Meerut News: प्रांतीय मेला नौचंदी का विलंब से हुआ आयोजन, मेले की प्रासंगिकता पर लगा बड़ा प्रश्न चिन्ह

Meerut News: होली के बाद एक रविवार छोड़कर दूसरे रविवार को मेले का पारंपरिक उद्घाटन होता है। मेला स्थल पर जहां चंडी देवी मंदिर में घंटों का नाद होता है तो वहीं बाले मियां की मजार पर कव्वालियों की गूंज होती है।

Report :  Sushil Kumar
Update:2024-06-29 16:38 IST

प्रांतीय मेला नौचंदी का विलंब से हुआ आयोजन, मेले की प्रासंगिकता पर लगा बड़ा प्रश्न चिन्ह: Photo- Newstrack

Meerut News: फाल्गुन पूर्णिमा के उपरांत एक रविवार को छोड़कर दूसरे रविवार से प्रारम्भ होने वाला उत्तर भारत का ऐतिहासिक नौचंदी मेले का मेरठ प्रशासन द्वारा 27 जून से विधिवत शुभारंभ तो कर दिया गया है। लेकिन, जिस तरह मेले बेहद विलंब से शुरु हुआ है उससे मेले के परम्परागत स्वरूप एवं औचित्य पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा है।

यह वही मेला है, जिसका न केवल ऐतिहासिक बल्कि पौराणिक महत्व भी दिखता है। कौमी एकता की जिंदा मिसाल इस मेले में बड़ी संख्या में हिन्दू-मुस्लिम और अन्य धर्मो के लोग मां चंडी मंदिर और बाले मियां की मजार पर होने वाले कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं। होली के बाद एक रविवार छोड़कर दूसरे रविवार को मेले का पारंपरिक उद्घाटन होता है। मेला स्थल पर जहां चंडी देवी मंदिर में घंटों का नाद होता है तो वहीं बाले मियां की मजार पर कव्वालियों की गूंज होती है।

मेले में गंगा जमुनी संस्कृति

शहर के वरिष्ठ लेखक, पत्रकार डॉ. सुधाकर आशावादी कहते हैं कि 2024 के अत्यधिक विलम्ब से प्रारम्भ होने के कारण मेले के परम्परागत स्वरूप एवं औचित्य पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक हैं। फाल्गुन पूर्णिमा के उपरांत एक रविवार को छोड़कर दूसरे रविवार से प्रारम्भ होने वाले मेले का महत्व चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नवरात्र से जुड़ा है। गंगा जमुनी संस्कृति के पर्याय इस मेले में चंडी देवी का मंदिर और बाले मियाँ की मजार आमने सामने होने के कारण यह मेला ऐतिहासिक रहा है।

देर से मेले के आयोजन पर सवाल हो रहे खड़े

मार्च और अप्रैल माह में अनुकूल मौसम के चलते देश की समृद्ध कला एवं संस्कृति से जुड़े आयोजन तथा देश के विशिष्ट स्थलों के प्रमुख उत्पाद इस मेले की शान रहे हैं, किन्तु मेले के लिए निर्धारित सटीक समय को नकारते हुए 27 जून को भीषण गर्मी और मानसून के आगमन पर इस मेले का आयोजन होना मेले के औचित्य पर सवाल खड़े कर रहा है।

डॉ. सुधाकर आशावादी का मानना है कि प्रांतीय मेले का स्वरूप पाकर भी समय से मेले का आयोजन न होना इस मेले के धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व की अनदेखी है तथा मेले की प्रासंगिकता पर बड़ा प्रश्न चिन्ह है।

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