मथुरा। धूल होली के बाद भी बृज में होली की खुमारी उतरने का नाम नहीं ले रही है, और आज इसी खुमारी के क्रम के बृज के राजा कहे जाने वाले बलदाऊ की नगरी बल्देव में हुरंगे का आयोजन किया गया। बल्देव के मुख्य दाऊजी मंदिर प्रांगण में खेले गये इस हुरंगे में भाभी द्वारा देवर के कपड़े फाड़कर प्यार भरी तीखी नौक-झोंक होने की वजह से इसे कपड़ा फाड़ होली भी कहा जाता है। दूसरी ओर 'मेरौ दाऊ बड़ौ मतवालौ, होरी में खेले हुरंगा’ कहकर होली का शुभारंभ किया जाता है।
जी हां। दरअसल, शनिवार को बलदेव के प्रसिद्ध दाऊजी मंदिर में होली का उल्लास छाया। जहां दोपहर से ही सेवायत गोस्वामी समाज की महिलाएं सज-धजकर मंदिर प्रांगण पहुंचने लगीं। इधर गोस्वामी समाज के बंधु भी अपनी तैयारियों के साथ पहुंचने लगे। अबीर, गुलाल, टेसू के फूलों से तैयार रंग की बौछार के साथ होरी गायन के बीच होली की मस्ती छाने लगी।
बारह बजे मंदिर प्रांगण में भगवान श्रीकृष्ण और बलदेव के प्रतीकात्मक झंडों को लेकर गोस्वामी समाज के लोग प्रवेश करते हैं। परिक्रमा के दौरान समाज की महिलाओं और पुरुषों में झंडा को लेेने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई। रसिया-धमार सस्वरों के बीच ये प्रतिस्पर्धा कोड़ों की मार में बदलने लगी। कोड़ों को सहने की पुरुषों में होड़ मच गई। कोड़ों की तड़तड़ाहट से प्रांगण गूंज उठा, परम आनंद की बारिश भक्तों को सराबोर करने लगी। दो घंटे तक चलेे इस अद्भुत नजारे को निहारने के लिए श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा।
ऊर्जा मंत्री ने भी लिया हुरंगा का मजा-
यूपी के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने हुरंगा में पहुंचकर हुरंगा का आनंद लिया। वहीँ जिलाधिकारी मथुरा सर्वज्ञराम मिश्र ने भी हुरंगा देखा।
‘देखि देखि या ब्रज की होरी, ब्रहमा मन ललचाय’ -
बलदेव प्रांगण में हुरंगे के अद्भुत नजारे ने ‘देखि देखि या ब्रज की होरी, ब्रह्मा मन ललचाय’ पंक्तियों को साकार कर दिया। प्रांगण मेें मंच पर बलराम, श्रीकृष्ण के स्वरूपों के साथ ही कंधे पर हल और हाथ में बांसुरी लिए कान्हा और बलदाऊ के अलग-अलग स्वरूपों की झलकियां आकर्षण का केंद्र रहीं। नफीरी, ढोल, मृदंग की तान के साथ होरी-रसियाओं के स्वरों ने वातावरण को होलीमय कर दिया। मंदिर के पट खुलते ही भगवान बलराम और रेवती मैया जी की छवि ने मन मोह लिया।
20 क्विंटल टेसू के फूलों से तैयार हुआ रंग-
विश्व प्रसिद्ध हुरंगे को भव्य बनाने के लिए करीब 28 क्विंटल टेसू के फूल, 150 बोरा अबीर-गुलाल, 15 बोरा भुडभुड, 150 किलो गुलाब गेंदा के फूल मंगवाए गए । टेसू के फूलों फिटकरी और केशर से तैयार रंगों को मंदिर प्रांगण में हौदों में भरा गया।
कोड़ों की मार खाने को लालायित विदेशी-
'बलदेव, वेलडन! दिस इज हुरंगा भगवान दाऊजी महाराज'। विदेशी भक्तों के मुंह से ये शब्द दाऊजी के हुरंगा को देखने के बाद निकले। विदेशों से आए भक्त इस अद्भुत नजारे को देख आनंदित हो गए। गोपिकाओं के कोड़ों की मार के लिए लालायित हो उठे। मंदिर प्रांगण में रंगों से सराबोर विदेशी भक्तों ने भी जमकर आनंद लिया।
1582 में बलदाऊ की स्थापना संग चल रही परंपरा-
बलदाऊ की नगरी बलदेव में हुरंगा की परंपरा पांच सौ साल पुरानी है। माना जाता है कि बल्दाऊजी के विग्रह की प्रतिष्ठा स्थापना 1582 में हुई। उनके स्थापत्य काल से बलदाऊ के हुरंगा खेलने की परंपरा पड़ी।
ब्रज के राजा बलदाऊ को हुरंगा से पहले सेवायत कल्याण बंशज भांग का भोग लगाते हैं। इसके बाद भांग के प्रसाद के रूप मेें बांटा जाता है।
क्यों लगता है भांग का भोग-
कहा जाता है की बरसाने , नन्द गाँव , और गोकुल के बाद की लठमार होली खेलने के बाद बलदाऊ ने पूरे बृज के सभी गोपी और ग्वाल बालों से कहा, की आप हमारे यहाँ आओ हम तुम्हे क्षीर सागर में निलाहेंगे माखन मिश्री खिलाएंगे और आप की होली की थकान मिठायेंगे इस पर सभी गोपी और ग्वालबाल बलदेव पहुंचे और वहाँ जा कर देखा तो पानी के आलावा कोई व्यवस्था नही थी और बलदाऊ भांग के नशे में मस्त थे।