UP Election 2022 : गोरखपुर सदर से योगी आदित्यनाथ के मुकाबले विपक्ष कहां हैं?
UP Election 2022 : गोरखपुर से पांच दफे सांसद रहे योगी आदित्यनाथ को चुनौती देने के लिए जैसी उम्मीदें विपक्ष से थी वैसी दिखाई नहीं पड़ती है।
UP Election 2022 : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Up Election 2022) के छठवें चरण में सबसे चर्चित सीट गोरखपुर (Gorakhpur assembly seat) जिले की शहर विधानसभा रहने वाली है। इस विधानसभा सीट से सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Cm Yogi adityanath) चुनाव लड़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में एक लंबे अरसे के बाद कोई मुख्यमंत्री सीधे तौर पर विधानसभा चुनाव लड़ रहा है।
गोरखपुर से पांच दफे सांसद रहे योगी आदित्यनाथ (Cm Yogi adityanath Wikipedia) को चुनौती देने के लिए जैसी उम्मीदें विपक्ष से थी वैसी दिखाई नहीं पड़ती है। आजाद समाज पार्टी से चंद्रशेखर आजाद और समाजवादी पार्टी से सुभावती शुक्ला मैदान में हैं तो वहीं बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी ख्वाजा शमसुद्दीन को मैदान में उतारा है। इस सीट पर वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में लड़ाई बहुत दिखाई नहीं पड़ती है। कोई विशेष चमत्कार ही यहां हवा का रुख मोड़ सकता है। फिलहाल तो चुनाव परिणाम तक इंतजार करना पड़ेगा।
गोरखपुर शहर सीट का राजनीतिक इतिहास क्या कहता है?
आरंभ से ही राम मंदिर निर्माण आंदोलन का केंद्र रही इस सीट पर सन् 1951 से लेकर सन् 1967 तक मुस्लिम समुदाय के नेता चुनाव जीतते थे। उसके बाद सन् 1969 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर रामलाल भाई ने चुनाव जीता था। सन् 1974 में जनसंघ के टिकट पर अवधेश कुमार ने चुनाव जीता था। जनसंघ ही आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी बनी थी। फिर 1977 में जनता पार्टी के लिए मुफीद माहौल में गोरखपुर शहर सीट भी शामिल हो गयी थी। यह विधानसभा सीट लाल बहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री के लिए भी चर्चित रही है। सन् 1980 और 1985 में सुनील शास्त्री दो दफे यहां से विधायक रह चुके हैं। सुनील शास्त्री के बाद गोरखपुर सदर विधानसभा सीट गोरक्ष पीठ के प्रभाव में आ गई और तबसे मठ के समर्थित प्रत्याशी ही यहां से चुनाव जीत रहे हैं। सन 1989 से 2017 के बीच हुए कुल 8 विधानसभा चुनाव में से भारतीय जनता पार्टी ने 7 बार जीत दर्ज की है।
गोरक्ष पीठ की भाजपा से नाराजगी और सन् 2002 का चुनाव
सन 2002 वह साल है जब इस बात पर मुहर लग गई थी कि गोरक्ष पीठ से खिलाफत कर भाजपा यह सीट नहीं जीत सकती है। सन 2002 में 4 बार से लगातार विधायक बन रहे शिव प्रताप शुक्ला भाजपा के टिकट पर मैदान में थे लेकिन गोरक्ष पीठ और योगी आदित्यनाथ को शिव प्रताप शुक्ला के रूप में प्रत्याशी मंजूर नहीं था। परिणामस्वरूप योगी आदित्यनाथ ने भाजपा से बगावत कर हिंदू महासभा के टिकट पर तत्कालीन विधायक डॉ राधामोहन दास अग्रवाल को चुनावी मैदान में उतार दिया। इस चुनाव में खुद योगी आदित्यनाथ ने भाजपा के प्रत्याशी शिव प्रताप शुक्ला के खिलाफ चुनावी सभायें की थी और डॉ अग्रवाल जीत गए थे। भाजपा के लिए परिणाम इतने भयावह रहें कि शिव प्रताप शुक्ला महज 14000 वोट ही हासिल कर सकें और तीसरे स्थान पर रहें थे। इसके बाद से भाजपा ने हमेशा मठ और योगी आदित्यनाथ की पसंद राधा मोहन दास अग्रवाल को चुनावी मैदान उतारती रही।
सपा और चंद्रशेखर इस सीट पर योगी आदित्यनाथ के लिए कितनी बड़ी चुनौती?
समाजवादी पार्टी ने इस सीट पर सुभावती शुक्ला को मैदान में उतारा है। सुभावती शुक्ला का परिचय यह है कि वह एक वक्त में योगी आदित्यनाथ के निकट और भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे स्वर्गीय उपेंद्र दत्त शुक्ला की पत्नी हैं। जब 2017 में योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तो उनकी गोरखपुर लोकसभा सीट खाली हो गई। भाजपा ने उपचुनाव में उपेंद्र शुक्ला को ही यहां से मैदान में उतारा था। लेकिन उपेंद्र शुक्ला निषाद पार्टी और समाजवादी पार्टी के गठबंधन से चुनाव हार गए थे।
राजनीतिक कयासों की माने तो सुभावती शुक्ला को समाजवादी पार्टी के टिकट पर मैदान में उतारने की पूरी रणनीति ब्राह्मण मतदाताओं को ध्यान में रखकर बनाई गई है। असल में गोरखपुर की एक राजनीतिक लड़ाई मठ बनाम हाता की रही है। हरिशंकर तिवारी पहले ही समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं और उनके सुपुत्र विनय तिवारी चिल्लूपार से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। इसलिए राजनीतिक दलों की माने तो एक बार फिर गोरखपुर और पूर्वांचल में क्षत्रिय बनाम ब्राह्मण के वर्चस्व का कोण तैयार किया जा रहा है।
आज भी पूर्वांचल की 2 दर्जन से अधिक सीटों पर ब्राह्मण मतदाता प्रभाव रखते हैं। हाल के राजनीतिक घटनाक्रम में योगी आदित्यनाथ से ब्राह्मण समुदाय की नाराजगी भी बताई जाती है। इसलिए सुभावती शुक्ला के जरिए नाराज ब्राह्मण वर्ग को साधने की कोशिश जारी है।
मजबूत चेहरे को चुनौती देना राजनीतिक स्टंट
वहीं अगर चंद्रशेखर आजाद की बात करें तो यह एक चुनावी लड़ाई से कहीं ज्यादा खुद को चेहरा बनाने की लड़ाई नजर आती है। बिना संगठन और संसाधन के योगी आदित्यनाथ जैसे मजबूत चेहरे को चुनौती देना तो राजनीतिक स्टंट ही दिखाई पड़ता है। इसलिए इस सीट पर चंद्रशेखर मीडिया में चर्चा तो पा रहे हैं लेकिन मतदाताओं के बीच से गायब है। वहीं बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी ने समाजवादी पार्टी के समीकरण को असमंजस में डाल दिया है।
सीट के जातीय समीकरण क्या कहते हैं?
गोरखपुर शहर की सीट निषाद बाहुल्य है। यहां निषाद समाज की 40 हजार आबादी बताई जाती है। निषाद पार्टी से गठबंधन के बाद भाजपा मजबूत दिखाई पड़ती है और गोरक्ष पीठ का व्यापक प्रभाव इस सीट को योगी आदित्यनाथ के लिए सबसे मजबूत किला बना देता है। अन्य जातियों की बात करें तो यहां दलित मतदाताओं की संख्या तकरीबन 30,000, वैश्य और क्षत्रिय मतदाताओं की संख्या 20 से 25 हजार, ब्राह्मण 30 हजार से अधिक बताए जाते हैं।
गोरखपुर शहर विधानसभा सीट का वर्तमान राजनीतिक निष्कर्ष तो यही है कि यह भाजपा के लिए वर्तमान परिस्थितियों में बहुत मजबूत सीट है और योगी आदित्यनाथ की तैयारी इस सीट से रिकॉर्ड मतों से विजय हासिल करने की रहेगी। यहां यह देखना जरूर दिलचस्प होगा कि सपा और चंद्रशेखर आजाद में कौन इस चुनावी लड़ाई को ज्यादा दिलचस्प बनाता है।