Meerut: विचार-व्यवहार बनाने का काम करता है मीडिया, राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोले प्रोफेसर पवन मलिक

Meerut: भारतीय ज्ञान परंपरा सतत चलने वाला विषय है। भारतीय ज्ञान परंपरा तथा भारत एक सांस्कृतिक पहचान है। संभावनाओं को संभव करने वाली हमारे ज्ञान परंपरा है।

Report :  Sushil Kumar
Update: 2024-03-27 13:33 GMT

राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोले प्रोफेसर पवन मलिक (न्यूजट्रैक)

Meerut News: भारतीय ज्ञान परंपरा सतत चलने वाला विषय है। भारतीय ज्ञान परंपरा तथा भारत एक सांस्कृतिक पहचान है। संभावनाओं को संभव करने वाली हमारे ज्ञान परंपरा है। विदेशियों ने भारतीय ज्ञान परंपरा को खत्म करने का प्रयास किया मानव विचार और व्यवहार बनाने का काम मीडिया करता है। आज के युवा के पास ज्ञान है टेक्नोलॉजी है और कुछ कर गुजरने का साहस भी है। यह बात चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ परिसर स्थित तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार स्कूल में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य वक्ता जेसी बोस विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर पवन मलिक ने कही।

प्रोफेसर पवन मलिक ने कहा कि आज का युवा सनातन को लेकर जागरूक है आज के युवाओं को यह सोचने की आवश्यकता है कि 2047 विकसित भारत में मेरा कितना योगदान है। नई शिक्षा नीति में पहली बार ऐसा हुआ है कि शिक्षा नीति में राष्ट्रीय शब्द जोड़ा गया है सर्वांगीण विकास ही नहीं सामाजिक स्तर राष्ट्र निर्माण ग्लोबल सिटिजन न्यू एजुकेशन पॉलिसी में लाया गया है। इस शिक्षा नीति में विद्यार्थियों को भारतीय ज्ञान परंपरा के साथ जोड़ना है। गौतमबुद्ध नगर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में डीन और हैड मुख्य अतिथि प्रोफेसर बंदना पांडे ने कहा कि हमारे वेदों में मौखिक संचार को जनसंचार का सबसे बड़ा माध्यम माना गया किसी भी विश्वविद्यालय में हमारे वेदों पुराणों को पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया गया। भारतीय ज्ञान परंपराओं को सामने लाने की आवश्यकता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कला संकाय के डीन प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि वेद जैसे ग तक पहुंचाने के लिए हजारों वर्ष लग गए भारतीय ज्ञान परंपरा में नया जोड़ने की संभावनाएं रहती हैं भारतीय ज्ञान परंपरा निरंतर बहती आई है। संवाद संचार का मुख्य कारक है सुनने की परंपरा ही बोलने की परंपरा है। भारतीय ज्ञान परंपरा स्थिर नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रश्न संवाद में परिवर्तित होकर संचार बनता है संचार के मूल तत्व परंपरा में ही विद्यमान है प्रश्न से जिज्ञासा जिज्ञासा से संवाद और संवाद से संचार बनता है। इस अवसर पर डॉक्टर मनोज कुमार श्रीवास्तव प्रोफेसर अशोक कुमार डॉ यशवेंद्र वर्मा लव कुमार प्रशासनिक अधिकारी मितेंद्र कुमार गुप्ता आदि मौजूद रहे।

विवि प्रवक्ता ने बताया कि दो तकनीकी सत्र हुए। पहले तकनीकी सत्र में 16 रिसर्च पेपर पढ़े गए व दूसरे तकनीकी सत्र में भी 16 रिसर्च पेपर पढ़े गए। एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में मुख्य वक्ता सुरेंद्र सिंह संपादक राष्ट्रीय देव पत्रिका ने कहा कि भारतीय कैलेंडर के विषय में जो लोग जानते नहीं हैं वह लोग मानते भी नहीं है। सृष्टि का जिस दिन निर्माण हुआ तब से हम नया वर्ष मनाते हैं। बिना खगोलीय और काल गणना से यह अंग्रेजी कैलेंडर का निर्माण हुआ था दुनिया को गणित देने का काम हमने किया काल गणना भारत से दुनिया में गई थी। सूर्य की गणना के हिसाब से खगोलीय रचना के हिसाब से त्योहार मनाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि विक्रम संवत सबसे महत्वपूर्ण होता है हम सभी को यह मानना चाहिए चीन की दीवार कायरता का प्रतीक है हमारे पूर्वजों ने कभी हार नहीं मानी।

समापन सत्र में मुख्य अतिथि डॉक्टर ताशा सिंह परिहार ने कहा कि रामायण और महाभारत युग में संचार को देखा जा सकता है सोशल साइंस संचार का बहुत बड़ा क्षेत्र है और संचार में सोशल साइंस का महत्वपूर्ण योगदान है विद्यार्थियों को किसी एक क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञ हासिल करनी चाहिए। सोशल साइंस के माध्यम से आप बहुत बड़े क्षेत्र को अपना संदेश दे सकते हैं। इससे आपकी अर्निंग भी हो सकती है।

समापन सत्र के अध्यक्षता कर रहे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर क सुरेश ने कहा कि महाभारत में संजय ने पहले लाइव प्रसारण किया था। कुरुक्षेत्र में हो रहे यथार्थ को उन्होंने महाराज धृतराष्ट्र को प्रस्तुत किया। आधुनिक पत्रकारिता में युद्ध की कवरेज करना सबसे कठिन काम है। नारद जयंती को हम मानते हैं लेकिन उसको हमने कितना आत्मसात किया है यह सोचने वाला विषय है। उन्होंने कहा कि समाज को प्रेरित करने का काम भी मीडिया को दिया गया है। तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार स्कूल के निदेशक प्रोफेसर प्रशांत कुमार ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया कार्यक्रम का संचालन शोधार्थी आदित्य देव त्यागी ने किया।

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