माता कुष्मांडा देवी की पिंडी से रिसने वाला नीर आज भी बना हुआ है रहस्य

Update:2018-10-13 09:31 IST

कानपुर: नवरात्री के चौथे दिन जय माता दी के जयकारे के साथ माता कुष्मांडा का हुआ जलाभिषेक। शहर से करीब 60 किलोमीटर दूर घाटमपुर ब्लाक में माँ कुष्मांडा देवी का अदभुद मंदिर है। माँ दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप माँ कुष्मांडा देवी इस प्राचीन व् भव्य मंदिर में लेटी हुई मुद्रा में है।

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पिंड के रूप में लेटी माँ कुष्मांडा जिससे लगातर नीर रिसता रहता है यह नीर अमृत के सामान। कहते है इस नीर का सेवन करने से कई प्रकार की बीमारियाँ से लोगो को राहत मिलती है। हांलाकि कुष्मांडा देवी की पिंडी से रिसने वाला नीर आज भी लोगो के लिए रहस्य बना हुआ है।

मंदिर के पुजारी परशुराम दुबे के मुताबिक माँ कुष्मांडा की पिंडी की प्राचीनता की अंको में गड़ना करना बहुत मुस्किल है की यह कितने साल पुरानी है। उन्होंने बताया कि घाटमपुर क्षेत्र में घनघोर जंगल था। उस दौरान एक कुढाहा नाम का ग्वाला गाय चराने आता था। उसकी गाय चरते चरते माँ की पिंडी के पास आ जाती थी। पूरा दूध माता की पिंडी के पास निकाल देती थी।

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जब कुढाहा शाम को घर जाता था तो उसकी गाय दूध नही देती थी यह क्रम कई महीनो तक चलता रहा। तभी कुढाहा के मन यह बात आई की आज देखेगे की यह कहा-कहा जाती है जो शाम को दूध नही देती है । कुढाहा झाड़ियो के पीछे छिप कर अपनी गाय का पीछा करता रहा कुढाहा ने देखा की उसकी गाय एक एक पिंडी के ऊपर गाय खड़ी है और अपने आप दूध निकल रहा है।

यह देख वह बड़ा आचर्य चकित हो गया उसने यह अपने गाँव में बताई। ग्रामीणों ने इस जगह पर एक छोटी सी मठिया बना दी धीरे धीरे इस स्थान पर तमाम साधू संत भी आ कर रहने लगे और पूजा पाठ करने लगे । लेकिन लोगो को चौकाने वाली यह थी कि पिंडी से निकलने वाले नीर को माता का प्रसाद मानकर लोग चखने लगे जिससे तमाम बीमारियों में लोगो राहत मिलने लगी।

पुजारी परशुराम का मानना है है कि यदि सूर्योदय से पहले नहाने के बाद स्वाछ होकर कर छ माह तक कुष्मांडा माँ के पिंडी से निकलने वाले नीर का इस्तेमाल किसी भी बीमारी में किया जाए तो उसकी बीमारी सत प्रतिसत ठीक हो जाएगी। आँखों की बीमारी से पीड़ित श्रद्धालु नीर को आँखों में लगाते है लेकिन उन्होंने कहा की लोग ऐसा कर नही पाते है। इसके लिए बहुत नियम और शैयम की जरूरत होती है।

मंदिर के बगल में बने तलाब का भी बड़ा आश्चर्य चकित इतिहास है मंदिर की सेवा करने वाले बुजुर्ग राजपाल सिंह के मुताबिक ।जब से यह माता कुष्मांडा का मंदिर बना है यह तलाब कभी सूखा नही है। उन्होंने कहा की मेरी उम्र 68 साल है लेकिन मैंने कभी भी इस तलाब को सुखा नही देखा है । बारिश हो या न हो लेकिन यह तलाब सूखता नही है।

मंदिर की माली मन्नी देवी ने बताया कि माँ दुर्गा के चौथे स्वरुप का नाम कुष्मांडा देवी है। यह श्रष्टि की आदि स्वरूप और आदि शक्ति है। नवरात्र पूजन के चौथे दिन माँ कुष्मांडा देवी की उपासना की जाती है। माँ कुष्मांडा के मंदिर में दर्शन करने के बाद जिन भक्तो की मुरादे पूरी हो जाती है वह मंदिर में आकर कथा सुनते है।

बिरहर गाव के पवन अवस्थी अपने पूरे परिवार के साथ माता के दरबार में कथा सुनने आए है। उन्होंने बताया की खेती का एक विवाद चल रहा था और मनोकामना मानी थी कि विवाद निपट जाएगा तो माता के दरबार में कथा सुनेगे। इस लिए आज कथा सुनने के लिए परिवार समेत आए है। इसी प्रकार लोग यहाँ पर बच्चो के मुंडन संस्कार कराते है।

लोगों का मानना है की माँ के दरबार में आने वाले सभी भक्त निराश हो कर जाते है। उन्होंने बताया कि की मैं यहाँ पर बहुत बड़ा भंडारा करा रहू। माँ कुष्मांडा देवी ने मेरी मनोकामना पूरी की है। श्री कुष्मांडा माता सेवा समिति के सचिव विजय मिश्र के मुताबिक इस मंदिर में विदेशी पर्यटक भी आते है। नवरात्री के पर्व में यहाँ पर मेला लगाने का प्रबध नगर पालिका करती है और कमेटी मेले में देख रेख का काम करती है।

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