किसान महापंचायतः भाजपा के लिए खतरे की घंटी है किसान वोटबैंक का नया गठजोड़
Farmer Mahapanchayat: मुजफ्फरनगर में संपन्न हुई किसान महापंचायत ने BJP के मिशन 2022 में खतरे का संकेत दिया है...
Farmer Mahapanchayat: मुजफ्फरनगर में संपन्न हुई किसान महापंचायत ने कई संदेश दिये हैं जो कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए मिशन 2022 वाले राज्यों में खतरे का संकेत भी हैं। अभी तक राज्यों की सीमाओं से निकलकर दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले किसान अपनी लड़ाई लड़ रहे थे। प्रकटतः इस लड़ाई को पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लड़ाई बताया जा रहा था जिसमें कुछ योगदान राजस्थान के किसानों का भी था। पिछले लंबे अरसे से कभी तेज कभी धीमा आंदोलन खिंचता चला आ रहा था। लेकिन इस आंदोलन की खूबी यह थी कि ये उस दिये की तरह जलता रहा जो तूफानों में बुझने के करीब पहुंच कर फिर से जलने लगता है। किसान आंदोलन के इस दिये का ईंधन आंकने में सत्ता पक्ष ने कहीं न कहीं चूक की है। जिस की कीमत आगे आने वाले चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी को चुकानी पड़ सकती है यह है इस महापंचायत का संदेश।
किसान आंदोलन की शुरूआत 2020 में पंजाब से हुई थी
किसानों के आंदोलन की बात करें तो 2020 में सितंबर माह के आसपास इसकी पंजाब से शुरूआत हुई थी। जिसे जाटों का आंदोलन बताया गया था। बाद में आंदोलन में जाटव भी जुड़ने लगे तो आंदोलन को जाट बनाम जाटव बनाने की भी कोशिश की गई। बाद में यह आंदोलन पंजाब और हरियाणा की सीमा लांघ कर जब दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचा तो इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान की भागीदारी दिखनी शुरू हुई। इसी के साथ पश्चिम में उत्तराखंड के किसान भी कुछ सक्रिय हुए। मूलतः तीन नये कृषि कानूनों को पहले किसान समझ ही नहीं पा रहे थे कि इसमें होगा क्या किसान नेताओं ने इसमें मेहनत की और किसानों को अपने ढंग से नफा नुकसान का गणित समझाया और दिल्ली में वार्ता के दौरों के बीच कभी गरम कभी नरम आंदोलन का कारवां बढ़ता गया। इस बीच कुछ लोगों ने इस आंदोलन को नैतिक रूप से हतोत्साहित करने के लिए इसमें खालिस्तान समर्थक अलगाववादी तत्वों के समर्थन की बात भी कही। इसे लेकर सरकारी मशीनरी सक्रिय भी हुईं कार्रवाई भी हुई। लालकिला व दिल्ली हिंसा के बाद लोगों को उम्मीद थी कि किसान आंदोलन अब टूट जाएगा लेकिन किसान आंदोलन चलता रहा। गौरतलब बात यह है कि सरकार के साथ वार्ता में गतिरोध आ जाने के बाद भी आंदोलन चलता रहा। जिसमें मसले के हल की संभावना नगण्य थी।
आंदोलन को समर्थन देने में राष्ट्रीय लोकदल सबसे पहले आगे आया
किसान आंदोलन को लेकर राजनीतिक दलों ने शुरू से एक निश्चित दूरी बनाकर रखी। सभी पार्टियां अपना नफा नुकसान देख रही थीं। इस आंदोलन को समर्थन देने में राष्ट्रीय लोकदल सबसे पहले आगे आया फिर समाजवादी पार्टी ने बेहद सतर्कता के साथ कदम बढ़ाए। कांग्रेस ने भी नफा नुकसान देखने के बाद अंततः खुलकर किसानों का साथ देने से परहेज करते हुए किया लेकिन इस महापंचायत को सफल बनाने के पीछे कांग्रेस के संसाधनों के भरपूर इस्तेमाल की बात कही जा रही है।
किसान वोट बैंक बनने की लड़ाई का एलान कर चुका है
इन सब बातों के अलावा इस महापंचायत से एक बात साफ हो गई है कि किसान अपनी लड़ाई को परवान चढ़ाने के लिए अब सत्ता परिवर्तन की लड़ाई का एलान कर चुके हैं। यही इस महापंचायत का मुख्य संदेश है। जिस किसान को अब तक कभी वोट बैंक नहीं माना गया आज वो किसान वोट बैंक बनने की लड़ाई का एलान कर चुका है। इस एलान से पंजाब, उत्तराखंड और पश्चिम उत्तर प्रदेश सब जगह मतदाताओं के समीकरण बनेंगे और बिगड़ेंगे। जिस मुस्लिम जाट की फूट पर भाजपा इतरा रही थी इस मंच से उसके एक बार फिर एकजुट होने का एलान भी हो चुका है। और यही बदलता समीकरण भाजपा के मिशन 2022 में सबसे बड़ा अवरोध बन सकता है और 2024 में भी झटका दे सकता है।