Jawahar Bagh Kand: 5 साल में नहीं मिला शहीद SP को न्याय, जानें जवाहर बाग की कहानी

जवाहर बाग को अबैध कब्जेधारियों से खाली कराने में तत्कालीन एसपी व थानाध्यक्ष फरह शहीद हुए वहीं 26 कब्जेधारी भी मौत के गाल में समा गए थे ।

Reporter :  Nitin Gautam
Published By :  Shashi kant gautam
Update:2021-06-02 16:30 IST

शहीद मुकुल द्विवेदी को श्रद्धांजलि अर्पित करतीं उनकी पत्नी

मथुरा: 2 जून 2016 का दिन मथुरा के इतिहास में ऐसा काला दिन था जिसे कोई भूल कर भी भूल नही पायेगा । 5 साल पूर्व जवाहर बाग को अबैध कब्जेधारियों से खाली कराने में तत्कालीन एसपी व थानाध्यक्ष फरह शहीद हुए वहीं 26 कब्जेधारी भी मौत के गाल में समा गए थे । तत्कालीन सपा सरकार में हुए इस कांड के सहारे भाजपा ने सपा सरकार की कानून व्यवस्था पर जमकर घेरा था। प्रदेश में योगी सरकार बनी थी । मथुरा के जवाहर बाग कांड में अपनी शहादत दे चुके एसपी मुकुल द्विवेदी की पत्नी आज भी भाजपा सरकार में न्याय न मिलने से आहत हैं ।

इस कांड की पाँचवी वर्षी पर अपने पति को श्रद्धांजलि देने पहुंची शहीद मुकुल द्विवेदी की पत्नी अर्चना द्विवेदी के आँसू छलक गए । शहीद की पत्नी का आरोप है अभी तक कुछ नहीं हुआ केवल बातें होती हैं। उन्होंने कहा कि इस जवाहर बाग का छोटा सा हिस्सा उन्हें दे दिया जाए । जिससे वह उस स्थल को शहीद स्मारक के रूप में स्वयं के खर्चे से बनवा सकें । शहीद के भाई प्रफुल्ल द्विवेदी का आरोप है कि वे सीबीआई ऑफिस के कई बार चक्कर लगा चुके हैं । मुख्यमंत्री से मिले, ऊर्जा मंत्री से मिले लेकिन सिर्फ आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला ।

क्या था जवाहर बाग कांड

2 जून 2016 के दिन मथुरा जनपद के गौरवशाली इतिहास को एक बदनुमा दाग, एक अमिट गहरा काला धब्बा यूँ लगा जो आने वाले कई दशकों तक भुलाया न जा सकेगा । कारण जवाहर बाग काँड । उक्त घटना से क़रीब दो वर्ष पूर्व से ही, तत्कालीन शासन प्रशासन की लचर नीतियों से मथुरा जनपद के कलैक्टरेट परिसर, जनपद न्यायालय एवं सैनिक क्षेत्र से लगा हुआ, कई एकड़ से भी बडे़ भूखंड पर निर्मित जवाहर बाग, कुछ असामाजिक लोगों की बदनीयत व हठधर्मिता के चलते उनके क़ब्ज़े में होकर विवादित था। हज़ारों लोग उस पर क़ाबिज़ थे।



इंस्पेक्टर संतोष यादव ने दे दी अपने प्राणों की आहूति

तत्कालीन शासन प्रशासन की लचर नीतियों व विवादित आचरण से उक्त क़ब्ज़ाधारियों के हौसले बुलंद थे। इस जवाहर बाग को खाली कराने के लिए बार ऐसोसियेशन के तत्कालीन अध्यक्ष विजय पाल तोमर ने व्यक्तिगत तौर पर उच्च न्यायालय इलाहाबाद के समक्ष याचिका दायर कर उक्त जवाहर बाग को अवैध क़ब्ज़े से मुक्त कराने को अच्छी ख़ासी मेहनत मशक़्क़त की। उच्च न्यायालय ने आदेश पारित कर राज्य सरकार व ज़िला प्रशासन से प्रभावी कार्यवाही सुनिश्चित करने को कहा। इसी आदेश पर कार्यवाही को नेतृत्व कर रहे तत्कालीन एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी तथा जाँबाज़ इंस्पेक्टर संतोष यादव को अपने प्राणों की आहूति देनी पड़ी । तब जाकर कहीं यह बेशक़ीमती भूमि उन असामाजिक तत्वों से क़ब्ज़ा मुक्त हो सकी।

इस घटना ने जनपद में ख़ासा कोहराम तथा राष्ट्रीय स्तर पर सनसनी फैला दी थी। इसके बाद राज्य सरकार की निष्क्रियता को लेकर काफ़ी किरकिरी हुई और गंभीर आरोप भी लगे। काफ़ी राजनीति भी हुई, बहुत से आश्वासन दिये,जोकि अभी तक दिवास्वप्न से लग रहे हैं।

सपा सरकार में हुए इस कांड के बाद भाजपा ने अखिलेश सरकार को सवालों से जमकर घेरा था । लेकिन अब जब पूर्ण बहुमत की योगी सरकार हैं उसमे भी 5 साल बीत जाने के बाद भी शहीद के परिवार को मिले आस्वासन के बाद कहा जा सकता है कि मुद्दा गरम होता है तो हर कोई राजनीतिक पार्टी उस पर राजनीतिक रोटियां सेकती है और समय बीतने के साथ ही सुध भूल जाती है ।

Tags:    

Similar News