कुम्भ का वैश्विक प्रसार हुआ, सफाई कर्मियों की होती रही उपेक्षा

दिव्य कुम्भ भव्य कुम्भ एवं स्वस्थ्य कुम्भ यह एक ऐसा नारा है जिसका न केवल प्रदेश व देश बल्कि समूचे विश्व में डंका बज रहा है। कुम्भ को स्वच्छ बनाने के लिए उत्तर प्रदेश के अधिकांश जनपदों से सफाई कर्मी पहुंचे हैं। कुछ अपने परिवार के साथ तो कुछ अंकेले ही पहुंचे। सभी अपने अपने गृह जनपदों में दिहाड़ी मजदूरी का काम करते थे। कुम्भ में 20 हजार से अधिक सफाई कर्मियों की तैनाती हुई है। जिनको दो शिफ्ट में आठ घण्टे का कार्य करना पड़ता है।

Update: 2019-02-14 11:21 GMT

आशीष पाण्डेय

कुंभ नगर: दिव्य कुम्भ भव्य कुम्भ एवं स्वस्थ्य कुम्भ यह एक ऐसा नारा है जिसका न केवल प्रदेश व देश बल्कि समूचे विश्व में डंका बज रहा है। कुम्भ को स्वच्छ बनाने के लिए उत्तर प्रदेश के अधिकांश जनपदों से सफाई कर्मी पहुंचे हैं। कुछ अपने परिवार के साथ तो कुछ अंकेले ही पहुंचे। सभी अपने अपने गृह जनपदों में दिहाड़ी मजदूरी का काम करते थे। कुम्भ में 20 हजार से अधिक सफाई कर्मियों की तैनाती हुई है। जिनको दो शिफ्ट में आठ घण्टे का कार्य करना पड़ता है।

मानदेय भी इतना कि भोजन हो रहा मुश्किल

दिव्य कुम्भ के नाम पर शासन द्वारा 4500 करोड़ रूपए के करीब धनराशि आवंटित की गई है। लेकिन दिव्य कुम्भ को स्वच्छ कुम्भ बनानें और विश्व पटल पर इसकी स्वच्छता का संदेश देने वाले सफाई कर्मियों को सबसे कम मानदेय दिया जा रहा है। इनको 285 रूपए प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी दी जाती है। जो पन्द्रह दिन में उनके खातों में आती है।

सफाई कर्मियों का बनाया राशन कार्ड उसमें भी लापरवाही

कुम्भ में स्वच्छता को लेकर सक्रिय सफाई कर्मियों को मेले में खाद्यान्न विभाग द्वारा राशन कार्ड आवंटित किया गया है लेकिन उसमें उन्हें प्रत्येक माह 3 किलो आटा व 2 किलो चीनी के अलावा कुछ नहीं मिलता। इतने राशन में एक सप्ताह काटना भी मुश्किल हो जाता है फिर भला सफाई कर्मी पूरे माह कैसे चलाते हैं यह एक बड़ा सवाल है और अचंभे की बात तो यह है कि सफाई कर्मियों को अब तक एक लीटर भी मिट्टी का तेल नहीं मिल सका। आखिरकार मिट्टी का तेल गया कहां।

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रहने को नहीं मिली स्वच्छ जगह

कुम्भ मेले को स्वच्छ बनाने में सराहनीय कार्य कर रहे सफाई कर्मियों को मेला प्रशासन द्वारा रहने के लिए ऐसी जगह दी गई है जो नालों के आस पास है और वहां लोग जाने से कतराते हैं। जब इन सफाई कर्मियों के रहने के तंबुओं को देखा गया तो आश्चर्य हुआ कि जहां मेले में आलीशान तंबुओं की नगरी बनाई गई है तो वहीं सफाई कर्मियों को पन्नियों की छोलदारी के सहारे रात गुजारनी पड़ रही है।

कहां कहां से आए हैं सफाई कर्मी

कुम्भ में उत्तर प्रदेश के बांदा, कौशाम्बी, हमीरपुर, फतेहपुर, गाजीपुर, बलिया, उन्नाव समेत अधिकांश शहरों के ग्रामीण इलाकों में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले कुम्भ में सफाई का कार्य कर रहे हैं।

उनकी दिनचर्या

कुम्भ में तैनात सफाई कर्मी दो शि्फ्ट में काम करते हैं। सुबह 5 से 8 और दोपहर में 2 से 8 बजे तक। जो सुबह कम काम करते हैं। सफाई कर्मी सुबह उठने के बाद चाय पीकर और रूखा सूखा जो मिला वह खाकर अपने काम पर चले जाते हैं। उसके बाद उनके खाने का कोई निश्चित समय नहीं होता।

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सूखी पूड़ी व चटनी, या चीनी का होता है नाश्ता

सफाई कर्मियों के खाने में आम तौर पर रात में बची सूखी रोटी या कहीं से मिली पूड़ी ही रहती है। जिसे वह टमाटर की चटनी या चीनी के साथ खाकर अपने काम पर निकलते हैं। उनके बच्चे भी वहीं दिन भर खेलते रहते हैं। उनकी सफाई, स्वास्थ्य और खान पान भी इसी क्रम में चलता है।

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कुम्भ नगर के सेक्टर दो में बने सफाई कर्मियों के ठीहे पर जब पहुचां तो वहां पन्नियों से बने छोटे छोटे छोलदारी टेंट, चूल्हे और समीप में पड़ी लकड़ियों को देख बात चीत की उस बात चीत के कुछ अंश

महिला सफाई कर्मी से की पूछताछ

आपका नाम क्या है पूछने पर शिवकली बताती हैं-

हमार नाम शिवकली है। हम फतेहपुर के साई के रहय वाले हैं। भैया हमका लोगन का कौनो सुविधाय नय मिलत। हम अपने आदमी राजनारायण और दो बच्चे कांक्षा 8 व सौरभ 7 साल के साथ हियां काम करय आए हैं। हमार राशन कार्ड नय बना। खातव बन्द है। पैसा दूसर से लइ के तब राशन खरीदी थी। मोदी जी सबका गैस देत थेन हमका लोगन का कौनो पूंछय नय आवत।

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बबेरू बांदा के रहने वाले सतपाल बताते हैं कि हम दिसम्बर से यहां काम कर रहे हैं। गांव में मजदूरी मिली तो ठीक नहीं तो बाहर ही जाते हैं काम के लिए। यहां काम पर आए हैं लेकिन साहब मजदूरी कमि अहय हिया। बतावा 280 रूपिया देति हय। ओमे से राशन, लकड़ी, मिट्टी के तेल इहै खरीदय मे पइसा अधियाय जात है।

स्वच्छ और स्वस्थ्य कुम्भ के बीच गंदगी में खेलता है बचपन

कुम्भ को स्वच्छ और स्वस्थ्य बनाने की मुख्य जिम्मेदारी निभा रहे सफाई कर्मियों के बच्चों को न तो खिलौनो की ललक है न ही महंगे कपड़ों की। जो मिला उसी में खुश हैं। बच्चे उसी गंदगी के बीच खाने खाते हैं और वहीं खेलने में मशगूल हो जाते हैं।

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इन सफाई कर्मियों ने दी जानकारी: शिवकली फतेपुर, मनोज गाजीपुर, सतपाल बांदा, गुडडू हेला बलिया, छत्रपाल हमरीरपुर, छोटेलाल खागा आदि दर्जनों लोग हैं जो कुम्भ को स्वच्छ बनाने को पूरी तन्मयता से कार्य कर रहे हैं।

मानदेय बढ़ों को एक बार कर चुके हैं आन्दोलन

सफाई कर्मियों ने मौनी अमावस्या के पूर्व आठ घण्टे के स्थान पर लगभग 10 से 12 घण्टे काम कराने और मजदूरी 295 रूपए ही देने पर हड़ताल की थी। जिस पर मुख्य स्नान होने के कारण प्रशासन भी सकते में था लेकिन मजदूरों को उनकी मांग शासन तक भेजने का आश्वासन देकर प्रशासन ने उन्हें मना लिया था लेकिन हालत जस की तस बनी हुई है।

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कुम्भ में सफाई में लगे या तो देहाड़ी मजदूर हैं या बेरोजगार

कुम्भ की स्वच्छता को चार चांद लगाने के लिए लगे हजारों सफाई कर्मियों में कुछ तो बेरोजगार हैं। जो अपने गांव में भी काम नहीं करते तो कुछ ऐसे हैं तो मनरेगा की मजदूरी करते थे लेकिन कई लोग ऐसे हैं जो काम की तलाश में दूसरे शहरों का भी रूख करते हैं काम से तो मजदूर खुश हैं लेकिन मजदूरी कम मिलने और राशन की उचित व्यवस्था न होने से परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

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