UP Politics: बसपा का मोह नहीं छोड़ पा रही कांग्रेस, BJP के खिलाफ विपक्ष के साझा उम्मीदवार का सपना, सपा ने उलझाया समीकरण
UP Politics: कांग्रेस का मानना है कि बसपा को गठबंधन में शामिल करने के बाद भाजपा के खिलाफ मजबूत साझा उम्मीदवार उतारने में कामयाबी मिल सकती है।
UP Politics: विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया में शामिल दलों के बीच विभिन्न राज्यों में सीट बंटवारे के मुद्दे पर बातचीत शुरू हो चुकी है। उत्तर प्रदेश में भी सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर नई दिल्ली में चर्चा की गई है मगर अभी तक गठबंधन का स्वरूप स्पष्ट नहीं हो सका है। दरअसल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बसपा का मोह नहीं छोड़ पा रही है। कांग्रेस का मानना है कि बसपा को गठबंधन में शामिल करने के बाद भाजपा के खिलाफ मजबूत साझा उम्मीदवार उतारने में कामयाबी मिल सकती है।
दूसरी ओर समाजवादी पार्टी किसी भी सूरत में बसपा को साथ लेने को तैयार नहीं दिख रही है। सपा के रुख ने उत्तर प्रदेश में विपक्षी दलों के समीकरण को अभी तक उलझा रखा है। हाल के दिनों में सपा और बसपा के बीच तल्ख बयानबाजी होती रही है। बसपा मुखिया मायावती ने सपा के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। उन्होंने मंगलवार को भी सपा पर तीखे हमले करते हुए गेस्ट हाउस कांड तक की याद दिलाई थी।
कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी कर रहे वकालत
उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाए जाने के बाद से ही कांग्रेस नेता अविनाश पांडेय बसपा को इंडिया गठबंधन में शामिल करने की वकालत करते रहे हैं। उनका कहना है कि हम भाजपा के विरोध में सपा, बसपा और अन्य विपक्षी दलों को साथ लाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। उनका कहना है कि इस देश में संविधान और लोकतंत्र को जो लोग बचाना चाहते हैं, उन्हें साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी इंडिया गठबंधन सभी घटक दलों की है। उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव भी इस बाबत अपनी जिम्मेदारी को समझते होंगे।
कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी ने कहा कि सभी धर्मनिरपेक्ष दलों को एक साथ लाने की जिम्मेदारी सिर्फ राहुल गांधी की नहीं है। इसके लिए सभी दलों को प्रयास करना होगा। उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास है कि उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों पर भाजपा के खिलाफ विपक्ष का साझा उम्मीदवार उतारा जाए। यदि बसपा देश के संविधान को बचाना चाहती है तो उसके नेतृत्व को भी इस बाबत गंभीर होकर फैसला लेना होगा।
कांग्रेस इसलिए चाहती है बसपा का साथ
दरअसल बसपा को इंडिया गठबंधन में शामिल करने की कांग्रेस की कोशिश अनायास नहीं है। बसपा के शामिल होने के बाद ही साझा उम्मीदवार की परिकल्पना सच साबित हो सकती है। इसके साथ ही बसपा का वोट बैंक भी उसे साथ लेने की कोशिशों के पीछे बड़ा कारण माना जा रहा है। बसपा के पास करीब 20 फ़ीसदी वोट है। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बसपा को करीब 19.4 फीसदी वोट हासिल हुए थे। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान सपा और बसपा ने गठबंधन किया था।
इस गठबंधन के बाद बसपा 10 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी जबकि सपा ने 18.1 फीसदी वोट के साथ पांच सीटों पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस को 6.4 फ़ीसदी वोट मिले थे और पार्टी को सिर्फ एक सीट हासिल हुई थी। प्रदेश में करीब 21 फ़ीसदी दलित मतदाता हैं और ऐसे में बसपा को विपक्षी गठबंधन में शामिल करना फायदे का सौदा साबित हो सकता है।
सपा खिलाफ तो कैसे होगा गठबंधन
दूसरी ओर समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश में बसपा किसी भी सूरत में मंजूर नहीं है। पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव समय-समय पर इस बाबत अपना रुख पूरी तरह स्पष्ट करते रहे हैं। इंडिया गठबंधन की पिछली बैठक के दौरान भी उन्होंने इस बाबत कांग्रेस नेतृत्व से सवाल किया था। कांग्रेस नेतृत्व ने भले ही सपा के साथ उत्तर प्रदेश में गठजोड़ की बात कही थी मगर पार्टी अभी भी बसपा को लेकर बयान देने में जुटी हुई है।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के लिए लंबे समय से चुनौती पूर्ण बना हुआ है। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन किया था। पार्टी 114 सीटों पर चुनाव लड़ा था मगर पार्टी को सिर्फ 7 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। ऐसे में उत्तर प्रदेश की राजनीति को लेकर अभी भी दिलचस्पी बनी हुई है। अब यह देखने वाली बात होगी कि इंडिया गठबंधन में कौन-कौन से दल शामिल होते हैं और सीटों का बंटवारा किस तरह किया जाता है।