रामपुर में माता बनी कुमाता: मां ने छत से बेटे को फेका नीचे, ऐसे बची जान
मां तुम कहां चली गईं मुझे इस तरफ लावारिस छोड़कर। मुझे जब पैदा होते ही मौत के घाट उतारना था तो मुझे अपने पेट में पाला ही क्यों।
रामपुर: कहते हैं कि पूत तो कपूत हो सकता है लेकिन माता कभी कुमाता नहीं होती। लेकिन जिला रामपुर में एक ऐसा दिल को दहलाने वाला वाक्या पेश आया जिसमें एक मां ने अपने दिल के टुकड़े को 36 फीट की उंचाई से नीचे फेंक दिया। लेकिन बच्चा 20 फीट नीचे छज्जे पर गिरने से बच गया और कॉलोनी वासियों ने उसे उतारकर अस्पताल पहुंचाया। इस खौफनाक मंजर का जिक्र हर किसी की जुबान पर है।
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मुझे लावारिस और दूसरे गलीज़ नामों से पुकारा जा रहा है
मां, मां, मां तुम कहां हो ? मां यह कौन सी दुनिया है जहां मुझे लावारिस और दूसरे गलीज़ नामों से पुकारा जा रहा है। चलो कोई बात नही, लेकिन मां कड़कड़ाती ठण्ड में मेरे हाथ, पैर, दिल सबकुछ जाम और ऐंठ रहे हैं। मेरा खून जम रहा है। मां मुझसे इतनी सर्दी बर्दाश्त नहीं हो रही। मां मेरे सिर में काफी चोट लगी है जिसका दर्द तो मुझे बर्दाश्त है लेकिन तेरे जाने का गम इस तकलीफ से बड़ा है।
कहां चली गईं मुझे इस तरफ लावारिस छोड़कर
मां तुम कहां चली गईं मुझे इस तरफ लावारिस छोड़कर। मुझे जब पैदा होते ही मौत के घाट उतारना था तो मुझे अपने पेट में पाला ही क्यों। गोश्त के लोथड़े को सांसें क्यों बख्शीं? 36 फीट की उंचाई से मुझे फेंककर आखिर मारने की कोशिश मां आखिर किसने की? क्या मां तुमने ही मुझे मौत के घाट उतारने के लिए इतनी उंचाई से फेंका?
ज़माने का क्या वह तो हर हाल में नाखुश ही होगा
अगर मां तुमने खुद ही यह काम किया तो मैं बस यही पूछना चाहता हूं कि आखिर दुनिया में आने पर आखिर मैंने क्या गुनाह कर दिया जो तेरी शफकत से मैं महरूम हो गया। आखिर मेरा गुनाह क्या है या यह मेरा गुनाह है भी या नहीं। कहीं यह तुम्हारा तो गुनाह नहीं कि तुमने मुझे अपने जिस्म की गर्मी से महरूम कर इस कड़कड़ाती ठण्ड में मरने के लिए फेंक दिया।
मेरे लिए तुम ही मेरी दुनिया होंती
मां अगर तुम्हें लोकलाज या शर्मिन्दगी है तो फिर यह गुनाह तुमने किया ही क्यों अगर किया तो इसकी सजा मुझे क्यों दी? मां ज़माने का क्या वह तो हर हाल में नाखुश ही होगा, लेकिन मां तुमने जो मुझे पिलाया ही नहीं तेरे उस दूध की कसम अगर तुम मुझे अपने कलेजे से दूर नहीं करतीं तो मैं कभी भी इन लबों पर शिकायत नहीं लाता और कभी भी इन नाजाएज और लावारिस जैसे अल्फाज़ की परवाह नहीं करता। मेरे लिए तुम ही मेरी दुनिया होंती।
एक फरिश्ता जिसका नाम मोहसिन है उसने जान बचाई
कांशीराम आवास में आसरा कॉलोनी में मां मुझे अपने आप से दूर करते वक्त तेरा दिल भी कांपा होगा, तेरे हाथ भी लरजे़ होंगे, तेरे दिल ने भी मेरी तरह हूक उठाई होगी। तुझे उसी ममता का वास्ता एक बार मुझे अपने सीने से लगा ले। मैं कभी भी शिकवा नहीं करूंगा। मां तुम्हें मालूम है जब मैं तुमसे 36 फीट की उंचाई से दूर हुआ तो कांशीराम आवासों में बीस फीट की उंचाई पर स्लैब बना हुआ था जहा मैं फंस गया और नीचे बने टॉयलेट के गटर में गिरकर मरने से बच गया, लेकिन इतना ही नहीं जब मेरे हाथ पैर ठण्ड से ऐंठने लगे।
मेरा खून जमने लगा, मेरे सिर में काफी चोट लगी तो मैं बेपनाह रोया जिसपर घेर मोहब्बत खां का रहने वाला एक फरिश्ता जिसका नाम मोहसिन है वह अपनी बहन के घर कॉलोनी में आया हुआ था। उसने अपनी जान की परवाह किये बगैर कपड़े और दुप्पटों के सहारे स्लैब पर नीचे उतरकर मेरी जान बचाई।
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जिला अस्पताल में दाखिल कराया
देखते ही देखते मां वहां लोगों की भीड़ लग गई और एक साथ तमाम आवाजें आने लगीं किसी ने तुम्हें बुरा कहा तो किसी ने मुझे नाजाएज और नाजाने क्या क्या कहा। इंसानियत के अलमबरदारों ने मुझे जिला अस्पताल में दाखिल कराया। जहां मैं जिन्दगी और मौत के बीच झूल रहा हूं मां। मुझे किसी बात का गम नहीं बस तुम्हारा दूर होना ही मुझे साल रहा है और बर्दाश्त के बाहर है। हो सके तो ज़माने की परवाह किये बगैर तुम लौट आओ मां। मैं तुम्हें किसी बात की परेशानी नहीं होने दूंगा मां, मां, मां!
रिपोर्ट- शन्नू खान, रामपुर