Mirzapur News: पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा, मन की सारी कुण्ठा जीवन-कलह और द्वेष भाव होंगे समाप्त

Mirzapur News: नवरात्र की पंचमी तिथि को साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए जिससे कि ध्यान वृत्ति एकाग्र हो सके। यह शक्ति परम शांति व सुख का अनुभव कराती है।

Report :  Brijendra Dubey
Published By :  Monika
Update:2022-04-06 09:21 IST

Mirzapur News: सिंहासानगता नितयं पद्माश्रितकरद्वया।

                           शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।

अर्थात: मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप का नाम स्कंदमाता है। नवरात्र की पंचमी तिथि को स्कंदमाता की पूजा की जाती है। इनकी चार भुजाएं हैं। दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा में भगवान स्कंद गोद में हैं। दाहिने तरफ की नीची वाली भुजा में कमलपुष्प है। बाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा तथा नीचे वाली भुजा में भी कमलपुष्प है। स्कंदमाता भक्तों को सुख-शांति प्रदान करने वाली है।

देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जानते हैं। नवरात्र की पंचमी तिथि को साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए जिससे कि ध्यान वृत्ति एकाग्र हो सके। यह शक्ति परम शांति व सुख का अनुभव कराती है। मां स्कंदमाता की उपासना से मन की सारी कुण्ठा जीवन-कलह और द्वेष भाव समाप्त हो जाता है। मृत्यु लोक में ही स्वर्ग की भांति परम शांति एवं सुख का अनुभव प्राप्त होता है। साधना के पूर्ण होने पर मोक्ष का मार्ग स्वत: ही खुल जाता है।

माँ विंध्यवासिनी का पांचवे दिन "स्कंदमाता" के रूप में पूजन व अर्चन 

आदिकाल से आस्था का केंद्र रहे विन्ध्याचल में विन्ध्य पर्वत व पतित पावनी माँ भागीरथी के संगम तट पर श्रीयंत्र पर विराजमान माँ विंध्यवासिनी का पांचवे दिन "स्कंदमाता" के रूप में पूजन व अर्चन किया जाता है ।भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। यह कमल के आसन पर विराजमान हैं, इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है, इनका वाहन भी सिंह है । इन्हें कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री कहा जाता है । यह दोनों हाथों में कमलदल लिए हुए और एक हाथ से अपनी गोद में ब्रह्मस्वरूप सनतकुमार को थामे हुए हैं। स्कंद माता की गोद में उन्हीं का सूक्ष्म रूप छह सिर वाली देवी का है। नवरात्र की पंचमी तिथि को साधक का मन विशुद्ध चक्र में होता है जो माँ की कृपा से जागृत हो जाता है ।

कोने - कोने से दर्शन करने आये भक्त

सिद्धपीठ में देश के कोने - कोने से आने वाले भक्त माँ का दर्शन पाने के लिए आस्था के साथ माँ का जयकारा लगाते हुए लम्बी लम्बी कतारों में लगे रहते हैं । भक्तो की आस्था से प्रसन्न होकर माँ उनकी झोली भर देती है, विंध्य कॉरिडोर के निर्माण से मां के धाम में पहुंचने वाले भक्त बहुत उत्साहित हैं ।

जगत का पालन करने वाली आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी की नवरात्र में नौ दिन में अलग - अलग रूपों की पूजा कर भक्त सभी कष्टों से छुटकारा पाते हैं । माता के किसी भी रूप का दर्शन करने मात्र से प्राणी के शरीर में नयी उर्जा, नया उत्साह व सदविचार का संचार होता है ।

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