नई पेंशन योजना में गोलमाल, बड़ी गड़बड़ी की ओर इशारा कर रही कैग की रिपोर्ट
राजकुमार उपाध्याय
लखनऊ : नई पेंशन योजना की कटौती में एकाएक आयी गिरावट इस बात की चुगली करती है कि इस योजना में कोई न कोई गोलमाल है। भारत के नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में इस योजना के तहत कर्मचारियों की सैलरी से कटौती कर इकट्ठा हुई धनराशि के बारे में जो खुलासे किए गए हैं वो कटौती की धनराशि में बड़ी गड़बड़ी की तरफ इशारा कर रहे हैं। हैरतअंगेज तरीके से सिर्फ एक साल के अंदर नवीन पेंशन योजना की कटौती धनराशि में 437 करोड़ रुपए की कमी आई है। गोलमाल का यह कारनामा स्वच्छ भारत मिशन तक पहुंचा है। पंचायतीराज महकमा साल भर में पूरा बजट नहीं खर्च सका पर साल के अंतिम महीने में 27 फीसदी धनराशि खर्च कर डाली। वित्तीय वर्ष के अंतिम दिन यानी 30 मार्च को 3053 करोड़ रुपए खर्च की स्वीकृति के आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि नौकरशाह जनकल्याणकारी कामों को समय से जमीन पर उतारने में पीछे हैं, लेकिन आंकड़ों की बाजीगरी में कापी आगे हैं।
नवीन पेंशन योजना निर्धारित अंशदायी पेंशन योजना है। योजना के प्रावधानों के अनुसार इस पेंशन स्कीम में कर्मचारी के मूल वेतन और महंगाई भत्ते से दस फीसदी की कटौती अंशदान के रूप में होती है। राज्य सरकार भी इतनी ही धनराशि अंशदान के रूप में देती है। इस तरह पूरी धनराशि नेशनल सिक्योरिटीज डिपाजिटरी लिमिटेड (एनएसडीएल) के मार्फत नामित फंड मैनेजर के हवाले कर दी जाती है। कैग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2008-09 से 2016-17 के बीच कर्मचारियों का अंशदान 2830 करोड़ रुपये रहा। सरकार की तरफ से 2247 करोड़ रुपये का अंशदान दिया गया। इस लिहाज से देखें तो सरकार की तरफ से किए गए अंशदान में 583 करोड़ की कमी रही। इतना ही नहीं 2008-09 में जब यह योजना शुरू हुई थी तब कटौती की धनराशि 5.03 करोड़ रुपये थी जो वर्ष 2015-16 में बढ़कर 636.51 करोड़ हो गई थी। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि ठीक एक साल बाद 2016-17 में इस योजना के तहत कटौती की यह धनराशि घटकर 199.24 करोड़ रह गई।
यह भी पढ़ें : बदहाल बेसिक शिक्षा, छ: माह बाद भी नहीं पहुंची किताबें, ऐसे हो रही पढ़ाई
रिपोर्ट के मुताबिक नवीन पेंशन योजना के अन्तर्गत 2005 से 2008 की अवधि में पेंशन अंशदान का विवरण राज्य लेखे में उपलब्ध ही नहीं था। इसकी वजह से यह आंकलन करना संभव नहीं हो सका कि योजना के शुरुआती वर्षों में कर्मचारियों के वेतन से कटौती की जाने वाली पेंशन अंशदान की धनराशि की वास्तव में कटौती की गई थी या नहीं। राज्य सरकार ने उस कटौती के बराबर धनराशि का अंशदान दिया या नहीं और इस तरह एकत्रित हुई पूरी धनराशि एनएसडीएल के हवाले की गई थी या नहीं। साफ है कि 2005 से 2008 की अवधि तक नवीन पेंशन योजना के तहत कटौती के आंकड़े उपलब्ध नहीं थे। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक पेंशन स्कीम में कर्मचारियों और सरकार का अंशदान वर्ष 2008-09 से शुरू किया गया जिसकी कटौती निदेशालय स्तर पर वर्ष 2011-2012 तक हुई। वर्ष 2012-2013 से यह कटौती एनएसडीएल के द्वारा की जा रही है। वर्ष 2008-09 में कटौती की धनराशि 1.23 करोड़, 2009-10 में 78.80 करोड़, 2010-11 में 141.55 करोड़ और 2011-12 में 215.29 करोड़ थी।
इसके अतिरिक्त 2008-09 से 2016-17 की अवधि में सम्पूर्ण अंशदान 5660 करोड़ रुपये में से 5001.71 करोड़ रुपये ही एनएसडीएल के हवाले किया गया। इसमें 545.68 करोड़ अंशदान कम था। इस तरह पेंशन स्कीम के तहत इकट्ठा हो रही करोड़ों की धनराशि के निवेश में सरकार अफसल रही। यह अफसलता सीधे तौर पर कर्मचारियों को मिलने वाले लाभ से जुड़ी है। इन्हीं वजहों से कर्मचारी पेंशन योजना के लाभ से महरूम होते हैं।
अंतिम महीने में 27 फीसदी राशि खर्च की
यूपी में सत्ता परिवर्तन का नौकरशाहों की कार्यशैली पर कोई असर नहीं पड़ा है। उनका काम करने का पुराना ढर्रा अब भी बरकरार है। कैग की रिपोर्ट यह सच बयां कर रही है। साल के अंतिम दिन पंचायतीराज महकमे के 3053 करोड़ खर्च की स्वीकृति के आंकड़े इसकी बानगी है। रिपोर्ट के मुताबिक महकमे को स्वच्छ भारत मिशन और ग्राम पंचायतों को सहायता देने के लिए बजट में 13409.89 करोड़ की व्यवस्था की गई थी। महकमा साल भर में इस बजट का एक बड़ा हिस्सा नहीं खर्च कर सका मगर वित्तीय वर्ष के अंतिम महीने यानि अकेले मार्च में 27 फीसदी धनराशि खर्च की गई। यह धनराशि 3813.33 करोड़ रुपये थी। यह सिलसिला यहीं नहीं रुका। वित्तीय वर्ष के अंतिम महीने मार्च के अंतिम दिन (30 मार्च) स्वच्छ भारत मिशन और ग्राम पंचायतों को सहायता अनुदान सरीखी योजनाओं में कुल 3053.81 करोड़ की स्वीकृति दी गई। साफ है कि अफसर साल भर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और जब साल का अंतिम महीना आया तो कागजों का पेट भरने के लिए खानापूर्ति कर डाली। मजे की बात यह है कि हर वित्तीय वर्ष में जन कल्याणकारी योजनाओं में पैसा खर्चने में कंजूसी का मामला हमेशा चर्चा बटोरता रहा है पर नौकरशाहों की कार्यशैली मीटिंग और निर्देशों की रस्म अदायगी से एक कदम आगे नहीं बढ़ पा रही है।
परियोजनाओं की लागत 17010 करोड़ बढ़ी
सत्ता में आते ही योगी सरकार ने वर्षों से चल रही परियोजनाओं की बढ़ती लागत पर लगाम कसने के संकेत दिए थे पर नौकरशाह सरकार की मंशा को जमीन पर उतारने में असफल हैं। परियोजनाओं की लागत में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2017 तक लोक निर्माण और सिंचाई महकमे की ऐसी ही 55 अधूरी परियोजनाओं की लागत 17010 करोड़ रुपये बढ़ी है। इन महकमों की 611 परियोजनाएं अधूरी हैं। इनमें अकेले लोक निर्माण विभाग की 571 परियोजनाएं शामिल हैं। वहीं सिंचाई महकमे की 40 अधूरी परियोजनाओं की प्रारम्भिक लागत 3773 करोड़ रुपये थी जो अब बढ़कर 16334 करोड़ रुपये हो गई है।