Meerut News: 9 मई के वो 36 घंटे जब किया गया था सैनिकों को अपमानित
Meerut News:1957 की क्रांति में 9 मई के वो 36 घंटे कभी नहीं भुलाए जा सकते। सैनिकों की बगावत के बाद बहादुर शाह जफर को हिंदुस्तान का बादशाह घोषित कर पहली बार हिंदुस्तान की आजादी का आगाज़ हुआ।
Meerut News: भारत के इतिहास में अंग्रेजों के आगमन और उनसे मुक्ति की प्रयासों को समझने के लिए 1857 की क्रांति को समझना बहुत जरूरी है। यह क्रांति कैसे पनपी और कैसे अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय एकजुट होते चले गए और उसके अंग्रेजी राज पर आगे क्या असर हुआ, यह सारी कड़ियां आपस में जुड़ी हुई हैं।
कभी नहीं भुलाए जा सकते वो 36 घंटे
1957 की क्रांति में 9 मई के वो 36 घंटे कभी नहीं भुलाए जा सकते। सैनिकों की बगावत के बाद बहादुर शाह जफर को हिंदुस्तान का बादशाह घोषित कर पहली बार हिंदुस्तान की आजादी का आगाज़ हुआ। 9 मई को परेड ग्राउंड में जब अश्वारोही सेना के 85 सैनिकों का कोर्ट मार्शल कर उन्हें अपमानित किया गया। तब तीसरी अश्व सेना के अलावा 20वीं पैदल सेना व 11वीं पैदल सेना के सिपाही भी मौजूद थे। 10 मई की शाम को इन सैनिकों ने विक्टोरिया पार्क जेल में बंद 85 सैनिकों को जेल तोड़ कर मुक्त करा लिया था।
दरअसल, अंग्रेजों ने 26 फरवरी 1857 को बंगाल नेटिव इंफेंट्री रेजिमेंट में नई तरह की कारतूस की शुरुआत की थी जो की क पेपर से लिपटी होती थी जिसमें गाय और सुअर की चर्बी होती थी। इस कारतूस को मुंह से काट कर खोलना होता था। लेकिन इसने कंपनी में भारतीय मुसलमान और हिंदू दोनों सिपाहियों की धार्मिक भावनाओं को आहत कर दिया और उन्होंने इस तरह के कारतूस के इस्तेमाल करने पर ऐतराज जाहिर किया।
29 मार्च को कलकत्ता के पास बैरकपुर परेड ग्राउंड में पांडे ने विद्रोह के स्वर में कारतूस का इस्तेमाल करने से साफ इनकार कर दिया और इस विद्रोह के कारण उन्हें फांसी की सजा दे दी गई। और 9 मई को परेड ग्राउंड पर मेरठ की तीनों रेजिमेंट के सामने कारतूस लेने से इनकार करने वाले सैनिकों का कोर्ट मार्शल कर जेल में बंद कर दिया। 1857 में 10 मई को ही मेरठ की छावनी में 85 जवानों ने मिल कर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था और इसे क्रांति का पहला कदम और आदाजी के लिए फूटी पहली चिंगारी माना जाता है।