UP Election 7th Phase: मोदी के गढ़ में भाजपा के तीन मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर, मिल रही है कांटे की टक्कर
UP Election 2022 7th Phase: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में योगी सरकार के तीन मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इन्हें इस बार काफी कड़ी टक्कर मिल रही है।
UP Election 2022 7th Phase: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Vidhan Sabha Chunav) के छह चरणों का मतदान समाप्त होने के बाद अब सबकी निगाहें सातवें चरण की सीटों पर लगी हुई हैं। सातवें चरण की 54 विधानसभा सीटों पर सोमवार को मतदान (UP 7th Phase Election Date) होना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के संसदीय क्षेत्र वाराणसी (Varanasi) में योगी सरकार के तीन मंत्रियों (Yogi Government Ministers) की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। 2017 के विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2017) में इन तीनों सीटों पर भाजपा ने विजय हासिल की थी मगर इस बार योगी सरकार (Yogi Government) के इन मंत्रियों को कड़ी टक्कर मिल रही है।
योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर (Anil Rajbhar) शिवपुर विधानसभा क्षेत्र (Shivpur Assembly Seat) में किस्मत आजमाने के लिए उतरे हैं। वाराणसी उत्तरी सीट (Varanasi North Seat) पर प्रदेश के राज्यमंत्री रविंद्र जायसवाल (Ravindra Jaiswal) और वाराणसी दक्षिणी सीट (Varanasi South Seat) पर एक और राज्यमंत्री नीलकंठ तिवारी (Neelkanth Tiwari) चुनाव लड़ रहे हैं। मजे की बात यह है कि तीनों मंत्री इस बार कड़े मुकाबले में फंसे हुए हैं और विपक्ष की ओर से इन तीनों मंत्रियों की तगड़ी घेराबंदी की गई है। प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण इन तीनों सीटों पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं।
शिवपुर में राजभर vs राजभर
शिवपुर विधानसभा सीट पर भाजपा के अनिल राजभर को सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर से कड़ी चुनौती मिल रही है। राजभर बनाम राजभर की इस चुनावी जंग को बसपा उम्मीदवार और रवि मौर्य ने और रोमांचक बना दिया है। क्षेत्र में 90,000 मौर्य मतदाताओं को देखते हुए रवि मौर्य की चुनौती को भी काफी मजबूत माना जा रहा है। भाजपा का साथ छोड़ने के बाद ओमप्रकाश राजभर लगातार अनिल राजभर को चुनौती देते रहे हैं और ऐसे में यह सियासी लड़ाई काफी प्रतिष्ठा की हो गई है। कांग्रेस ने गिरीश पांडे को चुनाव मैदान में उतारा है
2017 के चुनाव में अनिल राजभर ने इस सीट पर बड़ी जीत हासिल की थी मगर इस बार सियासी हालात पूरी तरह बदले हुए हैं। सभी प्रत्याशियों ने इस सीट पर पूरी ताकत लगा रखी है। ऐसे में सबकी निगाहें इस बात पर लगी हुई हैं कि अनिल राजभर इस सीट पर अपना कब्जा बनाए रख पाते हैं या नहीं।
गढ़ में मिल रही सपा से कड़ी चुनौती
वाराणसी दक्षिण विधानसभा सीट पर भाजपा ने एक बार फिर नीलकंठ तिवारी को चुनाव मैदान में उतारा है। शहर दक्षिणी सीट पर 1989 से ही भाजपा का कब्जा बना हुआ है। इस सीट को भाजपा का किला बनाने में श्यामदेव राय चौधरी दादा का बड़ा योगदान माना जाता है। उन्होंने 1989 से 2012 तक हर विधानसभा चुनाव में इस सीट पर जीत हासिल की। उन्होंने 1989, 1991, 1993, 1996, 2002, 2007 और 2012 में सीट पर जीत हासिल की। 2017 के चुनाव में भाजपा ने इस सीट पर डॉ नीलकंठ तिवारी को पहली बार चुनाव मैदान में उतारा था।
2017 में कांग्रेस उम्मीदवार पूर्व सांसद डॉ राजेश मिश्रा ने भाजपा को कड़ी चुनौती दी थी। डॉ. नीलकंठ तिवारी ने उन्हें करीब 15,000 से अधिक मतों से हराया था। इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी डॉ. नीलकंठ तिवारी को 92,560 वोट हासिल हुए थे जबकि कांग्रेस प्रत्याशी डॉ राजेश मिश्रा को 75,334 मत मिले थे। जीत हासिल करने के बाद डॉ नीलकंठ तिवारी को योगी सरकार में राज्यमंत्री बनाया गया था।
दक्षिणी सीट से निकलेगा बड़ा संदेश
वाराणसी दक्षिणी सीट पर इस बार नीलकंठ तिवारी कड़े मुकाबले में फंस गए हैं। वाराणसी के बहुचर्चित महामृत्युंजय मंदिर के महंत परिवार से जुड़े किशन दीक्षित को उतारकर सपा ने भाजपा की मजबूत घेरेबंदी का प्रयास किया है। क्षेत्र में नीलकंठ तिवारी के प्रति कुछ नाराजगी भी दिख रही है और सपा इसे भुनाने की कोशिश में जुटी हुई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ कॉरिडोर भी इसी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। भाजपा की ओर से इस बार काशी के विकास के साथ ही काशी विश्वनाथ कॉरिडोर को भी देश दुनिया में खूब प्रचारित किया जा रहा है। इसलिए यह सीट भाजपा के लिए काफी महत्वपूर्ण हो गई है। पीएम मोदी के रोड शो के बाद शुक्रवार को सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी इस इलाके में रोड शो निकाला था। इस सीट का चुनावी नतीजा बड़ा सियासी संदेश देने वाला साबित होगा और इसी कारण भाजपा और सपा दोनों दलों ने पूरी ताकत लगा रखी है।
उत्तरी सीट पर भी हो रहा कड़ा मुकाबला
योगी सरकार के तीसरे मंत्री रविंद्र जयसवाल की प्रतिष्ठा वाराणसी उत्तरी विधानसभा क्षेत्र में दांव पर लगी हुई है। 2012 और 2017 के चुनाव में सीट पर जीत हासिल करने के बाद जायसवाल हैट्रिक लगाने की कोशिश में जुटे हुए हैं जबकि विपक्षी दलों की ओर से उन्हें कड़ी टक्कर मिल रही है। अपने गढ़ को बचाए रखने के लिए रविंद्र जायसवाल कड़ी मेहनत कर रहे हैं जबकि सपा इस सीट पर जीत हासिल करके बड़ा सियासी संदेश देने की कोशिश में जुटी हुई है। शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विधानसभा क्षेत्र में भी रोड शो किया है और माना जा रहा है कि सातवें चरण के मतदान के दौरान इसका असर दिखाई पड़ सकता है।
पिछले चुनाव में भाजपा को मिली थी बड़ी जीत
वाराणसी उत्तरी विधानसभा क्षेत्र के इतिहास को देखा जाए तो यहां पर हमेशा सपा और भाजपा में भिड़ंत होती रही है। 2017 के विधानसभा चुनाव में रविंद्र जायसवाल ने वाराणसी उत्तरी विधानसभा सीट पर बड़ी जीत हासिल की थी। उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी अब्दुल समद अंसारी को 45 हजार से अधिक मतों से पराजित किया था। इस चुनाव में बसपा प्रत्याशी तीसरे स्थान पर खिसक गया था।
2017 के विधानसभा चुनाव में सपा इस सीट से चुनाव मैदान में नहीं उतरी थी क्योंकि सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था और गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के कोटे में चली गई थी। पिछले चुनाव में रविंद्र जायसवाल की जीत में ध्रुवीकरण को भी बड़ा कारण माना गया था।
जातीय समीकरण साधने में जुटे हैं प्रत्याशी
इस बार सपा ने अशफाक अहमद को चुनाव मैदान में उतारकर भाजपा प्रत्याशी को कड़ी चुनौती दी है। कांग्रेस ने गुलेराना तबस्सुम को चुनाव मैदान में उतारा है। बसपा के श्याम प्रकाश भी अपनी चुनावी स्थिति मजबूत बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इस सीट पर पूर्व के चुनाव में भी भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच कड़ा मुकाबला होता रहा है और इस बार भी इन्हीं दोनों दलों के बीच कड़ी टक्कर दिख रही है।
अशफाक अहमद पहले भी सीट पर किस्मत आजमा चुके हैं। सपा मुस्लिम मतदाताओं के साथ ही अन्य जातियों का समीकरण साधने में जुटी हुई है। दूसरी ओर भाजपा एक लाख वैश्य मतदाताओं के साथ अन्य वर्गों का समर्थन पाने की कोशिश कर रही है। वैसे इस सीट पर दिलचस्प मुकाबले की उम्मीद जताई जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण वाराणसी में योगी सरकार के मंत्रियों के प्रदर्शन पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। इन सीटों का चुनावी नतीजा बड़ा सियासी संदेश देने वाला होगा और इसी कारण सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने पूरी ताकत झोंक रखी है।
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