राजकुमार उपाध्याय
लखनऊ: सपा सरकार के दौरान रिटायरमेंट के बाद भी महकमों में काम कर रहे अधिकारियों की एक लम्बी फेहरिस्त थी। सत्ता में आने के बाद योगी सरकार ने इस पर लगाम लगाई थी लेकिन अब यह ढीली पड़ रही है। मुख्यमंत्री के आदेश पर इस तरह के जिन अधिकारियों और कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं। अब उन्हीं की पुनर्नियुक्ति की फाइल दौड़ाई जा रही है। ऐसे में सरकार के अंदरखाने ही सवाल उठ रहे हैं कि मुख्यमंत्री का आदेश बड़ा या सयाने अफसर।
बीते नवम्बर में मुुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जानकारी में आया कि वित्त विभाग में कुछ अधिकारी व कर्मचारी सेवानिवृत्ति के बाद भी मानदेय/संविदा पर अपनी सेवा दे रहे हैं।
प्रमुख सचिव वित्त से इसकी जानकारी मांगी गई। मामले की पड़ताल में सामने आया कि वित्त वेतन समिति में वर्षों से ऐसे कर्मी काम कर रहे हैं। इसके बाद मुख्यमंत्री के आदेश पर 24 नवम्बर को वरिष्ठ परामर्शदाता शाहीना परवीन व राम आसरे द्विवेदी, विशेष कार्याधिकारी शिव शंकर सिंह, निजी सचिव नरेश कुमार और अवर वर्ग सहायक रमेश कुमार तिवारी की सेवाएं समाप्त की गईं। इस वाकये को डेढ़ महीने ही बीते हैं, इसके बावजूद उन्हीं कार्मिकों की पुनर्नियुक्ति की फाइल फिर से तैयार की गई है। यह फाइल अनुमोदन के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय भी भेजने की तैयारी है। इस बारे में वित्त मंत्री राजेश अग्रवाल से बात करने की कोशिश की गई पर उनसे सम्पर्क नहीं हो सका।
सपा सरकार में जिन अधिकारियों की पुनर्नियुक्ति की गई थी, उनमें से करीब डेढ़ दर्जन अधिकारियों को छोडक़र बाकी की सेवाएं तत्काल समाप्त करने का फैसला इस सरकार ने किया था। बचे हुए अफसरों की पुनर्नियुक्ति भी अफसरों ने बड़ी ही चालाकी से विषय विशेषज्ञता का हवाला देते हुए बचाई। फिर भी पूर्ववर्ती सरकार के कई चहेतों को बचाने में नााकम रहे। इनमें आजम खां के खासमखास और चर्चित नगर विकास सचिव एसपी सिंह भी शामिल थे। उन्हें कोर्ट के आदेश के बाद हटाया गया, इसके बावजूद उन्होंने पुनर्नियुक्ति पा ली। बहरहाल, पुनर्नियुक्ति पाए जो अफसर सेवा में रह गए थे उनमें मणि प्रसाद मिश्र, मुकेश मित्तल, चंद्रप्रकाश, अजय अग्रवाल, कृष्ण गोपाल गुप्ता, लहरी यादव, श्रीचंद्र द्विवेदी, विनोद कुमार शुक्ला, परमहंस सिंह, रविंद्र कुमार, आरएस सिन्हा, जय प्रकाश सिंह, सुरेंद्र नाथ आदि शामिल थे। इसमें भी मणि प्रसाद मिश्रा की पुनर्नियुक्ति का कार्यकाल पूरा होने के बाद फिर नहीं बढ़ सका। मौजूदा समय में वह सेवा में नहीं हैं। तत्कालीन मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने डेढ़ दर्जन अधिकारियों को छोडक़र शेष की पुनर्नियुक्ति समाप्त करने का आदेश जारी कर दिया था पर इसमें वित्त वेतन आयोग के अधिकारियों व कर्मचारियों की नियुक्तियों को छिपा लिया गया।
अफसरों ने चला यह दांव
दरअसल पिछली सरकार में रिटायरमेंट के बाद पुनर्नियुक्ति का अनुमोदन मुख्यमंत्री स्तर से लिया जाता था। जब जनवरी 2017 में पुनर्नियुक्ति के नवीनीकरण का समय आया तो उस समय चुनावी समर जोरों पर था। ऐसे में अफसरों ने मुख्यमंत्री स्तर से अनुमोदन न लेकर एक नया दांव चला। अधिकारियों की पुनर्नियुक्ति के बजाए नियत मानदेय के आधार पर नियुक्ति का आदेश जारी करा दिया। जब योगी सरकार सत्ता में आई तो अधिकारियों ने काफी समय तक यह मामला दबाए रखा। पर मुख्यमंत्री के संज्ञान में प्रकरण आने के बाद इन कार्मिकों की सेवाएं समाप्त कर दी गई। लेकिन अफसरों ने हार नहीं मानी। चूंकि पहले मुख्यमंत्री के बिना मंजूरी के संविदा/मानदेय पर नियुक्तियां की गई थी। अब दोबारा उन्हीं रिटायर कर्मियों की पुनर्नियुक्तियों को कानूनी जामा पहनाने के लिए मुख्यमंत्री से अनुमोदन की तैयारी है।
दूसरे विभाग से आए कार्मिकों को वित्त विभाग दे रहा प्रमोशन
वित्त विभाग में प्रतिनियुक्ति पर तैनात सांख्यकीय अधिकारियों की शोध अधिकारी और वरिष्ठ शोध अधिकारी के पद पर प्रमोशन की तैयारी है। जबकि नियमानुसार दूसरे विभाग से आए अधिकारियों व कर्मचारियों की प्रोन्नति उनके मूल विभाग से ही होनी चाहिए। अधिकारियों की प्रोन्नति भी उनके अनुरोध पर की जा रही है।