली मिलन का सिलसिला बस्तूर आज भी जारी है। मेले की खासियत यह भी रही है कि यहां हिन्दी के मशहूर साहित्यकार अमृत लाल नागर भी जीवित रहने तक मेले में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे।

हिन्दू मुस्लिम का नहीं है कोई भेद

इसकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि जब जुलूस निकलता है तो मुसलमान लोगों पर फूल डालते हैं और इत्र छिड़कने के साथ माला पहनाते हैं। यह बातें चौक में होली जुलूस 'रंगोत्‍सव' की शुरूआत करने वाले पूर्व सांसद लालजी टंडन ने बताई।

क्या कहते है लालजी टंडन

जुलूस में हाथी, घोड़ा ढोल-नगाड़े वाले सब रहते हैं। लालजी टंडन बताते हैं कि इस जुलूस ने लोगों के प्रति विश्‍वास और एकता के भाव भरे। उस दौरान जुलूस में भांग का स्‍वांग, महफिले, मुजरा और तरह-तरह के पकवान होते थे। लोग पान खिलाते और एक दूसरे का स्‍वागत करते नजर आते थे। यह जुलूस कोनश्‍वर चौक से होते हुए अकबरी गेट, मेडिकल चौराहा होते हुए वापस कोनश्‍वर चौक पर खत्‍म होता था।

 

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