जन्मदिन स्पेशलः चरखा दांव का अपराजेय योद्धा मुलायम

समाजवाद के प्रतीक पुरुष मुलायम सिंह यादव ने समाजवाद को नई और लंबी उम्र दी। उन्होंने जब समाजवादी पार्टी का गठन किया तब समाजवाद किताबी सिद्धांत के रूप में शेष रह गया था।

Update:2018-11-22 13:11 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

समाजवाद के प्रतीक पुरुष मुलायम सिंह यादव ने समाजवाद को नई और लंबी उम्र दी। उन्होंने जब समाजवादी पार्टी का गठन किया तब समाजवाद किताबी सिद्धांत के रूप में शेष रह गया था। लेकिन मुलायम ने समाजवादी पार्टी के जरिये राजनीतिक प्रयोग करके उसे पूरी तरह जमीन पर उतारा। मुलायम ने राम मनोहर लोहिया को उसी तरह जिया जिस तरह कांशीराम ने भीमराव अम्बेडकर को जिया।

समाजवाद के सैद्धान्तिक पक्ष की राजनीतिक परिणति अपनी सरकार के कार्यकाल के दौरान करके दिखायी। सिंचाई, दवाई, पढ़ाई को मुफ्त किया। बेरोजगारी भत्ता देकर डा. लोहिया के काम के अधिकार के सिद्धांत को जमीन पर उतारा। मुलायम सिंह यादव ने एक छोटे से गरीब परिवार में जन्म लेकर न केवल राजनीतिक उपलब्धि हासिल की बल्कि समाजवाद के परचम को भी लहरा दिया।

उन्होंने लोहिया को जिस तरह से स्थापित किया उसी तरह से समाजवाद के जो भी पुरोधा और प्रतीक पुरुष रहे उन्हें अपनी समाजवादी लड़ाई से जोड़ा जिसमें जयप्रकाश, कर्पूरी ठाकुर चंद्रशेखर, आचार्य नरेन्द्र देव और जनेश्वर मिश्र आते हैं। मुलायम धर्मनिरपेक्षता की राजनीति के प्रतीक हैं। उन्होंने इस बात को समय समय पर स्थापित भी किया है।

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राजनीति में अस्पृश्यता के पक्षधर वह कभी नहीं रहे। बसपा को छोड़कर वह प्रतिशोध की राजनीति से अलग रहे। बेनी प्रसाद वर्मा, अमर सिंह, रमाकांत, उमाकांत, बालेश्वर यादव को पार्टी में मुलायम सिंह के विरोध के बाद दोबारा तिबारा जगह मिली। धुर विरोधी रहे मुलायम सिंह यादव के रिश्तों की यह झलक 2014 के लोकसभा चुनाव में भी दिखी जब प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी उन्हें नेताजी कहते रहे और मुलायम सिंह यादव उन्हें मोदीजी।

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यह उनके विरोधियों को क्षमा करने का ही नतीजा है कि जिस लालू प्रसाद यादव ने उन्हें पीएम की कुर्सी से दूर कर दिया उसके यहां मुलायम ने रोटी बेटी का रिश्ता बनाया। नरेंद्र मोदी मुलायम के यहां प्रधानमंत्री रहते दो विवाह कार्यक्रमों में शामिल हुए। कहा तो यह भी जाता है कि मुलायम अपने विरोधी नेताओं का काम ज्यादा तेजी से करते हैं।

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वह ओबीसी की राजनीति का चेहरा रहे पर फारवर्ड को नाराज करके नहीं। उन्होंने प्रदेश में मुस्लिम यादव यानी माई समीकरण गढ़ा। उन्होंने अजित सिंह से चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक उत्तराधिकार छीन लिया। विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर ने जब उन्हें आंख दिखानी चाही तब वह डटकर खड़े रहे। उन्होंने उप्र में अपनी सरकार बनाने के लिए राजीव गांधी से मिलकर सहमति ले ली जिस के चलते उस समय सदन में कांग्रेस के नेता एनडी तिवारी ने उन्हें समर्थन देने के लिए लक्ष्मण रेखा पार करने का पाठ पढ़ा।

कांशीराम दलित और ओबीसी को मिलाकर केंद्र की राजनीति में खड़ा करना चाहते थे। इसमें पहले से तय था कि कांशीराम केंद्र की राजनीति करेंगे और मुलायम सिंह यादव प्रदेश की राजनीति। इसी रणनीति पर कांशीराम 2010 में प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देखा। कांशीराम को पहली बार संसद में मुलायम सिंह यादव ने अपने गढ़ इटावा से भेजा था।

पर मायावती के चलते दलित ओबीसी गठबंधन बिखर गया। मुलायम सिंह यादव समाज के परिवर्तन की प्रक्रिया को पढ़ पाने में काफी सफल रहे। तभी उन्होंने वैश्वीकरण के दौर में अपनी जाति की लड़ाई को पेट से जोड़ा और शायद ही उनकी जाति का ऐसा कोई शख्स हो जिसकी हैसियत में मुलायम सिंह यादव के दौर में इजाफा न हुआ हो। हालांकि मायावती ने अपनी लड़ाई को नाक से जोड़ा तभी तो मुलायम के बराबर कार्यकाल वाले दौर में भी दलितों को कोई लाभ नहीं हुआ।

मुलायम सिंह यादव और मायावती दोनो पिंड थे जिन्होंने बड़े पिंड से ताकत ली। साइंस का यह नियम है कि छोटा पिंड यदि बड़े पिंड के पास जाता है तो बड़ा पिंड छोटे पिंड को ऊर्जा देता है। मायावती ने भाजपा और कांग्रेस से ऊर्जा ली तो मुलायम ने भी कांग्रेस से राजनीतिक ऊर्जा का अवशोषण किया। 2003 में मुलायम सिंह यादव की सरकार बिना भाजपा के नहीं बन सकती थी इसलिए यह पोशीदा सच है कि भाजपा ने अपरोक्ष ही सही मुलायम सिंह यादव को राजनीतिक ऊर्जा दी।

मुलायम सिंह पहले पहलवानी करते थे और उनकी गिनती अच्छे पहलवानों में होती थी। मुलायम शायद इकलौते ऐसे नेता हैं जिन्होंने पहलवानी के दांव पेंचों को राजनीति में उतारा और कामयाबी पाई उनका चरखा दांव और धोबी पाट अक्सर चर्चा में रहा है।

और अधिक नहीं मुलायम सिंह यादव का आज यानी 22 नवंबर को 80वां जन्मदिन है। 22 नवंबर 1939 को एक साधारण से परिवार में उनका जन्म हुआ था। वह बीए, बीटी और राजनीति शास्त्र में परास्नातक हैं। कह सकते हैं कि उनका प्रधानमंत्री बनने का सपना अभी भले ही अधूरा हो लेकिन उन्होंने अपने सियासी दांव से सभी को मात दी है।

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