UP Nikay Chunav 2023: हालत यही रहे तो समाजवादी पार्टी खेंमे में मच सकती है भगदड़
Meerut News: राजनीतिक हलकों में कहा जाने लगा है कि जैसे अजित सिंह द्वारा अपने पिता चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत संभालने में नाकामयाब रहने के कारण उनकी पार्टी का दायरा सिमटता रहा उसी राह पर अखिलेश यादव हैं।
UP Nikay Chunav 2023: समाजवादी पार्टी हलके में सन्नाटा है। नगर निगम मेयर चुनाव में जीतना तो दूर की बात है पार्टी मुख्य मुकाबले तक में नहीं आ सकी। मुस्लिम वोट जिसको पार्टी नेता अपना मानते नहीं थक रहे थे। वो वोट पांच तरफ बंट गया। औवेसी की पार्टी का एक नौजवान अनस जिसका चुनाव परिणाम से पहले नाम तक नहीं लिया जा रहा था उसने सपा के गढ़ में सेंध लगा दी। नतीजन,समाजवादी पार्टी तीसरे स्थान पर और बसपा चौथे स्थान पर खिसक गई। मेरठ और प्रदेश के दूसरे क्षेत्रों में भी ऐसा ही कुछ दिखा है। उधर, स्वार विधानसभा सीट को भी सपा बरकरार नहीं रख सकी। जाहिर है कि ताजा चुनाव परिणामों को राज्य में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा सकता है। अगर हालत यही रहे तो 2024 से पहले पार्टी में भगदड़ मच सकती है। जाहिर सी बात है कि डूबते जहाज में सवारी करना भला कौन पसंद करेगा।
राजनीतिक हलकों में कहा जाने लगा है कि जैसे अजित सिंह द्वारा अपने पिता चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत संभालने में नाकामयाब रहने के कारण उनकी पार्टी का दायरा सिमटता रहा उसी राह पर अखिलेश यादव हैं। इसका पता इसी बात से लगता है कि अखिलेश यादव के हाथ में सपा की बागडोर आने के बाद से सपा के कमजोर होने की शुरुआत हुई है। पार्टी का 2017 के विधानसभा चुनावों में प्रदर्शन खराब रहा। पार्टी मात्र 47 सीटों पर सिमट कर रह गई। यह हाल तो तब था जब कि सपा अकेले नहीं बल्कि कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ी थी। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनावों में अखिलेश ने कांग्रेस से किनारा कर बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबन्धन किया। चुनाव में सपा को तो कोई फायदा नहीं हुआ अलबत्ता बसपा 10 लोकसभा झटकने में कामयाब हो गई। चुनाव के तुरंत बाद गठबंधन टूट गया।
यही नहीं उपचुनावों में भाजपा ने सपा की आजमगढ़ और रामपुर जैसी सीटें भी छीन ली। 2022 विधानसभा चुनाव से पहले सपा ने राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) सहित छोटे दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा। लेकिन समाजवादी पार्टी 111 सीटें ही जीत सकीं। ताजा निकाय चुनावों से पहले, अखिलेश ने पार्टी के मजबूती देने के लिए अपने अलग हो चुके चाचा शिवपाल यादव के साथ अपने संबंध सुधारे, लेकिन ताजा चुनाव परिणाम इस बात की साफ चुगली कर रहे हैं कि नसे भी पार्टी के अपेक्षित फायदा नहीं हुआ है। ऐसे में अब पार्टी के अंदर से ही दबे शब्दों में अखिलेश यादव की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगे हैं। इन सवालों का जवाब जल्दी ही अखिलेश ने नहीं दिया तो उनकी मुश्किलें बढ़नी तय है।