Behmai Case: 43 साल बाद आया कोर्ट का फैसला, एक दोषी को उम्रकैद, फूलन देवी समेत 36 लोग थे आरोपी

Behmai Case: इस मामले में कानपुर देहात की एंटी डकैती कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए एक आरोपी को आजीवान करावास की सजा सुनाई है। साथ ही एक आरोपी को बरी कर दिया है। मामले में वादी के साथ मुख्य आरोपी फूलन देवी सहित कई आरोपियों की मौत हो चुकी है। इस घटना में कुल 36 लोगो को आरोपी बनाया गया था।

Update:2024-02-14 18:40 IST

Phoolan Devi (Pic:Social Media)

Behmai Case: देश को दहला देने वाले उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के चर्चित बेहमई हत्याकांड मामले में 43 साल बाद कोर्ट का फैसला आया है। कोर्ट ने इस मामले में एक आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाई है जबकि एक आरोपी को बरी कर दिया है।

बेहमई मामले में बुधवार को कानपुर देहात की एंटी डकैती कोर्ट ने सजा सुनाते हुए एक आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाई है। साथ ही एक आरोपी को बरी कर दिया है। इस चर्चित मामले में वादी के साथ मुख्य आरोपी फूलन देवी सहित कई आरोपियों की मौत हो चुकी है। इस घटना में कुल 36 लोगों को आरोपी बनाया था। अदालत ने बेहमई कांड में जेल में बंद दो आरोपियों में एक आरोपी श्याम बाबू को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई जबकि एक आरोपी विश्वनाथ को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।

क्या था बेहमई कांड?

कानपुर देहात के राजपुर थाना थाना क्षेत्र के यमुना किनारे बसे बेहमई गांव में 14 फरवरी 1981 को डकैत रही फूलन देवी ने लाइन से खड़ा करके 20 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। जिनकी हत्या की गई वे सभी ठाकुर बिरादरी के थे। इस घटना के बाद देश और विदेश में इस घटना की काफी चर्चा थी।

वादी राजाराम हर तारीख पर न्याय पाने की आस में कोर्ट आते थे 

घटना के बाद कई विदेशी मीडिया ने भी जिले में डेरा डाल लिया था और वहीं जब सारा गांव, जिला इस घटना से कांप रहा था तो वहीं गांव के ही राजाराम मुकदमा लिखावाने के लिए आगे आए थे। उन्होंने इस मामले में फूलन देवी और मुस्तकीम समेत 14 को नामजद कराते हुए 36 डकैतों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था लेकिन पूरे देश को दहला देने वाला बेहमई कांड लचर पैरवी और कानूनी दांव पेंच में ऐसा उलझा कि 42 सालों में भी पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाया था। वहीं बहुचर्चित मुकदमे में नामजद अधिकांश डकैतों के साथ ही 28 गवाहों की मौत हो चुकी थी। वादी राजाराम हर तारीख पर न्याय पाने की आस में हर तारीख पर माती कोर्ट आते थे और सुनवाई के लिए जिला न्यायालय पहुंचते थे। लेकिन न्याय की आस लिए वादी राजाराम की भी मौत हो चुकी है।

अब जब 43 साल बाद इस मामले में कोर्ट का फैसला आया है तो निश्चित ही उन लोगों को न्याय मिला है जिन परिवारों ने अपनों को इस जघन्य मामले में खो दिया था।

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