इस रहस्यमयी किले में रखे हैं करोड़ों का हीरे जेवरात, जहरीले सांप करते हैं रखवाली

मिर्जापुर जिले का चुनार का किला बरसो पुराना एवं रहस्यमयी के साथ तिलिस्मी है। देवकी नंदन खत्री के सुप्रसिद्ध उपन्यास चंद्रकांता की वजह से इसे चुनारगढ़ के किले के नाम से भी जाना जाने लगा।  चुनार के किले में खजाना है ऐसा यहां के लोग बताते है।

Update:2020-01-02 18:30 IST

बृजेन्द्र दुबे

मिर्जापुर: मिर्जापुर जिले का चुनार का किला बरसो पुराना एवं रहस्यमयी के साथ तिलिस्मी है। देवकी नंदन खत्री के सुप्रसिद्ध उपन्यास चंद्रकांता की वजह से इसे चुनारगढ़ के किले के नाम से भी जाना जाने लगा। चुनार के किले में खजाना है ऐसा यहां के लोग बताते है।

लेकिन इसे नकारा भी नहीं जा सकता है। क्योंकि यहाँ पर बहुत से राजाओं ने राज्य किया है। यहां तक की अंग्रेजों का भी अधिपत्य कुछ समय के लिए रहा है। इसलिए इस चुनारगढ़ के किले में खजाना होना कोई विचित्र बात नहीं है। वैसे इस किले में सोनवा मण्डप, सूर्य धूपघड़ी और विशाल कुंआ मौजूद है। आदि-विक्रमादित्य का बनवाया हुआ भतृहरि मंदिर है जिसमें उनकी समाधि भी है।

चुनार का किला किसने बनवाया था

वाराणसी के राजा सहदेव ने गंगा नदी के दूसरे मुहाने पर शत्रुओं से अपने राज्य एवं प्रजा की रक्षा के लिए 1029 ईसवी में बनवाया था। चुनार किला का निर्माण 11 वी शताब्दी में हुआ था।

इसके बाद अन्य राजाओ जैसे उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने कुछ निर्माण कार्य करवाया। उसके बाद किले पर 1141 से 1191 ईसवी तक पृथ्वीराज चौहान ने निर्माण कार्य लगभग पूरा करवाया। उसके बाद शेरखान ने भी 1531, शेरशाह सूरी ने 1538 और उसके बाद अकबर ने 1575 में भी कुछ कुछ निर्माण कार्य करवाया, ऐसा प्रमाण मिलता है।

कौन था राजा विक्रमाजीत

हेमू का जन्म मेवात के रिवाडी में पूरणदास ब्राह्मण के घर हुआ।अपने बुद्धिमता और गुणों तथा कार्यकुशलता के कारण यह सूर सम्राट् आदिल शाह के दरबार का प्रधानमंत्री बन गया था। यह राज्य कार्यो का संचालन बड़े योग्यता पूर्वक करता था।

आदिल शाह स्वयं अपने आप मे अयोग्य था जिस कारण वह अपने सभी कार्यों का भार हेमू पर डाले रहता था।जिस समय हुमायूँ की मृत्यु हुई उस समय आदिल शाह मीरजापुर जिले में स्थित चुनार में रह रहा था।

हुमायूँ की मृत्यु का समाचार सुनकर हेमू अपने स्वामी की ओर से युद्ध करने के लिए दिल्ली की ओर चल पड़ा। वह ग्वालियर होता हुआ आगे बढ़ा और उसने आगरा तथा दिल्ली को जीत कर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। तरदीबेग खाँ दिल्ली की सुरक्षा के लिए नियुक्त किया गया था। हेमू ने बेग को हरा दिया और वह दिल्ली छोड़कर भाग गया।

हेमू बहुत धनी हो गया और सैनिकों की संख्या भी ज्यादा हो गयी इस विजय से हेमू के पास काफी धन करीब 1500 हाथीयों की सेना तथा एक विशाल सेना एकत्र हो गई थी।हेमू ने अफगान सेना की कुछ टुकड़ियों को थोड़ा धन देकर अपनी ओर कर लिया।

उसके बाद उसने प्राचीन काल के अनेक प्रसिद्ध हिंदू राजाओं की उपाधि धारण की और अंत में सर्वोच्च 'राजा विक्रमादित्य' जिसे विक्रमाजीत भी कह सकते है ।इसकी उपाधि प्राप्त किया।

इसके बाद वह अकबर तथा बैरम खाँ से लड़ने के लिए पानीपत के ऐतिहासिक युद्धक्षेत्र में जा डटा। 5 नवम्बर 1556 को युद्ध प्रारंभ हुआ। इतिहास में यह युद्ध पानीपत के दूसरे युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है।

हेमू की ऐसी हुई थी मौत

हेमू की सेना की संख्या में अधिक थी तथा उसका तोपखाना भी अच्छा था किंतु एक तीर उसकी आँख में लग जाने से वह बेहोश हो गया। इस पर उसकी सेना तितर-बितर हो गई। हेमू को पकड़कर अकबर के सम्मुख लाया गया और बैरम खाँ के आदेश से मार डाला गया।

हेमचंद्र विक्रमादित्य फांउडेशन के मुताबिक शहर के कतोपुर स्थित साधारण पूरणदास ब्राह्मण(भार्गव वंश/भृगु) के परिवार में पैदा हुए अंतिम हिंदू सम्राट होने का गौरव प्राप्त करने वाले राजा हेमचंद विक्रमादित्य 7 अक्टूबर 1556 को मुगलों को हराकर दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुए थे।

हेमू को लेकर लगातार शोध कर रही हेमचंद्र विक्रमादित्य फांउडेशन के मुताबिक भारतीय मध्यकालीन इतिहास में पृथ्वीराज चौहान की सन् 1192 में हार के पश्चात भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीयता को व्यापक आघात लगा बल्कि स्थानीय लोगों में हमलावरों का मुकाबला करने की इच्छा शक्ति भी कमजोर हो गई थी। 16 वीं सदी के प्रांरभ में बाबर के हमलों से त्रस्त अपने मंदिरों व सांस्कृतिक स्तंभों को ध्वस्त होते देख जनता बैचेन व मजबूर हालात में थी।

हर पत्थर पर किसी न किसी तरह का चिन्ह या संकेत है

तिलिस्म की एक अलग दुनिया होती है। चुनारगढ़ मीरजापुर का सबसे बड़ा तिलिस्मि और रहस्यमयी किला है इसका प्रमाण इसकी बनावट है इस किले को ध्यान से देखने पर हीं इस किले के तिलिस्म को समझा जा सकता है।

बलुआ पत्थर से निर्मित चुनारगढ़ के इस किले के हर पत्थर पर किसी न किसी तरह का चिन्ह या संकेत है एक अजीब सी भाषा लिखी हुयी है जिसे आज इस आधुनिक युग में पढ़ना या समझना मुश्किल है। इसलिए कहा गया है जिसका जर्रा जर्रा तिलिस्मि है उसका नाम चुनारगढ़ है।

|विशाल गहरी और रहस्मयी सुरंगों का मुहाना है

चुनारगढ़ का यह किला प्राचीन गहरी और रहस्मयी सुरंगों से लैस पत्थर के इस किले में कई विशाल गहरी और रहस्मयी सुरंगों का मुहाना है जिसकी सीमाओं का कोई पता नहीं है।

चुनारगढ़ किले में सुरंगों का एक जाल सा बिछा है।चुनार नगर के निचे कई जगह इसके प्रमाण आज भी मौजूद है एवं समय समय पर इसके संकेत मिलते है। इसके अलावा इस किले में कई गहरे तहखाने है जो कि गुप्तरुप रास्तों से एवं एक दुसरे से जुड़े है।

सांपों का बसेरा भी है चुनारगढ़ का किला

बहुत कम लोगों को पता होगा कि इस किले में पुराने भयंकर सांपों का बसेरा है । रहस्यमयी और तिलिस्मी किले में सांपों कि मौजूदगी कोई आश्चर्य कि बात नहीं है।दूर से देखने पर यह किला दिमाग में एक अजीब सा कौतूहल पैदा करता है। हर आदमी इस किले के बारे में जानने के लिए बेचैन हो उठता है।इस किले में निचे से बन्द तहखानों में क्या है यही इसका रहस्य भी है ।

एक बहुत गहरी बाउली जो किले के ऊपर है। चुनारगढ़ किले के ऊपर यानी छत पर एक बहुत गहरी बाउली बनी है। जिसमें पानी के अन्दर तक सिढियां बनी हैं एवं इसके दिवारों पर कई तरह के चिन्ह बने है जो प्राचीन लिपि (भाषा) कि तरफ संकेत करता है जो इस बाउली को और भी रहस्यमयी बनाता है।चुनारगढ़ किला एक तिलिस्मि आश्चर्य का भी अद्भुत नजारा है।

सोनवा मंडप का रहस्य

किले में ऊंचाई पर 52 खंभों पर बना हुआ सोनवा मंडप है। जिसके निचे रहस्यमयी और तिलिस्मी तहखाना है। जिसमें हर वक्त अंधेरा रहता है लोग इसे काल कोठरी समझते है।

लेकिन यह केवल एक भ्रम है तहखाने में कई बन्द दरवाजे है इन दरवाजों से किले के भीतर जाने का रास्ता है किले के भीतर बहुत सारे गुप्त स्थान और रहस्यमयी कोठरीयां है |इसलिए तिलिस्मि किले का सारा रहस्य बन्द दरवाजों कोठरीयों रहस्यमयी तहखानों में कैद है।

हर किसी के मन में यही सवाल है आखिर चुनारगढ़ किले में इतना गहरा तहखाना इतनी गहरी सुरंगे क्यों और किस कारण से बनायी गयी हैं।

किले का एक महत्वपूर्ण नक्शा भी है

चुनार के लोगों ने बताया कि सबसे बड़ा रहस्य खजाने को लेकर है। एक बहुत बड़ा सत्य है की खजाना इसी किले में कहीं सुरक्षित है। इस किले का एक महत्वपूर्ण नक्शा भी है जो किसी के यहाँ कैद सुरक्षित है।

नक्शे को लेकर कई प्रभालशाली राजनैतिक लोगों के बिच आपसी तनातनी भी हुयी जो कि इस किले कि दुर्दशा का एक बहुत बड़ा कारण है। ना जाने कितने लोगों ने लोभ और लालच में आकर अपने जान से हाथ धो बैठे ।

गुप्त दरवाजों सुरंगों मुहानों को बन्द किया गया

आजादी के बाद इसके कई खतरनाक गुप्त दरवाजों सुरंगों मुहानो को बन्द कराया गया । ऐसे बहुत सारे आश्चर्य यहां इस किले में कैद है कुछ का तो पता है कुछ का तो एकदम राज छिपा है । इसके बहुत सारे रहस्यों को छुपा दिया गया है। इस किले का सही इतिहास किसी को मालूम नहीं है ।

किले पर पीएसी का पचास वर्षों से कब्जा

भारत के आजादी के बाद चुनारगढ़ किले के वास्तविक स्वरूप को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है। इसका सबसे बड़ा कारण है किले पर पीएसी का कब्जा लगभग 50 वर्षों से इस किले पर है।हर सरकार इस किले के प्रति उदासीनता दिखाई है। एक ऐसा किला जिसने कई युग देखे जो भारत के गौरवशाली इतिहास का गवाह है वह किला वर्तमान समय में अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है।

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