पहले विश करने आती थी घर, मगर लॉकडाउन ने बढ़ाई मां-बेटी के बीच दूरी

जब कभी बेटियां रोया करती थी तो उन्हें उनकी माताएं उन्हें चुप कराए जाने के लिए सभी जतन कर लेती थी। बताते चलें कि 10 मई को मदर्स डे घोषित है मगर इस दौरान लॉक डाउन चल रहा है और माताएं अपनी पुत्रियों से दूर हैं।

Update:2020-05-10 14:13 IST

औरैया:जब कभी बेटियां रोया करती थी तो उन्हें उनकी माताएं उन्हें चुप कराए जाने के लिए सभी जतन कर लेती थी। बताते चलें कि 10 मई को मदर्स डे घोषित है मगर इस दौरान लॉक डाउन चल रहा है और माताएं अपनी पुत्रियों से दूर हैं। यह जब सोच लेती हैं तो एकाएक उनकी आंखें नम हो जाती हैं और अपनी पुत्री को सिर्फ फोन या वीडियो कॉल करके ही उनकी सुध ले रही हैं।

मदर्स डे पर अपनी बेटियों की याद करती माएं थक नही रहीं है। जहां पर बेटियां हमेशा मां को आज के दिन गिफ्ट दिया करतीं थी लेकिन लॉक डाउन की बजह से बेटियां दूरदराज क्षेत्रों में फसीं हुई लेकिन वहाँ से मेसेज और फोन के द्वारा बिस किया।

जनपद औरैया के तहसील बिधूना निवासी अरुणा सक्सेना ने बताया कि मदर्स डे पर आज जैसे ही उनकी पुत्री द्वारा उन्हें फोन पर विश किया गया तो उनकी आंखें नम हो गई अपनी बेटियों की याद आते ही रो पड़ी।

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जी हां औरैया जिले के बिधूना कस्वे में अरुणा सक्सेना ने कहा कि उन्हें अपनी तीनों बेटियों की बहुत याद आ रही। बताया कि हमारे पति की सरकारी जॉब नही थी कोई अच्छी आमदनी भी नही थी उसके बाद मैंने अपनी बेटियों को अहसास नहीं होने दिया और बेटियों ने भी अपनी कोई डिमाण्ड नही की।

बड़ी मेहनत से बेटियों को पढ़ाया। हमारी बच्चीयों ने हमेशा मेरा हाथ बटाया। आज उनकी बहुत याद आ रही। उन्होंने भगवान से प्रार्थना करते हुए कहा कि जहां भी उनकी बेटियां रहें सुरक्षित रहें और खुश रहें। कहां की हमारी बेटी हमारा अभिमान है। उस संकट की घड़ी में मेरी बेटियों ने मेरा साथ दिया जब पति की जॉब नही थी तो हमने प्राइवेट जॉब करके बेटियों की लिखाई पढ़ाई कराई। आज बेटियां दिल्ली में है।

हमें बहुत याद आ रही है। हमेशा मदर्स डे पर सुबह उठ कर गिफ्ट दिया करती थी लेकिन आज लॉक डाउन की बजह से केवल मेसेज और फोन आया। जिससे हम ने भी विस् किया। आज जब किचिन में भी गई तो बेटियों की याद करते हुए उनकी फ़ोटो साथ लगाए रखी।

तीनों बेटियों की याद करती हुई उनकी तश्वीरों को एक तक निहारती रहती। जहां पर भी याद आती वही फोटो लेकर यादों में डूब जाती हैं।

प्रवेश चतुर्वेदी

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