‘वन नेशन वन एजुकेशन’ पर सिग्नेचर कैंपेन, पोस्टर प्रदर्शनी का भी हुआ आयोजन

राजधानी में सोमवार (25 सितंबर) को शिक्षा क्षेत्र में काम कर रहे स्वयंसेवी संगठनों ने एक बार फिर ‘ वन नेशन वन एजुकेशन’ की मांग को पुरजोर तरीके से उठाया। इसके अंतर्गत हजरतगंज में गांधी प्रतिमा के निकट और डालीगंज क्रासिंग पर हस्ताक्षर अभियान चलाया गया।

Update: 2017-09-25 11:39 GMT

लखनऊ: राजधानी में सोमवार (25 सितंबर) को शिक्षा क्षेत्र में काम कर रहे स्वयंसेवी संगठनों ने एक बार फिर ‘ वन नेशन वन एजुकेशन’ की मांग को पुरजोर तरीके से उठाया। इसके अंतर्गत हजरतगंज में गांधी प्रतिमा के निकट और डालीगंज क्रासिंग पर हस्ताक्षर अभियान चलाया गया।

इसके साथ ही साथ पोस्‍टर प्रदर्शनी के माध्‍यम से सभी के लिए समान शिक्षा के अवसर उपलब्‍ध कराने की आवश्‍यकता को दर्शाया गया। इस कैंपेन से जुड़े बुद्धिजीवियों ने कहा कि शिक्षा के बढ़ते बाजारीकरण के कारण आज समाज का एक बड़ा हिस्सा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित हो रहा है, कोई स्पष्ट नीति न होने के कारण सरकारी विद्यालयों की स्थिति दिन प्रतिदिन दयनीय होती जा रही है।

रा‍ष्‍ट्रपति से लेकर किसान तक का बेटा पढ़े एक साथ

इस कैंपेन से जुड़े कार्यकर्ता सुरेश राठौर ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज सुधीर अग्रवाल ने 18 अगस्त 2015 को एक ऐतिहासिक फैसला दिया था। जिसमें कोर्ट ने सभी अफसरों, सरकारी कर्मचारियों और जन प्रतिनिधियों के लिए उनके बच्चों को सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पढ़वाना अनिवार्य किये जाने का निर्देश राज्य सरकार को दिया था। इस आदेश से परिषदीय स्कूलों में शिक्षा के स्तर में सुधार की चर्चा समाज के हर स्तर पर प्रारंभ हुई थी। लेकिन इसे सार्थक और व्यावहारिक स्तर तक ले जाने के लिए सरकार ने इच्छाशक्ति ही नहीं दिखाई।

सरकारी स्कूलों में होगा सुधार

देश में सभी को एक जैसी शिक्षा का अवसर मिलना चाहिए चाहे वह राष्ट्रपति की संतान हो या किसान की संतान। जब सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों, जन प्रतिनिधियों और जजों के बच्चें सरकारी विद्यालय में पढ़ने जाएंगे तो सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में रातों-रात सुधार होगा। इसका फायदा गरीब जनता को मिलेगा। उसका बच्चा भी अच्छी शिक्षा पाएगा। इसके साथ ही इसका लाभ उन मध्यम वर्गीय परिवारों को भी मिलेगा जो अभी अपने बच्चों को मनमाना शुल्क वसूल करने वाले निजी स्कूलों में भेजने के लिए मजबूर हैं। इससे ये लोग भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाएंगे। इसलिए एक राष्‍ट्र- एक शिक्षा प्रणाली के बारे में सरकार को गंभी‍रता से विचार करना चाहिए।

केंद्रीय विद्यालयों जैसे हो जाएंगे परिषदीय स्‍कूल

इस कैंपेन से जुड़े दीन दयाल सिंह ने कहा कि अभी नवोदय विद्यालयों और केन्द्रीय विद्यालयों में प्रवेश के लिए अभिभावक उत्सुकता दिखाते हैं। जब यह प्रणाली लागू हो जाएगी तो सरकारी प्राथमिक स्कूलों की भी गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार होने लगेगा। इसके चलते इन स्‍कूलों में भी बच्चों के प्रवेश के लिए लोगों का झुकाव होगा। इस जन अभियान के माध्यम से हमारी मांग है कि इंटर तक की शिक्षा का पूर्ण सरकारीकरण किया जाए। निजी शिक्षण संस्थाओं पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए।

सांसद-विधायक अपनी निधि का 30 प्रतिशत करें दान

इस कैपेन से जुड़े राइट टू एजूकेशन के सक्रिय कार्यकर्ता प्रवीण कुमार ने बताया कि हमारी मांग है कि शिक्षा का बजट बढ़ाया जाए। परिषदीय स्कूलों में उच्च स्तर के संसाधन उपलब्ध कराए जाएं। सभी सांसद और विधायक अपनी निधि से अनिवार्य रूप से कम से कम 30 प्रतिशत धनराशि अपने क्षेत्र के परिषदीय और सरकारी विद्यालयों के संसाधन को उच्च स्तरीय बनाने में खर्च करें। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी दूर की जाए। शिक्षकों से किसी भी प्रकार का गैर शैक्षणिक कार्य न कराया जाए। प्रत्येक सरकारी विद्यालय पर अनिवार्य रूप से लिपिक, परिचारक, चौकीदार और सफाई कर्मी की नियुक्ति हो। सभी के लिए समान शिक्षा की नीति पूरे देश में व्यवहारिक रूप से लागू की जाए। हम आज ये सिंगनेचर कैंपेन चलाकर पूरे देश में 'वन नेशन वन एजुकेशन' सिस्‍टम को लेकर जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं। यह कोशिश आगे भी जारी रहेगी।

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