Narendra Giri Vasiyat :नरेंद्र गिरि ने बनवाई थी तीन वसीयत, वकील ने किया खुलासा, जानें कौन है उत्तराधिकारी

Narendra Giri Vasiyat : बाघंबरी गद्दी मठ के उत्तराधिकार को लेकर महंत नरेंद्र गिरी की तीन वसीयतों का पता चला है।

Newstrack :  Network
Published By :  Shraddha
Update: 2021-09-25 03:24 GMT

 नरेंद्र गिरि ने बनवाई थी तीन वसीयत (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)

Narendra Giri Vasiyat :अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महंत नरेंद्र गिरी (Mahant Narendra Giri) की कथित मौत के बाद कई साक्ष्य खंगाले जा रहे हैं जिसमें कई खुलासे सामने आ रहे हैं जो अभी ताजा मामला सामने आया है उसमें बाघंबरी गद्दी मठ (Baghambari Gaddi Math) के उत्तराधिकार को लेकर महंत नरेंद्र गिरी की तीन वसीयतों का पता चला है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी ने अपने सुसाइड नोट (Suicide Note) में उत्तराधिकारी का जिक्र किया है।


आपको बता दें कि महंत नरेंद्र गिरि (Mahant Narendra Giri) ने बाघंबरी मठ गद्दी के उत्तराधिकार को लेकर तीन वसीयत बनाई थी। इस वसीयत में हर बार अलग नाम सामने आया है। पहले इस वसीयत में इनके शिष्य बलवीर गिरि (Balveer Giri) का नाम सामने आया था। उसके बाद दूसरी वसीयत में इन्होंने अपने शिष्य आनंद गिरि (Anand Giri) का नाम लिखा था। उसके बाद तीसरी वसीयत में शिष्य बलवीर गिरि का नाम फिर कर दिया था।


शिष्य आनंद गिरि (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)  


 जानें इन तीनों वसीयत की तारीख


आपको बता दें कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महंत नरेंद्र गिरि (Mahant Narendra Giri) ने अपने उत्तराधिकारी पद के लिए तीन वसीयतें बनवाई थी। इस बात का खुलासा महंत के वकील ऋषि शंकर द्विवेदी ने किया है। वकील के मुताबिक महंत नरेंद्र गिरि ने 2010 से 2020 के बीच तीन बार वसीयत बदली गई थी। पहली वसीयत नरेंद्र गिरि ने 7 जनवरी 2010 को करवाई थी। दूसरी वसीयत 29 अगस्त 2011 को करवाई थी और तीसरी वसीयत 4 जून 2020 को तैयार करवाई थी। 


शिष्य बलवीर गिरि को बाघंबरी मठ का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)  


 बताया जा रहा है कि महंत नरेंद्र गिरि ने अपनी पहली वसीयत अपने शिष्य बलवीर गिरि के नाम करवाई थी। इसके बाद 2011 में इन्होंने अपनी दूसरी वसीयत बनवाई जिसमें अपने शिष्य आनंद गिरि को अपना उत्तराधिकारी बनाया था जिसके बाद इनके बीच कई विवाद हो गए जिसके बाद नरेंद्र गिरि ने 4 जून 2020 को अपनी तीसरी वसीयत तैयार करवाई थी जिसमें अपने शिष्य बलवीर गिरि को दोबारा बाघंबरी मठ का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। 

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