Premanand Maharaj: Ph.D उपाधि लेने से किया इंकार, बोले- ‘यह हमारा उपहास होगा’
Premanand Maharaj: वृंदावन के संत प्रेमानंद महाराज ने छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय की Ph.D उपाधि लेने से इंकार कर दिया। जानिए जवाब में उन्होंने क्या कहा।
Premanand Maharaj: प्रेमानंद महाराज को तो लगभग हर कोई जानता ही होगा। सोशल मीडिया पर आए दिन उनकी वीडियो देखने को मिलती है। जिसमें वो अपने भक्तों को ज्ञान की बातें बताते रहते हैं। प्रेमानंद महाराज वृंदावन के मशहूर संत और राधारानी के भक्त है। प्रेमानंद महाराज ने छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय की तरफ से आये Ph.D की उपाधि लेने के प्रस्ताव को मना कर दिया। उन्होंने इस प्रस्ताव को मना करते हुए कहा कि हम उपाधि मिटाने को साधु बने हैं। भक्त की उपाधि के आगे सारी उपाधियां छोटी हैं।
प्रेमानंद महाराज ने लौटाई Ph.D की उपाधि
छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के 39वें दीक्षांत समारोह से पहले मानद डॉक्टरेट का यह प्रस्ताव लेकर रजिस्ट्रार डॉ. अनिल कुमार यादव वृंदावन के श्री हित राधा केली कुंज आश्रम पहुंचे थे। संत ने इस प्रस्ताव को विनम्रता से अस्वीकार करते हुए कहा-हम उपाधि मिटाने को साधु बने हैं। भक्त की उपाधि के आगे सारी उपाधियां छोटी हैं। प्रेमानंद महाराज ने मानद उपाधि को लेकर शुभकामनाएं दी और कहा कि है इसे नहीं ले सकते। आपको बता दें कि छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय का 39वां दीक्षांत समारोह 28 सितंबर को होना है। इसकी अध्यक्षता राज्यपाल और कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल करेंगी। कार्यक्रम में मेधावियों को पदक, छात्रों को उपाधि के साथ एक विभूति को मानद उपाधि से सम्मानित किया जाना है। जिसके लिए विवि परिसर ने संत प्रेमानंद का नाम प्रस्तावित किया था।
Ph.D उपाधि लेना हमारा उपहास होगा- प्रेमानंद महाराज
प्रेमनद महाराज के भजन मार्ग से एक वीडियो सामने आई है। जिसमें साफ़ दिखाई दे रहा है कि विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार ने संत के सामने यह प्रस्ताव रखा। जिसका जवाब देते हुए महाराज ने कहा, “छोटे बनकर के सबकी सेवा करना हमारी उपाधी है। और रही बात Ph.D की, तो हम लोग मन की Ph.D किए हैं। इसके लिए कोई पढ़ाई नहीं होती। वो हमारी साधना में होती है। बाहरी डिग्री या बाहरी उपाधि हमारा उपहास होगा ना कि सम्मान। हमारी जो अलौकिक उपाधि है, उसमें बाधा है, सिद्धियां और मोक्ष आदि भी है। इसमें हमें जो सुख मिल रहा है, उसके आगे बाकी सब कूड़ा करकट है, हमारी दृष्टि में। हमारी भक्ति ही सबसे बड़ी उपाधि है।”