Mahakumbh Snan 2025: अति देखिये, अति के खेल देखिये

Mahakumbh Snan 2025: बीस लाख में भी ये प्राचीन शहर चरमराता नजर आता है। अब महाकुम्भ की बात थी तो करोड़ों की भीड़ आना तय ही था।;

Written By :  Yogesh Mishra
Update:2025-02-26 08:20 IST

Mahakumbh 2025 Prayagraj Sangam Kumbh Snan Crowd Stampede Analysis Story in Hindi

Mahakumbh Snan 2025: आचार्य चाणक्य की एक सूक्ति है - ‘अति सर्वत्र वर्जयेत।’ यानी अति हर जगह रोकी जानी चाहिए। अति यानी जरूरत से ज्यादा। सीमा के पार।क्योंकि अति हुई नहीं कि गड़बड़ी तय है। लेकिन तमाम सूक्तियों, कहावतों, ज्ञान की बातों की तरह ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’ का भी पालन शायद ही कोई करता है और इसका मुजाहिरा हमने प्रयागराज महाकुम्भ में इस बार बखूबी देख लिया है। इतनी अति शायद ही किसी आयोजन में देखी सुनी गयी होगी। शुरुआत हुई दावों की अति से। इंतजाम के इतने ज्यादा दावे किये गए, बढ़ा चढ़ा कर किये गए कि मानो अब कभी ऐसा मौक़ा नहीं मिलेगा। माना जाता है कि प्रयागराज की कुल आबादी करीब बीस लाख है। बीस लाख में भी ये प्राचीन शहर चरमराता नजर आता है। अब महाकुम्भ की बात थी तो करोड़ों की भीड़ आना तय ही था।

लेकिन इंतजाम के दावे चालीस करोड़ के किये गए। सरकार की माने तो यह संख्या अभी बासठ करोड़ पार कर गयी है। महाशिवरात्रि तक सत्तर करोड़ का आँकड़ा पार कर जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए । वह भी तब जब यह पहली बार का कुंभ नहीं है। कुम्भ अनादिकाल से होता आ रहा है । लेकिन इस बार पब्लिसिटी की अति कर दी गयी। सोशल मीडिया से लेकर अखबार-टीवी-होर्डिंग तक हर जगह कुम्भ ही कुम्भ। प्रचार की हद का ही नतीजा रहा कि कुंभ, महाकुंभ बन गया।


दावों की ऐसी अति हुई कि लोगों ने भी प्रयागराज पधारने में अति कर दी। अब पहुंचना सबको है सो जत्थे के जत्थे ट्रेनों पर सवार हो गए। सब दूरियां, खाइयाँ, वर्ग अन्तर – सब कुछ खत्म हो गया। क्या टिकट और क्या बेटिकट सब के सब हर डिब्बे में सवार हो कर कुम्भ पहुँचने लगे। इंजन और गार्ड के डिब्बे भी नहीं बच सके। एसी डिब्बे तो जनरल हो गए और हालात ये हो गए कि जनता खिड़की – दरवाजे तोड़ कर डिब्बों में घुसने लगी। भारतीय रेल ने ऐसी अति शायद ही कभी देखी हो।


भीड़ तंत्र ने एसी डिब्बों की खिड़की दरवाजे तोड़ने और सीटों पर कब्जा जमाने जो सिलसिला दिखाया है वो आगे के लिए भीड़ का एक मानक न बन जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। मुंह में खून लगना जैसी कहावतें अब डराती हैं तो कोई अचरज की बात नहीं। वैसे, अति सिर्फ ट्रेनों की नहीं बल्कि सड़क मार्गों पर अव्यवस्था और जामों की भी हुई। पचासों किलोमीटर के जाम जो पहले न कभी देखे गए थे, न सुने गए।

प्रयागराज में कुम्भ मेला इलाके, संगम तट पर भीड़ की ऐसी अति हुई कि कितनी ही जानें चलीं गईं, कितने ही घायल हो गए। ये सब भी उन अति दावों के बाजवूद हुआ जिसमें एआई, ड्रोन, कैमरा, सुरक्षा बल के इंतजामों से अति-सुरक्षा की बात कही जा रही थी। महाकुम्भ जैसे जैसे परवान चढ़ता गया, व्यवस्थाएं मुंह बाने लगीं और फिर शुरू हुआ अफसरों की अति तैनाती का सिलसिला। पुलिस-प्रशासन के इतने अफसर झोंक दिए गए जितने शायद ही पहले के आयोजनों में लगाये गए हों। आए दिन नई तैनाती से सवाल लाजिमी है कि क्या जो पहले से थे वो नकारा साबित हुए? एक अफसर की जगह दस दस को लगाने का मतलब एफिशिएंसी बढ़ाना था या फिर नाकारेपन को ढकना था? कर्मचारी किस अफसर की सुन रहे थे? या किसी की भी नहीं सुनी जा रही थी? जवाब आप खुद ही सोच लीजिएगा।

आस्था का ज्वार ऐसा टूटा कि संगम तट पर वीआईपी स्नान की भी अति हुई। रोज का रोज टाइमटेबल आने लगा कि कौन कौन वीआईपी अमृत स्नान लेने आ रहे हैं। क्या बिजनेसमैन, फिल्म स्टार और क्या मंत्री, नेता और गवर्नर। हर कोई स्नान करता और फोटो खिंचवाता नजर आया। वीवीआईपी की अति थी तो वीआईपी भी अति किये रहे। वीआईपी की अलग सड़क पर वीआईपी न सही, उनके परिवारों-रिश्तेदारों- मित्रों की आवाजाही निर्बाध रूप से अति किये रही। रही आम जनता की बात तो वे केवल ‘गतानुगति को लोकः’ का पालन करते हैं।


अति रहने ठहरने की भी अद्भुत रही। 90 हजार रोजाना किराये के टेंट! प्रयागराज पहुँचने के लिए डोमेस्टिक फ्लाइटों का किराया 50 – 50 हजार! आस्था के आयोजन में पैसेवालों की लक्जरी और वीआईपी आवभगत की ऐसी अति एक अलग लेवल पर पहुँच गई। कुम्भ स्नान और मेला न हो कर एक टूरिस्ट स्पॉट और इवेंट का केंद्र हो गया। नॉन – वीआईपी ने भी अपनी अति छोड़ी नहीं। इसे लूट कहें या बिजनेस का अवसर, लोकल लोगों ने बाइक राइड का ऐसा बिजनेस खड़ा कर लिया कि चंद किलोमीटर तक ले जाने के लिए दो-दो, तीन-तीन हजार रुपये चार्ज किये जाने लगे। इसे कहते हैं आस्था में अवसर की अति।

कुम्भ में रील्स की अति हो गयी। कुम्भ सेल्फी पॉइंट बन गया। ऐसी अति मची कि स्नान करती महिलाओं के फोटो – वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर बेचे जाने लगे। गंदगी सिर्फ दिमागी ही नहीं रही बल्कि नदी तटों से लेकर नदी के भीतर तक गंदगी की अति दिखाई दी। पॉलुशन कंट्रोल बोर्ड ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल प्को दी गई अपनी रिपोर्ट में प्रयाग में बह रहे गंगा, यमुना व संगम के जल को प्रदूषित बताने की अति करता दिखा। तो सरकार उसे झूठ साबित करने की अति में जुटी दिखी।


अति बयानों की भी हुई। क्या नेता और क्या संत-महंत, सबने बयानों की अति कर दी। संत महंत ईश्वर से जुड़ाव दिखाने और श्रद्धालुओं को उस मार्ग पर ले जाने के बजाय राजनीतिक बयानों-नारों में लगे दिखाई दिए, जबकि नेतानगरी कुम्भ की पवित्रता को ऊटपटांग विशेषणों से दूषित करती सुनाई दी। कुम्भ में तरह तरह के साधू और बाबा हमेशा कौतूहल के पात्र होते हैं। लेकिन इस बार आम साधु पीछे रह गए और आईआईटी बाबा, माला वाली मोनालिसा जैसों की पब्लिसिटी ने अति कर दी। लगा मानों यही कुम्भ के असली पात्र-नायक हैं। इस महाकुंभ में हर पक्ष ने अति की। सरकार ने, आयोजकों ने, श्रद्धालुओं ने, अफसरों ने, संतों महंतों ने,विक्रेताओं ने। महाकुंभ के बहाने हर आदमी चमकने और चमकाने में लगा दिखा। पुण्य कमाने में अति दिखी। पाप धुलने के अति का मंजर अनदेखा नहीं रहा। प्रयाग वालो ने हाऊस अरेस्ट की अति का अहसास किया।


श्रद्धा की अति का विस्फोट सिर्फ कुम्भ और प्रयागराज की सड़कों तक सीमित नहीं रहा है बल्कि वाराणसी, चित्रकूट, अयोध्या जैसी जगहों पर समान रूप से पसर गया। हर जगह लोग ही लोग। जिसे देखिये वही 144 साल वाली आस्था से सराबोर। अति यह कि किसी ने यह नहीं पूछा कि यह 144 साल वाली बात आई कहाँ से? बहरहाल, शिकायतें चाहें जितनी हों, ऑब्जरवेशन चाहे जो हों, लेकिन ये अद्भुत है। ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया। यह तय है कि अब सैलाब का एक लेवल बन गया है। देखने वाली बात होगी कि आगे क्या क्या होगा? आयोजन बहुत और होंगे।बरस दरस होते रहेंगे। लोग भी बहुत कुछ सीख चुके हैं, परीक्षण कर चुके हैं और महसूस कर चुके हैं। अगला लेवल क्या होगा, किस स्वरूप में होगा, देखना दिलचस्प होगा।

(लेखक पत्रकार हैं।ये लेखक के निजी विचार हैं।)

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