Lucknow News: ये है हिन्दी अपनाने का समय, दिनेश शर्मा ने अंग्रेजी पर कही ये बात

Lucknow News: पूर्व उपमुख्यमंत्री डा. दिनेश शर्मा ने कहा कि हिन्दी भाषा को आज पूरी दुनिया में सम्मान मिल रहा है। आज समय अपने आप को अंग्रेजी मानसिकता से मुक्त कर हिन्दी को आत्मसात करने का है।

Newstrack :  Network
Update:2024-09-17 20:51 IST

दिनेश शर्मा ने कहा- अंग्रेजी मानसिकता से मुक्त होकर हिन्दी को आत्मसात करने की जरूरत: Photo- Social Media

Lucknow News: राज्यसभा सांसद व यूपी के पूर्व उपमुख्यमंत्री डा. दिनेश शर्मा ने कहा कि हिन्दी भाषा को आज पूरी दुनिया में सम्मान मिल रहा है। आज समय अपने आप को अंग्रेजी मानसिकता से मुक्त कर हिन्दी को आत्मसात करने का है। इसके लिए अपने संस्कारों को भी अंगीकार करना होगा। उनका कहना था कि अंग्रेजों का तो देश के लोगों ने भरपूर सामना किया था पर पाश्चात्य संस्कृति के आक्रमण से आज भी लोग दूषित दिखाई देते हैं। विदेशी संस्कृति ने ही हमारी संस्कृति के मूलभाव को आघात पहुचाया है।

बाबा साहेब डा भीमराव अम्बेदकर विश्वविद्यालय में हिन्दी पखवाड़ा कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए सांसद दिनेश शर्मा ने कहा कि आज भारत तेजी से प्रगति करते हुए दुनियाभर में अपनी छाप छोड रहा है। अर्थव्यवस्था के मामले में देश पांचवे स्थान पर पहुच चुका है और आने वाले समय में दुनिया की तीसरी सबसे बडी अर्थव्यवस्था होगा। इसके पीछे बदली हुई कार्य संस्कृति है।

हिन्दी भाषा उन्नति का आधार है- डा. दिनेश शर्मा

उन्होंने कहा कि हिन्दी भाषा उन्नति का आधार है। समय के साथ इस भाषा और संस्कार में कमी आई है जिसका मूल कारण जीवन शैली के बदलाव है। आज अंग्रेजी स्कूल में बच्चे को पढ़ाना फैशन सा हो चला है। यह बदलाव घर के अन्दर भी बडा बदलाव ला रहा है। बच्चे को अग्रेजी सिखाने की लालसा में परिवार में भी दूरी पैदा हो रही है। समाज में आगे बढ़ने की होड़ में लगे लोग अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं। जन्मदिन मनाने का तरीका तक बदल गया है। पहले जहां भगवान के समाने दीप जलाकर जीवन में प्रकाश लाने की कामना की जाती थी वहीं आज केक पर लगी मोमबत्ती को बुझाने का चलन हो गया है। पहले बंूदी का लड्डू जो बंूदी को मिलाकर बनाया जाता है उसे जन्मदिन पर वितरित किया जाता था पर अब केक को काटकर बांटा जाता है। ये अन्तर भारत और विदेशी संस्कृति का है। हमारी संस्कृति समन्वय व जोडने की है जबकि विदेशी संस्कृति बांटने की है।

हिन्दी को राजभाषा बनाने के लिए आन्दोलन 

पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा कि महात्मा गांधी ने 1918 में हिन्दी को राजभाषा बनाने को लेकर आन्दोलन किया था। 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को राज भाषा के रूप में स्वीकार किया गया था। उस समय से इस दिन को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हर देश के नागरिक अपनी भाषा पर गर्व करते हैं । हिन्दी भी एक अग्रणी भाषा है जिसने तमाम भाषाओं के शब्दों को अपने में समाहित किया है।

नई शिक्षा नीति

भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति में सभी प्रकार की शिक्षा हिन्दी में प्राप्त करने की व्यवस्था कर दी है। सभी परीक्षाए भी हिन्दी में आयोजित हो रही हैं। हिन्दी दिवस सही मायने में अपने संस्कारों के स्मरण का दिन है।

डा शर्मा ने कहा कि आक्रान्ताओं ने भारत की विरासत और विद्या के केन्द्रो व शास्त्रों को नष्ट कर दिया था । नालन्दा विश्वविद्यालय में आग लगाई गई पर विद्वानों ने शास्त्रों को कंठस्थ कर लिया और बाद में उनका फिर से लेखन किया। भारत समृद्ध था इसलिए आक्रान्ता उसे हर तरह से बदल देना चाहते थे। इसके लिए धर्म को जातियों में बांट दिया था। पहले के समय में भारतीय समाज में वर्ण व्यवस्था थी जिसमें कर्म के अनुसार वर्गीकरण किया गया था। कर्म बदलने पर वर्ण भी बदल जाता था।

भारत के समाज को जाति में बांटने के पीछे उनकी मंशा यहां की संस्कृति और संस्कार को नष्ट करने की थी। मैकाले ने अपने एक पत्र में लिखा था कि भारत पर लम्बे समय तक राज करने के लिए वहां की संस्कृति को नष्ट करने के साथ ही देश के छोटे उद्योगों को समाप्त करके आत्मनिर्भरता पर चोट करनी होगी। इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए ही देश में अंग्रेजी स्कूल खोले गए थे। उन्होंने कहा कि हिन्दी पखवारे में हिन्दी के उत्थान के लिए पहल होनी चाहिए । हर विभाग में कार्यक्रम आयोजित किए जाए। 

इस अवसर पर उपस्थित रहे

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रोफेसर एनoएमoपीo वर्मा, सहायक निदेशक, शिवकुमार त्रिपाठी, सदस्य उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी, श्रीकांत शुक्ला, विभाग अध्यक्ष, नृत्य सरस्वती संगीत अकादमी, डॉ आरती, डॉ श्वेता वर्मा, सह आचार्य सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, कैप्टन राजश्री आदि उपस्थित रहे।

एक अन्य कार्यक्रम में ब्रह्मनिष्ठ संत सखी बाबा आशुदाराम साहब जी के 64वें निर्वाण महोत्सव के अवसर पर आलमबाग लखनऊ स्थित शिव शांति संत आशुदराम आश्रम में संत साईं जी से भेंट कर उपस्थित विशाल जनसमूह को संबोधित किया।

इस अवसर पर सिंधी अकादमी के निवर्तमान अध्यक्ष नानक चंद लखमानी, मुरलीधर आहूजा, वीरेंद्र खत्री जी, सूरज जसवानी, पूर्व पार्षद सकेत शर्मा आदि उपस्थित रहे।

Tags:    

Similar News