UP में LU समेत 6 कुलपतियों की नियुक्ति में नियमों को दरकिनार करने का आरोप
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में लखनऊ यूनिवर्सिटी समेत छह यूनिवर्सिटीज के कुलपतियों की नियुक्ति को चुनौती दी गई है।
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में लखनऊ यूनिवर्सिटी समेत छह यूनिवर्सिटीज के कुलपतियों की नियुक्ति को चुनौती दी गई है। आरोप है कि जिनको कुलपति के पद पर नियुक्ति किया गया है उन्हें यूजीसी के नियमों के तहत कुलपति बनने का अनुभव तक नहीं था।
पहली ही सुनवाई पर राज्य सरकार की ओर से याचिका का विरोध करते हुए आपत्ति दाखिल की गई। जिस पर कोर्ट ने याची को अग्रिम सुनवाई 21 जुलाई को प्रति उत्तर देने का निर्देश दिया है।
यह आदेश जस्टिस एसएन शुक्ला और जस्टिस वीरेंद्र कुमार (द्वितीय) की खंडपीठ ने प्रोफेसर नर सिंह की ओर से दायर एक याचिका पर दिया।
याचिका में छह कुलपतियों की नियुक्ति यूजीसी के मानकों के अनुरूप न होने का दावा किया गया है। याची की ओर से दलील दी गयी कि लखनऊ यूनिवर्सिटी, बीबीएयू, आगरा यूनिवर्सिटी, सिद्धार्थनगर यूनिवर्सिटी के कुलपति को बतौर प्रोफेसर कोई अनुभव नहीं है। जबकि कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए दस साल का अनुभव बतौर प्रोफेसर होना चाहिए।
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि महात्मा ज्योतिबा फूले यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर अनिल शुक्ला, डॉ. आरएमएल अवध यूनिवर्सिटी, के कुलपति प्रोफेसर मनोज दीक्षित और वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर राजाराम यादव को क्रमशः सात, सात और आठ साल का ही अनुभव बतौर प्रोफेसर है।
यह भी कहा गया है कि कुलपतियों की नियुक्ति के लिए बनाई जाने वाली सर्च कमेटी का कोई सदस्य किसी यूनिवर्सिटी के कार्यकारी समिति का सदस्य नहीं होना चाहिए। जबकि लखनऊ यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. एसपी सिंह स्वयं कार्यकारी समिति के सदस्य थे।
याचिका पर आपत्ति करते हुए राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि उक्त रेग्युलेशंस उत्तर प्रदेश में लागू नहीं हैं। लिहाजा याचिका को खारिज किया जाना चाहिए। इस पर याची की ओर से दलील दी गई कि 3 दिसंबर 2013 को उक्त रेग्युलेशंस राज्य में लागू कर दिए गए थे।