Padma Shri 2023: झांसी के 'रामानुजन' कहे जाने वाले राधाचरण गुप्त को मिला पद्मश्री, IIT में पढ़ाई जाती है इनकी 'गणितानंद'

Padma Shri 2023: उत्तर प्रदेश से जिन 6 लोगों को पद्मश्री अवॉर्ड दिया गया है, उनमें झांसी के 'रामानुजन' कहे जाने वाले प्रोफेसर राधाचरण गुप्त का भी नाम शामिल है।

Written By :  aman
Update: 2023-01-26 08:17 GMT

Pro. Radhacharan Gupta (Social Media)

Padma Shri 2023: उत्तर प्रदेश से जिन विभूतियों को इस वर्ष पद्म पुरस्कारों के लिए चुना गया उनमें एक नाम भारतीय गणित का इतिहास साधने वाले प्रोफेसर राधाचरण गुप्त (Pro. Radhacharan Gupta) का भी है। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जब भारत सरकार ने पद्मश्री सम्मान की घोषणा की उनमें झांसी निवासी प्रो राधाचरण गुप्त भी शामिल थे। राधाचरण गुप्त को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में पद्मश्री पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई है। इन्हें झांसी का 'रामानुजन' भी कहा जाता है।

झांसी के प्रोफेसर राधाचरण गुप्त ने अपना पूरा जीवन भारतीय गणित के इतिहास (History of Indian Mathematics) पर आधारित रिसर्च, लेखन तथा अध्यापन में बिताया है। प्रोफ़ेसर गुप्त अब 88 वर्ष के हो चले हैं। उम्र के इस पड़ाव पर ये सम्मान उनके जीवन भर की मेहनत का नतीजा है। इस उम्र में जब लोग विश्राम की मुद्रा में आ जाते हैं, प्रोफ़ेसर गुप्त आज भी दुनिया की चकाचौंध से दूर पुस्तकों में ही समाए रहते हैं।

कौन हैं प्रो राधाचरण गुप्त?

प्रोफेसर राधाचरण गुप्त (Pro. Radhacharan Gupta) का जन्म साल 1935 में उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक झांसी जिले में हुआ था। प्रो गुप्त ने वर्ष 1971 में रांची विश्वविद्यालय (Ranchi University) से गणित के इतिहास में पीएचडी हासिल की। वर्ष 1991 में उन्हें राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (National Academy of Sciences) का फेलो चुना गया। वर्ष 2009 में राधाचरण गुप्त को गणित के इतिहास के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठित सम्मान केनेथ ओमे (Kenneth Ome Radhacharan Gupta) से सम्मानित किया गया। बता दें, यह सम्मान पाने वाले वाले राधाचरण एक मात्र भारतीय हैं। प्रोफ़ेसर गुप्त ने अब तक 400 से अधिक शोध पत्रों (Research Papers) और 80 किताबों का लेखन किया है। उन्हें जानने वाले बताते हैं भारतीय इतिहास के विभिन्न क्षेत्रों के बारे में भी उनका ज्ञान विशिष्ट है। उनके लेखन और अध्ययन की शैली किसी को भी प्रभावित कर सकती है।

IIT Bombay में पढ़ाते हैं इनके रिसर्च पेपर्स

आईआईटी बॉम्बे (IIT Bombay) ने प्रोफेसर राधाचरण गुप्त के चुनिंदा रिसर्च पेपर्स को पुस्तक की शक्ल में प्रकाशित किया है। इसे 'गणितानंद' का नाम दिया है। वैदिक गणित के इतिहास (History of Vedic Mathematics) पर केंद्रित यह पुस्तक गणित के स्टूडेंट्स और शिक्षकों के बीच काफी लोकप्रिय है। साथ ही, आईआईटी गांधीनगर (IIT Gandhinagar) भी उनकी सभी किताबों और शोधपत्रों को डिजिटल फॉर्मेट में तैयार करने में जुटा है। प्रोफ़ेसर राधाराचरण भारतीय वैदिक गणित के साधक के रूप में ख्यातिप्राप्त हैं। उनका जीवन बेहद सादगीपूर्ण रहा है। लेखन तथा शोध के अलावा उनकी कभी किसी अन्य चीज में दिलचस्पी नहीं रही। यहां तक की शहर में आयोजित कार्यक्रमों से भी वो दूर ही रहते हैं।

इस वर्ष गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जब पद्म पुरस्कारों की घोषणा की गई तो उसमें प्रो राधाचरण गुप्त का नाम उन्हें न जानने वालों के बीच भले ही कौतूहल पैदा किया हो, लेकिन उत्तर प्रदेश सहित देश के विभिन्न IIT's के छात्रों को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। कईयों का तो मानना है कि उन्हें ये सम्मान मिलने में देर तो नहीं हो गई। मगर, कहते हैं न देर आए, दुरुस्त आये।   

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