अंबेडकर नगर: जिला अस्पताल का ऑक्सीजन जनरेटर हुआ कबाड़, आखिर कौन है इसका जिम्मेदार
2012-13 में जिला अस्पताल परिसर में लगभग 70 लाख रुपए की लागत से ऑक्सीजन जनरेटर स्थापित की गई थी।
अंबेडकर नगर: पूरे देश में ऑक्सीजन (Oxygen) के लिए मारामारी हो रही है। सरकार लगातार ऑक्सीजन जनरेटर (Oxygen generator) व ऑक्सीजन कंसंट्रेटर (Oxygen concentrator) करने की व्यवस्था कर रही है। लोग ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ रहे हैं। ऑक्सीजन के इस मारामारी में अंबेडकर नगर के जिला चिकित्सालय में लगा लगभग 8 वर्ष पूर्व ऑक्सीजन जनरेटर कबाड़ बना हुआ है। वित्तीय वर्ष 2012 -13 में जिला अस्पताल में लगवाए गए इस ऑक्सीजन जनरेटर से पूरे अस्पताल में भर्ती मरीजों को पाइप लाइन के जरिए ऑक्सीजन की आपूर्ति किए जाने की व्यवस्था की गई थी। इस पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए गए थे, लेकिन आज यह सब कुछ केवल दिखावे की वस्तु बन चुकी है।
अस्पताल सूत्रों के मुताबिक, जब से यह जनरेटर लगाया गया है तथा उसके साथ ही पूरे अस्पताल परिसर में ऑक्सीजन आपूर्ति (Oxygen Supply) के लिए पाइप लाइनों का जाल बिछाया गया है, तब से शायद ही कभी ऐसा कोई दिन रहा हो जब इस जनरेटर से लोगों को ऑक्सीजन मिल सका हो। प्रश्न यह उठता है कि करोड़ों रुपए की बर्बादी करने का जिम्मेदार कौन है ?
70 लाख रुपए की लागत से लगवाया गया ऑक्सीजन जनरेटर
उल्लेखनीय है कि 2012-13 में जिला अस्पताल परिसर में लगभग 70 लाख रुपए की लागत से ऑक्सीजन जनरेटर स्थापित की गई थी। तत्कालीन मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर आरके पटेल द्वारा इस ऑक्सीजन जनरेटर को लगवाने के लिए निविदा आमंत्रित किये जाने की बात बताई जाती है। सूत्रों की माने तो उसी दौरान जनरेटर की खरीद में जमकर कमीशन बाजी की गई तथा ताइवान की एक कंपनी से जनरेटर की आपूर्ति कराकर उसे स्थापित करा दिया गया। जनरेटर लगाने के कुछ ही समय बाद से उससे ऑक्सीजन की आपूर्ति ठप हो गई। बीच-बीच में कई बार उसे बनवाने का भी प्रयास किया गया लेकिन वह भी प्रभावी नहीं रहा। बीते लगभग 5 साल से इस जनरेटर से कभी भी ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो सकी। लाखों रुपए पानी की तरह बहा दिए जाने के बावजूद जिला अस्पताल में लगातार बाराबंकी अथवा अन्य स्थानों से ऑक्सीजन गैस मंगवा कर काम चलाया जाता रहा है।
बताया जाता है कि अस्पताल परिसर में जो ऑक्सीजन जनरेटर लगाया गया है, वह ताइवान की कंपनी का बना हुआ है, जो काफी समय पहले ही बंद हो चुकी है। इस कारण से इसके सामान मिलना संभव नहीं हो पा रहा है। प्रश्न यह उठता है कि आखिर एक गैर जिम्मेदाराना कंपनी से लाखों रुपए की कीमत का जनरेटर क्रय करने का जिम्मेदार कौन है? अब तक उसके विरुद्ध कार्यवाही की कोशिश क्यों नहीं की गई ?
शोभा की वस्तु बना ऑक्सीजन प्लांट
सूत्रों के अनुसार किसी भी इलेक्ट्रॉनिक मशीन की आवश्यक उम्र कम से कम 10 साल होती है । 10 साल के उपरांत ही टेक्नोलॉजिस्ट उसे सही अथवा गलत घोषित कर सकता है, लेकिन यहां तो लगाने के बाद से यह ही यह ऑक्सीजन प्लांट शोभा की वस्तु बनकर रह गया है। मौजूदा दौर में जब ऑक्सीजन के लिए हर जगह त्राहि-त्राहि मची है। इस ऑक्सीजन जनरेटर की याद पुनः ताजा हो रही है, साथ ही यह मांग भी उठने लगी है कि घटिया दर्जे की खरीद करने वालों के विरुद्ध हर हाल में कार्यवाही सुनिश्चित की जाए। इस संबंध में जब मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर ओम प्रकाश से जानकारी ली गई, तो उन्होंने भी स्वीकार किया कि जिस कंपनी से जनरेटर को क्रय किया गया था। वह बंद हो चुकी है, जिसके कारण इसके सामान नहीं मिल पा रहे हैं। जनरेटर को बनवाने के कई बार प्रयास किए गए लेकिन उसमें सफलता नहीं मिल सकी है।