Gorakhpur News: आरपीएन को 'कमल' स्वामी का बदला या फिर कुछ और, जानें योगी के गढ़ में इसका नफा-नुकसान

Gorakhpur News: कांग्रेस के दिग्गज नेता कुंवर आरपीएन सिंह ने आखिरकार भाजपा का दामन थाम ही लिया। इस युवा को पार्टी में शामिल कर भाजपा स्वामी प्रसाद मौर्या के सपा में शामिल होने से हुए नुकसान के भरपाई का दावा कर रही है।;

Published By :  Deepak Kumar
Update:2022-01-25 16:54 IST

आरपीएन सिंह ने भाजपा का दामन थामा।  

Gorakhpur News: कई दिनों से चल रही अटकलों के बीच कांग्रेस के दिग्गज नेता कुंवर आरपीएन सिंह (Congress leader Kunwar RPN Singh) ने आखिरकार भाजपा (BJP) का दामन थाम ही लिया। विधानसभा की चुनावी बेला में हुई सियासी घटना को पूर्वांचल की सियासत में बड़ा उलटफेर माना जा रहा है। इस युवा को पार्टी में शामिल कर भाजपा स्वामी प्रसाद मौर्या (Swami Prasad Maurya) के सपा (SP) में शामिल होने से हुए नुकसान के भरपाई का दावा कर रही है। हालांकि राजनीति के जानकारों का मानना है कि स्वामी प्रसाद मौर्या (Swami Prasad Maurya) के सपा (SP) में शामिल होने से हुए नुकसान की भरपाई भले ही आरपीएन (Congress leader Kunwar RPN Singh) को अपने पाले में कर भाजपा (BJP) कर ले, लेकिन वोटों और सीटों के लिहाज से नफा-नुकसान का आंकलन अभी मुश्किल प्रश्न है।

25 अप्रैल 1964 को पडरौना के राजपरिवार में जन्में आरपीएन सिंह (Congress leader Kunwar RPN Singh) के भाजपा में शामिल होने को कांग्रेस (Congress) के दिग्गज भी पचा नहीं पा रहे हैं। क्योकि पिछले दिनों कांग्रेस की उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी (Uttar Pradesh in-charge Priyanka Gandhi) की गोरखपुर के चंपा देवी पार्क (Champa Devi Park in Gorakhpur) में रैली हुई थी, तो आरपीएन ने सर्वाधिक सक्रियता दिखाई थी। न सिर्फ अखबारों में फुल पेज का विज्ञापन दिया था, बल्कि सर्वाधिक गाड़ियां कुशीनगर से ही गोरखपुर पहुंची थीं। उनके भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस में उलट फेर की संभावना जताई जा रही है।


कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू (Congress state president Ajay Kumar Lallu) भी आरपीएन सिंह (Congress leader Kunwar RPN Singh) के ही उपज माने जाते रहे हैं। हालांकि उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद रिश्तों में पहले जैसी मिठास नहीं बची थी। हकीकत यह भी है कि बिना आरपीएन (Congress leader Kunwar RPN Singh) की मर्जी के कुशीनगर ही नहीं आसपास के जिलों में भी कांग्रेस जिलाध्यक्ष की तैनाती नहीं होती थी। कुशीनगर के साथ ही महराजगंज और देवरिया में भी उनका सीधा दखल है। महराजगंज के पूर्व सांसद जितेन्द्र सिंह ही नहीं वर्तमान जिलाध्यक्ष शरद कुमार सिंह उर्फ बबलू सिंह भी उनके करीबी हैं।

इत्तेफाक की बात है राजा साहेब यानी आर.पी.एन. सिंह (Congress leader Kunwar RPN Singh) भी उसी दून स्कूल के पूर्व स्टूडेंट हैं, जिसने कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया है। इसके पहले दून स्कूल वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) और जितिन प्रसाद भी कांग्रेस से भाजपा में आये हैं। राजीव गांधी के जमाने में 'दून स्कूल कैबिनेट' काफी ताकतवर और मशहूर हुआ करता था और इस दून स्कूल कैबिनेट को बहुत सेक्युलर, प्रोग्रेसिव और नए भारत का ग्रुप कहा जाता था।


कुशीनगर के वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश द्विवेदी (Kushinagar senior journalist Mithilesh Dwivedi) कहते हैं कि 'आरपीएन (Congress leader Kunwar RPN Singh) के जाने से कांग्रेस को बड़ा नुकसान होगा। भाजपा को फायदा भी होगा। स्वामी प्रसाद मौर्या (Swami Prasad Maurya) के जाने के बाद जो नुकसान भाजपा (BJP) को हुआ था, वो सूद समेत वापस हो गया है। आरपीएन (Congress leader Kunwar RPN Singh) के भाजपा में आने से वो बड़ा वर्ग काफी प्रसन्न है, जो मानता था कि अच्छा नेता गलत पार्टी में है।' हालांकि बड़ा वर्ग ये भी मानता है कि कांग्रेस ने उन्हें सम्मान दिया। वे कांग्रेस से खास दुखी भी नहीं थे। लेकिन हर राजनेता की अपनी महत्वाकांक्षा होती है। उन्हें ये लग रहा था कि हाल फिलहाल कांग्रेस के सत्ता में लौटने की उम्मीदें नहीं के बराबर है। ऐसे में लंबे समय तक सत्ता से दूर रहकर कार्यकर्ताओं और समर्थकों को एकजुट रखना काफी मुश्किल है।

महराजगंज में उनके करीबी प्रवीण उर्फ रानू सिंह का कहना है कि 'भाजपा को नफा कितना होगा ये तो भविष्य में तय होगा लेकिन पूर्वांचल में कांग्रेस की उम्मीदों में पलीता लग गया। पूर्वांचल में आरपीएन (Congress leader Kunwar RPN Singh) कांग्रेस के ऐसे चेहरे थे, जो विकास पुरूष की पहचान रखते थे, और जिनकी छवि भी साफ सुथरी थी।' गोरखपुर यूनिवर्सिटी (Gorakhpur University) के प्रोफेसर हर्ष कुमार सिन्हा (Professor Harsh Kumar Sinha) का कहना है कि 'आरपीएन सिंह (Congress leader Kunwar RPN Singh) के भाजपा में जाने से न तो कांग्रेस को अधिक नुकसान होता दिख रहा है, न ही भाजपा को कोई अपेक्षित फायदा। आरपीएन (Congress leader Kunwar RPN Singh) का भाजपा (BJP) में जाना उनके खुद के राजनीतिक भविष्य को लेकर अहम है। उन्हीं के गृह जनपद के अजय कुमार लल्लू (Congress state president Ajay Kumar Lallu) को प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने के बाद स्थितियां बदलीं। और आज आरपीएन भाजपा के हो गए। इसके साथ ही आरपीएन को यह लग रहा था कि कांग्रेस में खास स्कोप नहीं है। ऐसे में राजनीतिक महत्वाकांक्षा भाजपा में ही पूरी हो सकती है। उन्हें और उनके समर्थकों को लगता है कि जो फायदा सिंधिया को भाजपा में जाने से हुआ, वहीं फायदा आरपीएन को भी हो सकता है।'

पूर्वांचल में विकास पुरूष की छवि

आरपीएन सिंह (RPN Singh) के पिता सीपीएन सिंह (CPN Singh) भी कांग्रेसी थे। उनकी गिनती कांग्रेस के वफादार नेताओं में होती थी। 1980 में इंदिरा की तत्कालीन सरकार में कांग्रेस ने सीपीएन सिंह को रक्षा राज्यमंत्री बनाया था। आरपीएन सिंह (RPN Singh) 1997 से 1999 तक युवा कांग्रेस यूपी में अध्यक्ष रहे। वह कुशीनगर की पडरौना विधानसभा (Padrauna Assembly of Kushinagar) से सीट से 1997 से 2009 तक विधायक रहे। पंद्रहवी लोकसभा में कांग्रेस ने उन्हें कुशीनगर से टिकट दिया और वह सांसद बने। आरपीएन सिंह कांग्रेस सरकार में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री भी रहे चुके हैं। गोरखपुर से लखनऊ फोरलेन के बाद कालेसर से जगदीशपुर तक फोरलेन निर्माण का श्रेय आरपीएन सिंह को ही जाता है। बतौर पेट्रोलियम मंत्री पूर्वांचल में रसोई गैस सिलेंडर की किल्लत को उन्होंने दूर किया। सपा के शासन काल में जब बेहतर सड़क दिखने लगती थी तो लोग मानते थे कि कुशीनगर जिले की सरहद आ चुकी है।

वैसे, आरपीएन सिंह ने 22 जुलाई 2015 को एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने लिखा था कि जाति की राजनीति ने मेरे राज्य को बर्बाद कर दिया है। सिंह का ट्वीट उस खबर पर था जिसमें बताया गया था कि राज्य में व्यापम जैसा हाल है और 86 एसडीएम में 56 एक ही जाति के हैं।

कांग्रेस को झटका

ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुष्मिता देव, जितिन प्रसाद, प्रियंका चतुर्वेदी और ललितेशपति त्रिपाठी सहित कई युवा नेताओं ने पिछले दो वर्षों में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी है। दूसरों की तरह उनका जाना यह दर्शाता है कि युवा नेताओं को पार्टी में अपना कोई भविष्य नहीं दिखता। इससे यह भी संकेत मिलता है कि कांग्रेस और एआईसीसी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा किए गए लंबे दावों के बावजूद, उत्तर प्रदेश में पार्टी के जमीनी स्तर के नेताओं को लगता है कि राजनीतिक और चुनावी रूप से महत्वपूर्ण राज्य में पार्टी के पुनरुद्धार की संभावना कम है।

वैसे, आर.पी.एन. सिंह के कांग्रेस से बाहर होने की अटकलें काफी दिनों से लगाई जा रही थीं लेकिन वे लगातार इन बातों को अफवाहों का नाम देकर खारिज करते रहे थे। कांग्रेस, यानी राहुल-प्रियंका जरूर उनकी बात पर भरोसा करते रहे होंगे तभी आर.पी.एन. सिंह का नाम पार्टी द्वारा 24 जनवरी को उत्तर प्रदेश के लिए जारी स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल था। उन्होंने उसी वर्ष पडरौना निर्वाचन क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधानसभा में प्रवेश किया। 1997 में उन्हें प्रदेश युवा कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। सिंह 2002 और 2007 में फिर से पडरौना से विधायक चुने गए। वह 2003 में एआईसीसी के पदाधिकारी बने जब उन्हें एआईसीसी सचिव नियुक्त किया गया।

2002 में उन्होंने एनडीटीवी की पत्रकार सोनिया सिंह से शादी की और उनके तीन बेटियां हैं। अपने पिछले चुनावी हलफनामे में आरपीएन सिंह ने अपनी संपत्ति तेरह करोड़ से ज्यादा बताई थी। उन्होंने बताया था कि उनकी आय का जरिया कृषि है वहीं उनकी पत्नी की आय का जरिया पत्रकारिता है।

आरपीएन का राजनीतिक कॅरियर

  • 25 अप्रैल 1964 को जन्म
  • शिक्षा दून स्कूल से
  • 1996 में पहली बार पडरौना सदर सीट से विधायक बने
  • 2002 में लगातार दूसरी बार पडरौना से विधायक बने
  • 2007 में तीसरी बार विधायक चुने गए
  • 2009 तक पडरौना सदर सीट से विधायक रहे
  • 1997-1999 तक यूपी यूथ कांग्रेस अध्यक्ष
  • 2003-2006-आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सचिव
  • 2009 में पडरौना लोकसभा से सांसद चुने गए
  • 2009-2011 केन्द्रीय सड़क, परिवहन एवं हाईवे राज्य मंत्री
  • 2011-2013 केन्द्रीय पेट्रोलियम, नेचुरल गैस व कारपोरेट अफेयर्स राज्य मंत्री
  • 2013-2014 तक केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री

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