कभी सिमी की गतिविधियों का गढ़ था कानपुर

कभी आतंक का पर्याय बने रहे सिमी के पूर्व अध्यक्ष शाहिद बद्र की गिरफ्तारी को भले ही मीडिया मे सामान्य ढंग से लिया गया हो पर स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) की पहचान कभी बेहद खतरनाक आतंकी संगठन के रूप में की जाती थी।

Update: 2023-03-31 22:43 GMT

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: कभी आतंक का पर्याय बने रहे सिमी के पूर्व अध्यक्ष शाहिद बद्र की गिरफ्तारी को भले ही मीडिया मे सामान्य ढंग से लिया गया हो पर स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) की पहचान कभी बेहद खतरनाक आतंकी संगठन के रूप में की जाती थी।

नई सदी में अत्यधिक सक्रिय हुए इस संगठन को आतंकी गतिविधियों के लिए पहचाना जाता था। अन्तरराष्ट्रीय आतंकी संगठन आईएसआई से भी इसके सम्बन्ध होने के कई सबूत मिले थें। 1999 में कानपुर में सिमी का एक बड़ा सम्मेलन हुआ था जिसके बाद इस संगठन की गतिविधियों में खूब इजाफा हुआ। 1998 तक इस संगठन में एक लाख युवक जुड़ चुके थे।

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कानपुर इस संगठन का गढ़ हुआ करता था। एक मुस्लिम एरिया में इसका कार्यालय था जहां अंसार इरशाद शाहीन नामक फोर्स को प्रशिक्षण दिया जाता था तथा धार्मिक कट्टरवादी तकरीरे दी जाती थी। इसके अलावा इस्लाम के नाम पर मर मिटने की कसमें खिलाई जाती थी। कहा तो यहां तक जाता है कि अन्तरराष्ट्रीय माफिया दाऊद इब्राहिम के इशारे पर कानपुर के एक बड़े क्षेत्र को मुस्लिम लैंड बनाने की योजना थी।

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कई जिलों में आतंकी गतिविधियों के मशहूर रहे सिमी संगठन के कार्यकर्ताओं ने तो कानपुर में भीड़ के सामने एक अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) सीपी पाठक की गोली मारकर हत्या कर दी थी।

वर्ष 2001 में हुई इस घटना के पहले मुस्लिम एरिया में उर्दू-फारसी भाषा में भड़काऊ पोस्टर लगाकर लोगों को भड़काने का काम इसी संगठन के सदस्यों ने किया था। अचानक भीड़ का हुजूम निकला और अटल विहारी वाजपेयी, बाला साहब ठाकरे और अशोक सिंहल के पोस्टरों को जलाते हुई दुकानो में लूटपाट करते हुए परेड चौराहे तक पहुंची थी।

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इसके बाद जब पुलिस मौके पर पहुंची तो पथराव और बमबाजी शुरू कर दी। परीक्षा देने जा रही छात्राओं और महिलाओं को खींच लिया गया। इस हिंसा में छह लोगों की मौत हुई थी जिसमें एडीएम पाठक भी शहीद हो गये थे। इस हिंसा में एके-47 का प्रयोग किया गया था। इसके बाद पांच थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगाना पड़ा था।

उस दौरान केंद्र में अटल विहारी वाजपेयी की सरकार थी और जब भी सिमी पर प्रतिबंध लगाने की बात हुई सपा-बसपा सरकारों ने इसका विरोध किया। जिसके कारण यूपी में सिमी पर प्रतिबंध नहीं लग सका था। सिमी के प्रदेश अध्यक्ष हुमाम अहमद ने धमकी देते हुए कहा था यदि सिमी पर प्रतिबंध लगा तो हजारों मुसलमान सड़क पर उतर आएंगे।

25 अप्रैल 1977 को मोहम्मद सिद्दीकी ने उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ ज़िले में सिमी का गठन किया। सिमी मूल रूप से जमात-ए-इस्लामी-ए-हिंद के छात्र संगठन था, लेकिन 1981 में पीएलओ नेता यासिर अराफात की भारत यात्रा के खिलाफ विरोध किया और उन्हें नई दिल्ली में काले झंडे दिखाए, जिसके बाद जमात-ए-इस्लामी-ए-हिंद ने सिमी से खुद को किनारे कर लिया।

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दिल्ली और भारत के दूसरे शहरों में हुए आतंकी घटनाओं के मद्देनज़र 2010 में गृह मंत्रालय ने सिमी पर दो साल के लिये प्रतिबंध लगा दिया था। इन हमलों में इसके सहयोगी संगठन इंडियन मुजाहिदीन का हाथ था। 9/11 आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने सिमी को आतंकवादी संगठन करार देते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दिया।

इसलिए सिमी (स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) के पूर्व अध्यक्ष शाहिद बद्र की गिरफ्तारी को गुजरात पुलिस की बड़ी सफलता ही कहा जाएगा। शहीद बद्र को देशद्रोह के मामले में गिरफ्तार किया गया है। गुजरात की भुज की एक अदालत ने शाहिद बद्र के खिलाफ वारंट जारी किया था। सिमी के पूर्व अध्यक्ष के खिलाफ उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में कई मुकदमे दर्ज थे। वहीं भुज में शाहिद के खिलाफ 2012 में मुकदमा दर्ज हुआ था।

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