साइकिल बनी भगवान: दुख और आँखों में आँसू, चल पड़े सफर पर

यह लोग किसी तरह से पुरानी अथवा नई साइकिल खरीदकर बड़ी संख्या में प्रवासी कामगार घर लौटने के लिए सैकड़ों किलोमीटर की लंबी साइकिल यात्रा पर निकल पड़े हैं।

Update:2020-05-15 13:00 IST
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नई दिल्ली। श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलवाए जाने, प्रदेश सरकार कई जगहों पर बसें भेजे जाने के बावजूद दूसरे शहरों में फंसे प्रवासी कामगारों के लिए साइकिल घर लौटने का महत्वपूर्ण साधन बन गया है। यह लोग किसी तरह से पुरानी अथवा नई साइकिल खरीदकर बड़ी संख्या में प्रवासी कामगार घर लौटने के लिए सैकड़ों किलोमीटर की लंबी साइकिल यात्रा पर निकल पड़े हैं। इसकी वजह से नयी-पुरानी साइकिल की मांग भी अचानक बढ़ गई है। कई स्वयंसेवी संगठनों ने समाज से अपील की है कि जिसके भी घर में पुरानी साइकिल कोई हो अथवा आर्थिक तौर पर सम्पन्न लोग साइकिल दान में देना चाहते हों तो वह इसके लिए आगे आ सकते हैं।

12 दिनों तक साइकिल चली

इसके पीछे सबसे बड़ा कारण श्रमिकों का साइकिल की यात्रा पर विश्वास है। पूरे देश में न जाने कितने कामगार और श्रमिक इन दिनों साइकिल से ही एक हजार से लेकर 1200 किलोमीटर तक की यात्रा कर अपने ठिकाने पर पहुंच रहे हैं। बीरमित्रपुर करबला रोड निवासी धीरज टोप्पो दिल्ली में श्रमिक के रूप में काम करता था। लॉकडाउन के कारण उसका काम बंद हो गया। घर लौटने के लिए वह छूट मिलने का इंतजार कर रहा था पर दूसरे चरण का लॉकडाउन खत्म होने से पहले ही उसे पता चला कि और दो सप्ताह के लिए लॉकडाउन बढ़ने वाला है इसके बाद वह साइकिल से ही घर के लिए निकल पड़ा। 12 दिनों तक साइकिल चलाकर वह सोमवार की शाम करीब आठ बजे बीरमित्रपुर झारखंड-ओडिशा सीमा पर पहुंचा।

1100 किलोमीटर लंबा सफर

उत्तराखंड में मजदूरी करने वाले राजन अपने आठ साथियों के साथ 10 मई को बिहार के बक्सर स्थित अपने घर के लिए साइकिल यात्रा पर निकले हैं। ये लोग 1100 किलोमीटर लंबा सफर साइकिल से तय करेंगे।

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बृहस्पतिवार सुबह बलरामपुर पहुंचे राजन ने बताया कि लॉकडाउन के बाद जब घर वापस लौटने के लिये कोई साधन मिलता नहीं दिखा तो आठों ने बचे हुए पैसे जमा कर उससे चार साइकिलें खरीदी और उनसे गंतव्य की ओर निकल पड़े। उन्होंने बताया कि एक वक्त पर एक व्यक्ति साइकिल चलाता है और दूसरा पीछे कैरियर पर बैठा रहता है, ऐसे करके दो लोग बारी-बारी से 50-50 किलोमीटर तक साइकिल चलाते हैं।

सामने अब खाने का संकट

हरियाणा के रोहतक में मजदूरी करने वाले राधेश्याम के सामने लॉकडाउन के कारण रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया। वतन वापसी के लिये कोई साधन नहीं मिला तो साइकिल खरीद कर अपनी पत्नी के साथ 900 किलोमीटर का सफर तय करके घर लौट आए।

लॉकडाउन में काम-धंधा बंद होने से परदेस में रह रहे लोगों के सामने अब खाने का संकट खड़ा हो गया है। लोग तरह-तरह के जतन कर अपने घर को वापस आने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।

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बीकापुर के सूल्हेपुर निवासी सुभाष वर्मा 17 दिनों की पैदल यात्रा कर मंगलवार शाम अपने घर पहुंचे। वहीं, हरियाणा के जींद से साइकिल से यात्रा कर 8 युवक मंगलवार दोपहर बीकापुर कस्बे में पहुंचे। जिसमें 6 युवक अतरैला रीवा और दो युवक गोसाईगंज सुल्तानपुर के निवासी हैं।

17 दिन की पैदल यात्रा करके बीकापुर पहुंचा है। बताया कि यात्रा के दौरान उसके साथ बस्ती जनपद और अन्य जिलों के भी करीब 2 दर्जन लोग पैदल अपने अपने घर आए हैं। रास्ते में कुछ जगह पर ट्रक और सरकारी बस से भी कुछ दूरी तक यात्रा हुई है। लेकिन ज्यादातर सफर पैदल तय हुआ है। घर आने के बाद बुधवार सुबह सुभाष सीएचसी बीकापुर पहुंचा, वहां स्वास्थकर्मियों द्वारा हाथ में मोहर लगाकर 21 दिनों के लिए होम क्वारंटीन के लिए कहा गया। वहीं, हरियाणा के जींद से साइकिल से यात्रा कर 8 युवक मंगलवार दोपहर बीकापुर कस्बे में पहुंचे। जिसमें 6 युवक अतरैला रीवा और दो युवक गोसाईगंज सुल्तानपुर के निवासी हैं।

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अतरैला रीवा प्रयागराज के निवासी रामप्रकाश, अर्जुन, लल्लन कुमार रावत, राहुल कुमार, सुभाष, राजा और गोसाईगंज सुल्तानपुर के अजय कुमार और सुजीत कुमार ने बताया कि हम सभी लोग जींद में एक फ्लोर मिल में काम करते हैं। लॉकडाउन के कारण कामधंधा बंद हो गया। किसी तरह एक माह का समय व्यतीत किया।

उसके बाद सभी लोगों को साइकिल से घर के लिए निकल पड़े। रास्ते में काफी दिक्कतें हुई। सोने को नहीं मिला। भूखे भी रहना पड़ा। कस्बे में ड्यूटी कर रहे पुलिसकर्मियों ने सभी युवकों को आश्रय स्थल भारती इंटर कॉलेज में पहुंचाया। वहां कम्युनिटी किचन में भोजन करने के बाद सभी युवक साइकिल से आगे के सफर के लिए रवाना हो गए।

एक साइकिल विक्रेता ने बताया कि कोरोना वायरस संक्रमण संकटकाल में लॉकडाउन की काली छाया से लाखों उघोग धंधो पर भले ही संकट के बादल छाए गए हो लेकिन साइकिल कारोबार में तेजी आई है। बड़े पैमाने पर श्रमिक साइकिल खरीद रहे हैं। पहले जहाँ हर रोज 8 से 10 साइकिलें बिकती थीं वहीं आज 30 से 35 साइकिलें बिक रही हैं। कम पैसे होने की वजह से लोग पुरानी साइकिल भी खरीद रहे हैं। साइकिलों की ब्रिकी बढ़ने के कारण साइकिल बांधने वाले अतिरिक्त कारीगरों को लगाना पड़ा है जिससे उनकी रोजी रोटी भी चल पड़ी है।

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